सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...

सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...

सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...

सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...

सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के बारे में एक महिला क्या सोचती है... यह जानना बहुत दिलचस्प है.. चलिए तो हम महिलाओं से ही सुनते हैं इस खास दिन को लेकर उनके विचार!! आप अपने परिवार की महिलाओं को कैसे सम्मानित करना चाहेंगे? महिला दिवस के बारे में आपके परिवार में महिलाओं की क्या राय है? एक महिला होने के नाते आपके लिए कैसे यह दिन बाकी दिनों से अलग हो सकता है? अपने परिवार की महिलाओं को महिला दिवस पर आप कैसे बधाई देंगे... अपने बधाई संदेश फोन में नम्बर 3 दबाकर रिकॉर्ड करें.

Transcript Unavailable.

आज फेलएरिया का दसवां दिन है

नमस्कार , मैं आप सभी का दीपुमाला देवी थरुहट मोबाइल वाड़ी में स्वागत करता हूं । जब बच्चा गर्भ में होता है तो वह कितनी मेहनत करती है , चम्मच और चर्चा से लेकर कठिन समय तक सब कुछ संभालती है । सभी जोखिम भरे काम पूरे हो जाते हैं , सारी आशा आशा पर टिकी होती है । कोरोना महामारी में सभी आशाएँ बहनों द्वारा पूरी की जाती हैं । वह अपने ही घर में रहता था और किसी को घर से बाहर नहीं निकलने देता था , लेकिन आशा ऐसी कड़ी है , ऐसा कर्मचारी काम करता है । कि इतनी सारी महामारियों के बाद भी उम्मीद थी , जिसकी बदौलत हर गांव में टीके लगाए जा रहे थे । यश कितना जोखिम उठाता है , फिर भी सरकार आशा के बारे में तब तक क्यों नहीं सोच रही है जब तक गर्व से जो खाट में नहीं गिर जाता । वह उसकी देखभाल भी करता है , फिर भी सरकार इसकी अनदेखी कर रही है । अभी तक कुछ नहीं हुआ है ।

दीपमाला देवी/जमुनिया से फायलेरिया की दवा खिलाने से सरकारी/गैरसरकारी विद्यालय के शिक्षक मना कर रहे है।