उत्तरप्रदेश राज्य के चित्रकूट जिला से कविता विश्वकर्मा ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि दुनिया भर में महिलाओं की हत्या की जाती है, लेकिन भारत में, महिला हत्या का सबसे क्रूर रूप नियमित रूप से होता है, इससे पहले कि उन्हें जन्म लेने का अवसर मिला हो। कन्या भ्रूण हत्या भारत में सालाना दस लाख से अधिक महिलाओं की मौत हो रही है जिसके दूरगामी और दुखद परिणाम कुछ क्षेत्रों में महिलाओं और पुरुषों का लिंगानुपात है आठ हजार से लेकर एक हजार से कम की इस संस्कृति में महिलाओं को न केवल असमानता का सामना करना पड़ता है, बल्कि उन्हें जन्म देने के अधिकार से भी वंचित किया जाता है। भारत में गर्भपात व्यावहारिक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य कन्या भ्रूण हत्या कई कारकों से प्रेरित है लेकिन मुख्य रूप से। बेटी की साली दूल्हे को दहेज देने की संभावना से प्रेरित होती है जबकि बेटे बुढ़ापे में अपने परिवार को सुरक्षा प्रदान करते हैं और मृत माता-पिता और पूर्वजों की आत्माओं के लिए संस्कार कर सकते हैं। इसे एक सामाजिक और आर्थिक बोझ भी माना जाता है, प्रसवपूर्व लिंग-जांच तकनीकों का दुरुपयोग किया गया है, जिससे चुनिंदा कन्या भ्रूण हत्या के मामलों की संख्या बढ़ रही है, हालांकि कानूनी कन्या शिशु हत्या एक दंडनीय अपराध है।

उत्तरप्रदेश राज्य के चित्रकूट जिला से कविता विश्वकर्मा ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिलाओं के विकास के लिए सकारात्मक आर्थिक और सामाजिक नीतियाँ होनी चाहिए। देश के लिए महत्वपूर्ण निर्णयों में कानूनी और समान अवसर प्रदान करना निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में महिलाओं की समान भागीदारी स्वास्थ्य गुणवत्ता शिक्षा रोजगार में समान परिश्रम सामाजिक सुरक्षा आदि तक समान पहुंच होनी चाहिए। महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने के प्रयास किए जाने चाहिए। इस प्रक्रिया को लैंगिक भेदभाव को समाप्त करना चाहिए, महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा को समाप्त करना चाहिए और नागरिक समाज, विशेष रूप से महिला संगठनों के साथ साझेदारी का निर्माण करना चाहिए। हम जानते हैं कि कोविड-19 से प्रभावित भारत की वर्तमान आर्थिक स्थिति की तो बात ही छोड़िए, महिलाएँ भारतीय अर्थव्यवस्था और रक्षा क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।

उत्तरप्रदेश राज्य के चित्रकूट जिला से कविता विश्वकर्मा ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिलाओं के लिए सहायता और सम्मान पर मेरे कुछ विचार इस प्रकार हैंः शक्ति राष्ट्रीय शक्ति का एक अभिन्न अंग है, इसे सशक्त बनाए बिना और इसमें शामिल किए बिना कोई भी राष्ट्र शक्तिशाली नहीं हो सकता है। महिला सशक्तिकरण को प्राथमिकता देने के लिए, वर्तमान भारतीय प्रधान मंत्री द्वारा महिलाओं को पुरुषों के बराबर अवसर प्रदान करने का प्रयास किया गया है, जो सुरक्षा के पांच पहलुओं पर आधारित एक व्यापक मिशन है। ये पाँच पहलू हैंः और बाल स्वास्थ्य सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा, वित्तीय सुरक्षा, शैक्षिक और वित्तीय कार्यक्रमों के माध्यम से भविष्य की सुरक्षा और महिलाओं को सलाम करना। इस प्रकार, हम पाते हैं कि जब भी राष्ट्र को सशक्त बनाने की बात आती है। जब महिला सशक्तिकरण के पहलू की बात आती है, तो किसी संस्कृति को समझने का सबसे आसान तरीका उस संस्कृति में महिलाओं की स्थिति को समझने का प्रयास करना है। इस देश में महिलाओं की स्थिति निर्धारित करने के लिए उद्योग, व्यापार, खाद्यान्न की उपलब्धता, शिक्षा आदि के स्तर के साथ-साथ उनकी स्थिति का भी अध्ययन किया जाता है।

