भारत में जहां 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव हो रहे हैं। इन चुनावों में एक तरफ राजनीतिक दल हैं जो सत्ता में आने के लिए मतदाताओं से उनका जीवन बेहतर बनाने के तमाम वादे कर रहे हैं, दूसरी तरफ मतदाता हैं जिनसे पूछा ही नहीं जा रहा है कि वास्तव में उन्हें क्या चाहिए। राजनीतिक दलों ने भले ही मतदाताओं को उनके हाल पर छोड़ दिया हो लेकिन अलग-अलग समुदायो से आने वाले महिला समूहों ने गांव, जिला और राज्य स्तर पर चुनाव में भाग ले रहे राजनीतिर दलों के साथ साझा करने के लिए घोषणापत्र तैयार किया है। इन समूहों में घुमंतू जनजातियों की महिलाओं से लेकर गन्ना काटने वालों सहित, छोटे सामाजिक और श्रमिक समूह मौजूदा चुनाव लड़ रहे राजनेताओं और पार्टियों के सामने अपनी मांगों का घोषणा पत्र पेश कर रहे हैं। क्या है उनकी मांगे ? जानने के लिए इस ऑडियो को सुने
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किसी भी समाज को बदलने का सबसे आसान तरीका है कि राजनीति को बदला जाए, मानव भारत जैसे देश में जहां आज भी महिलाओं को घर और परिवार संभालने की प्रमुख इकाई के तौर पर देखा जाता है, वहां यह सवाल कम से कम एक सदी आगे का है। हक और अधिकारों की लड़ाई समय, देश, काल और परिस्थितियों से इतर होती है? ऐसे में इस एक सवाल के सहारे इस पर वोट मांगना बड़ा और साहसिक लेकिन जरूरी सवाल है, क्योंकि देश की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है। इस मसले पर बहनबॉक्स की तान्याराणा ने कई महिलाओँ से बात की जिसमें से एक महिला ने तान्या को बताया कि कामकाजी माँओं के रूप में, उन्हें खाली जगह की भी ज़रूरत महसूस होती है पर अब उन्हें वह समय नहीं मिलता है. महिलाओं को उनके काम का हिस्सा देने और उन्हें उनकी पहचान देने के मसले पर आप क्या सोचते हैं? इस विषय पर राय रिकॉर्ड करें
दोस्तों, प्रधानमंत्री के पद पर बैठे , किसी भी व्यक्ति से कम से कम इतनी उम्मीद तो कर ही सकते हैं कि उस पद पर बैठने वाला व्यक्ति पद की गरिमा को बनाए रखेगा। लेकिन कल के भाषण में प्रधानमंत्री ने उसका भी ख्याल नहीं रखा, सबसे बड़ी बात देश के पूर्व प्रधानमंत्री के खिलाफ खुले मंच से झूठ बोला। लोकतंत्र में आलोचना सर्वोपरि है वो फिर चाहे काम की हो या व्यक्ति की, सवाल उठता है कि आलोचना करने के लिए झूठ बोलना आवश्यक है क्या? दोस्तों आप प्रधानमंत्री के बयान पर क्या सोचते हैं, क्या आप इस तरह के बयानों से सहमत हैं या असहमत, क्या आपको भी लगता है कि चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक जाना अनिवार्य है, या फिर आप भी मानते हैं कि कम से कम एक मर्यादा बनाकर रखी जानी चाहिए चाहे चुनाव जीतें या हारें। चुनाव आयोग द्वारा कोई कार्रवाई न करने पर आप क्या सोचते हैं। अपनी राय रिकॉर्ड करें मोबाइलवाणी पर।
2024 के आम चुनाव के लिए भी पक्ष-विपक्ष और सहयोगी विरोधी लगभग सभी प्रकार के दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी कर दिये हैं। सत्ता पक्ष के घोषणा पत्र के अलावा लगभग सभी दलों ने युवाओं, कामगारों, और रोजगार की बात की है। कोई बेरोजगारी भत्ते की घोषणा कर रहा है तो कोई एक करोड़ नौकरियों का वादा कर रहा है, इसके उलट दस साल से सत्ता पर काबिज राजनीतिक दल रोजगार पर बात ही नहीं कर रहा है, जबकि पहले चुनाव में वह बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर ही सत्ता तक पहुंचा था, सवाल उठता है कि जब सत्ताधारी दल गरीबी रोजगार, मंहगाई जैसे विषयों को अपने घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बना रहा है तो फिर वह चुनाव किन मुद्दों पर लड़ रहा है।
