गुर्वेजी की डायरी पर सुरज धवले से विशेष बातचीत

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हमारे समाज में कुछ ऐसी मान्यताएं प्रचलित है जिन्हें अंधविश्वास कहा जाता है हालांकि कुछ लोगों के लिए यह आस्था का सवाल हो सकता है। इन मान्यताओं के कारण भारत की अधिकांश जनता अपने मन में वहम पालकर जीवन जीती है। निर्णयहीन होकर किसी अनहोनी की आशंका से डरी हुई रहती है और धर्मभीरू बन जाती है। मेरा अनुभव कहता है जो लोग अंधविश्वासों को मानते हैं वह डरे हुए ही जीवन गुजार देते हैं लेकिन साहसी लोग अपनी बुद्धि और समझ पर भरोसा करते हैं। आज हम बात करेंगे सामाजिक मान्यताएं और अंधविश्वास पर। समाज में ढ़ेरों मान्यताएं है जिनमें से कुछ को हम अपने संस्कृति का हिस्सा मानते है। तो ऐसे मान्यताएं है जो लोक परंपरा और स्थानीय लोगों की स्वीकोरोक्ति पर आधारित है हालांकि इनमें कुछ विश्वासों को अनुभव पर आधारित माना जाता है ।

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