साल 2013-2017 के बीच विश्व में लिंग चयन के कारण 142 मिलियन लड़कियां गायब हुई जिनमें से लगभग 4.6 करोड़ लड़कियां भारत में लापता हैं। भारत में पांच साल से कम उम्र की हर नौ में से एक लड़की की मृत्यु होती है जो कि सबसे ज्यादा है। इस रिपोर्ट में एक अध्ययन को आधार बनाते हुए भारत के संदर्भ में यह जानकारी दी गई कि प्रति 1000 लड़कियों पर 13.5 प्रति लड़कियों की मौत प्रसव से पहले ही हो गई। इस रिपोर्ट में प्रकाशित किए गए सभी आंकड़े तो इस बात का प्रमाण है कि नई-नई तकनीकें, तकनीकों में उन्नति और देश की प्रति व्यक्ति आय भी सामाजिक हालातों को नहीं सुधार पा रही हैं । लड़कियों के गायब होने की संख्या, जन्म से पहले उनकी मृत्यु भी कन्या भ्रूण हत्या के साफ संकेत दे रही है। तो दोस्तों आप हमें बताइए कि *----- आखिर हमारा समाज महिला के जन्म को क्यों नहीं स्वीकार पाता है ? *----- शिक्षित और विकसित होने के बाद भी भ्रूण हत्या क्यों हो रही है ? *----- और इस लोकसभा चुनाव में महिलाओ से जुड़े मुद्दे , क्या आपके लिए मुद्दा बन सकता है ??

उत्तर प्रदेश राज्य के चित्रकूट जिला से कविता विश्वकर्मा मोबाइल वाणी के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या के मुद्दे पर चर्चा किया और बताया की कैसे भ्रूण हत्या समाज के लिए बड़ी व्याधि है

बेटों की चाह में बार-बार अबॉर्शन कराने से महिलाओं की सेक्शुअल और रिप्रोडक्टिव लाइफ पर भी बुरा असर पड़ता है। उनकी फिजिकल और मेंटल हेल्थ भी खराब होने लगती है। कई मनोवैज्ञानिको के अनुसार ऐसी महिलाएं लंबे समय के लिए डिप्रेशन, एंजायटी का शिकार हो जाती हैं। खुद को दोषी मानने लगती हैं। कुछ भी गलत होने पर गर्भपात से उसे जोड़कर देखने लगती हैं, जिससे अंधविश्वास को भी बढ़ावा मिलता है। तो दोस्तों आप हमें बताइए कि * -------आखिर हमारा समाज महिला के जन्म को क्यों नहीं स्वीकार पाता है ? * -------भ्रूण हत्या और दहेज़ प्रथा के आपको क्या सम्बन्ध नज़र आता है ?

दहेज में परिवार की बचत और आय का एक बड़ा हिस्सा खर्च होता है. वर्ष 2007 में ग्रामीण भारत में कुल दहेज वार्षिक घरेलू आय का 14 फीसदी था। दहेज की समस्या को प्रथा न समझकर, समस्या के रूप में देखा जाना जरूरी है ताकि इसे खत्म किया जा सके। तो दोस्तों आप हमें बताइए कि *----- दहेज प्रथा को लेकर आपके क्या विचार है ? *----- आने वाली लोकसभा चुनाव में दहेज प्रथा क्या आपके लिए मुद्दा बन सकता है ? *----- समाज में दहेज़ प्रथा रोकने को लेकर हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है और क्यों आज भी हमारे समाज में दहेज़ जैसी कुप्रथा मौजूद है ?

भारत में शादी के मौकों पर लेन-देन यानी दहेज की प्रथा आदिकाल से चली आ रही है. पहले यह वधू पक्ष की सहमति से उपहार के तौर पर दिया जाता था। लेकिन हाल के वर्षों में यह एक सौदा और शादी की अनिवार्य शर्त बन गया है। विश्व बैंक की अर्थशास्त्री एस अनुकृति, निशीथ प्रकाश और सुंगोह क्वोन की टीम ने 1960 से लेकर 2008 के दौरान ग्रामीण इलाके में हुई 40 हजार शादियों के अध्ययन में पाया कि 95 फीसदी शादियों में दहेज दिया गया. बावजूद इसके कि वर्ष 1961 से ही भारत में दहेज को गैर-कानूनी घोषित किया जा चुका है. यह शोध भारत के 17 राज्यों पर आधारित है. इसमें ग्रामीण भारत पर ही ध्यान केंद्रित किया गया है जहां भारत की बहुसंख्यक आबादी रहती है.दोस्तों आप हमें बताइए कि *----- दहेज प्रथा को लेकर आप क्या सोचते है ? और इसकी मुख्य वजह क्या है ? *----- समाज में दहेज़ प्रथा रोकने को लेकर हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है ? *----- और क्यों आज भी हमारे समाज में दहेज़ जैसी कुप्रथा मौजूद है ?

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दोस्तों, यह साल 2024 है। देश और विश्व आगे बढ़ रहा है। चुनावी साल है। नेता बदले जा रहे है , विधायक बदले जा रहे है यहाँ तक की सरकारी अधिकारी एसपी और डीएम भी बदले जा रहे है। बहुत कुछ बदल गया है सबकी जिंदगियों में, लेकिन महिलाओं की सुरक्षा आज भी एक बड़ा सवाल बना हुआ है। देश की सरकार तो एक तरफ महिला सशक्तिकरण का दावा करती आ रही है, लेकिन हमारे घर में और हमारे आसपास में रहने वाली महिलाएँ आखिर कितनी सुरक्षित हैं? आप हमें बताइए कि *---- समाज में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है ? *---- महिलाओं को सही आज़ादी किस मायनों में मिलेगी ? *---- और घरेलू हिंसा को रोकने के लिए हमें क्या करना चाहिए ?