स्मार्ट सिटी सतना द्वारा मोदी सरकार की उपलब्धियां का वीडियो चलाया जा रहा है। आखिर निर्वाचन आयोग द्वारा स्मार्ट सिटी सतना के अधिकारियों के विरुद्ध कब करवाई की जाएगी।
हमारी सूखती नदियां, घटता जल स्तर, खत्म होते जंगल और इसी वजह से बदलता मौसम शायद ही कभी चुनाव का मुद्दा बनता है। शायद ही हमारे नागरिकों को इससे फर्क पड़ता है। सोच कर देखिए कि अगर आपके गांव, कस्बे या शहर के नक्शे में से वहां बहने वाली नदी, तालाब, पेड़ हटा दिये जाएं तो वहां क्या बचेगा। क्या वह मरुस्थल नहीं हो जाएगा... जहां जीवन नहीं होता। अगर ऐसा है तो क्यों नहीं नागरिक कभी नदियों-जंगलों को बचाने की कवायद को चुनावी मुद्दा नहीं बनाते। ऐसे मुद्दे राजनीति का मुद्दा नहीं बनते क्योंकि हम नागरिक इनके प्रति गंभीर नहीं हैं, जी हां, यह नागरिकों का ही धर्म है क्योंकि हमारे इसी समाज से निकले नेता हमारी बात करते हैं।
मध्यप्रदेश राज्य के सतना जिला से मोबाइल वाणी संवाददाता संध्या विश्वकर्मा ने बताया की लोकसभा निर्वाचन 2024 के दूसरे चरण में 28 मार्च से शुरू हो रही नामांकन प्रक्रिया के लिए सतना के संयुक्त कलेक्ट्रेट भवन में तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। जगह - जगह बेरिकेड्स लगा कर प्रवेश और प्रतिबंधित क्षेत्र निर्धारित कर दिए गए हैं। अभ्यर्थी अपने नाम निर्देशन पत्र 28 मार्च से 4 अप्रैल के बीच सिर्फ 6 दिन ही प्रस्तुत कर सकेंगे।इस खबर को सुनने के लिए ऑडियो पर क्लिक करें।
कोई भी राजनीतिक दल हो उसके प्रमुख लोगों को जेल में डाल देने से समान अवसर कैसे हो गये, या फिर चुनाव के समय किसी भी दल के बैंक खातों को फ्रीज कर देने के बाद कैसी समानता? आसान शब्दों में कहें तो यह अधिनायकवाद है, जहां शासन और सत्ता का हर अंग और कर्तव्य केवल एक व्यक्ति, एक दल, एक विचारधारा, तक सीमित हो जाता है। और उसका समर्थन करने वालों को केवल सत्ता ही सर्वोपरी लगती है। इसको लागू करने वाला दल देश, देशभक्ति के नाम पर सबको एक ही डंडे से हांकता है, और मानता है कि जो वह कर रहा है सही है।
बिल पास करने के एवज में पंचायत सचिव ने मांगी थी रिश्वत, लोकायुक्त ने रंगेहाथों पकड़ा..लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लगी हुई है लेकिन इसके बावजूद रिश्वतखोर अधिकारी कर्मचारी रिश्वत लेने से बाज नहीं आ रहे हैं। सतना में लोकायुक्त ने रंगेहाथों एक पंचायत सचिव को पकड़ा है। पंचायत सचिव ने बिल पास करने के एवज में रिश्वत की मांग की थी जिसकी शिकायत लोकायुक्त रीवा में फरियादी ने की थी। लोकायुक्त ने शिकायत पर कार्रवाई करते हुए इस कार्रवाई को अंजाम दिया है।मामला सतना जिले का है जहां झरी रोड बस स्टैंड पर लोकायुक्त रीवा की टीम ने झरी गांव के पंचायत सचिव को रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ा है। आरोपी सचिव का नाम रामसनेही शिवहरे है। जिसने केला गांव के रहने वाले राजा भैय्या तिवारी से पंचायत में हुए कामों के बिलों को पास करने के एवज में 14 हजार रिश्वत की मांग की थी। पंचायत सचिव रामसनेही शिवहरे के द्वारा रिश्वत मांगे जाने की शिकायत फरियादी राजा भैय्या तिवारी ने रीवा लोकायुक्त से की थी। लोकायुक्त ने पहले तो शिकायतकर्ता राजा भैय्या तिवारी की शिकायत की जांच की और शिकायत सही पाए जाने पर जाल बिछाकर फरियादी राजा भैय्या तिवारी को रिश्वत के पैसे लेकर पंचायत सचिव रामसनेही के पास भेजा। झरी रोड बस स्टैंड पर जैसे ही रिश्वतखोर सचिव ने रिश्वत के 14 हजार रुपए लिए तभी लोकायुक्त की टीम ने उसे रंगेहाथों पकड़ लिया।