पैडी मशरूम से किसान और पर्यावरण दोनों को फायदा समस्तीपुर। पैडी मशरूम उत्पादन पुआल के बंडल में उगाया जाने वाला मशरूम है। यह किसानों के तिहरे लाभ का आधार है। बिहार का गौरव जिले कि शान पूसा स्थित डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के मशरूम उत्पादन एवं प्रसंस्करण निदेशालय के निदेशक मशरूम मैन डॉ. दयाराम ने उक्त बातें संवाददाता से कहीं। उन्होंने कहा कि आम तौर पर किसान पुआल का मवेशी के सूखे चारे के रूप में प्रयोग करते हैं। जिसे मवेशी बहुत चाव से नहीं खाते। चारा के रूप में पुआल की खपत काफी काम होने के कारण बड़ी मात्रा में पुआल जला दी जाती है जो पर्यावरण को दूषित करता है। इसी पुआल को उपचारित कर उसमे मशरूम के बीज बिखेड दिए जाएं तो प्रति 10 किलो पुआल के गट्ठर से 2 किलो तक मशरूम उत्पादन हो सकता है। पैडी मशरूम की फसल कटने के बाद इस पुआल को एक डेढ़ इंच के टुकड़ों में काट कर इसे ऑस्टर या दूधिया मशरूम उत्पादन में कम्पोस्ट के रूप में उपयोग कर सकते हैं। जब यह दूसरी बार मशरूम की अंतिम कटाई के बाद इसका प्रयोग मवेशी के चारे के रूप में किया जा सकता है। मशरूम के कावक जाल के करें यह न सिर्फ स्वादिष्ट व पौष्टिक चारा होता है बल्कि मवेशी भी इसे चाव से खाते हैं। फलतः दुधारू पशु के दूध उत्पादन क्षमता बढ़ जाती है। इस तरह पुआल में मशरूम की खेती करने से दो अलग अलग स्वाद वाले मशरूम, पशु के लिए पौष्टिक चारा, अपेक्षाकृत अधिक दूध तीन उत्पाद मिल जाते हैं। साथ ही पुआल नहीं जलाने से पर्यावरण को भी कोई क्षति नहीं पहुंचती है।

बिहार के समस्तीपुर जिला के पूसा प्रखंड से मोबाइल वाणी के माध्यम से अमित कुमार कहते हैं कि आजकल युवाओं का सबसे ज्यादा समस्या बेरोजगारी है। भारत को युवाओं का देश माना जाता है। लेकिन यहाँ के युवाओं को रोजगार नहीं मिल रही है।

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