गुर्वे की डायरी कार्यक्रम अच्छा लगता है मैं उनकी प्रशंसा करना चाहता हूं । मैं जितनी अधिक प्रशंसा करना चाहूंगा , उतनी ही कम होगी । विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

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प्रगतिशील विचारधारा रखने वाले लोग दुख को जीवन का संघर्ष मान कर उस से दो-दो हाथ करने की तैयारी रखते है, लेकिन धर्म व इश्वर की परिकल्पना के साथ जीने वाले लोग दुख का संबंध अपने भाग्य से जोड़ते है या फिर सारा दोष दूसरे पर या इश्वर पर मढ़ देत है। मैने अपने व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में यही अनुभव किया है। आज हम बात करेंगे विचारों पर अनुशासन रख कर कैसे दुखों पर विजय पाकर आनंदमय रह सकते है । अकसर हम तब अपनी आसपास की परिस्थितियों का विश्लेषण करने लगते है जब हमारा सोचा हुआ काम पुरा नहीं होता है। हम असफल हो जाते है तो निश्चित ही उस समय हम बेहद दुखी होते है। और इस दुख का कारण भीतर की बजाए बहार ढूंढने लगते है। मैने कई बार देखा है धर्मभीरू लोग इस दुख के लिए ईश्वर को दोष देने लगते है।

प्रगतिशील विचारधारा रखने वाले लोग दुख को जीवन का संघर्ष मान कर उस से दो-दो हाथ करने की तैयारी रखते है, लेकिन धर्म व इश्वर की परिकल्पना के साथ जीने वाले लोग दुख का संबंध अपने भाग्य से जोड़ते है या फिर सारा दोष दूसरे पर या इश्वर पर मढ़ देत है। मैने अपने व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में यही अनुभव किया है। आज हम बात करेंगे विचारों पर अनुशासन रख कर कैसे दुखों पर विजय पाकर आनंदमय रह सकते है । अकसर हम तब अपनी आसपास की परिस्थितियों का विश्लेषण करने लगते है जब हमारा सोचा हुआ काम पुरा नहीं होता है। हम असफल हो जाते है तो निश्चित ही उस समय हम बेहद दुखी होते है। और इस दुख का कारण भीतर की बजाए बहार ढूंढने लगते है। मैने कई बार देखा है धर्मभीरू लोग इस दुख के लिए ईश्वर को दोष देने लगते है।

प्रगतिशील विचारधारा रखने वाले लोग दुख को जीवन का संघर्ष मान कर उस से दो-दो हाथ करने की तैयारी रखते है, लेकिन धर्म व इश्वर की परिकल्पना के साथ जीने वाले लोग दुख का संबंध अपने भाग्य से जोड़ते है या फिर सारा दोष दूसरे पर या इश्वर पर मढ़ देत है। मैने अपने व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में यही अनुभव किया है। आज हम बात करेंगे विचारों पर अनुशासन रख कर कैसे दुखों पर विजय पाकर आनंदमय रह सकते है । अकसर हम तब अपनी आसपास की परिस्थितियों का विश्लेषण करने लगते है जब हमारा सोचा हुआ काम पुरा नहीं होता है। हम असफल हो जाते है तो निश्चित ही उस समय हम बेहद दुखी होते है। और इस दुख का कारण भीतर की बजाए बहार ढूंढने लगते है। मैने कई बार देखा है धर्मभीरू लोग इस दुख के लिए ईश्वर को दोष देने लगते है।

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