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उत्तरप्रदेश राज्य के जिला बस्ती से ज्योति,उम्र 32 वर्ष ,मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहती है कि लोग बच्चों के अधिक मोबाइल और टी. वी देखने से परेशान हो जाते हैं।बच्चों के मोबाइल का आदात छुड़ाने के लिए उनका टाइम टेबल बनाना चाहिए।बच्चों को सुबह और शाम में 15 -15 मिनट ही मोबाइल देने का आदत बनाना चाहिए।अगर लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल कम करेंगे तो बच्चे भी धीरे - धीरे मोबाइल का इस्तेमाल कम कर देंगे।अपने मोबाइल को दूर रखना चाहिए। काम के समय मोबाइल को दूर रखना चाहिए और नोटिफिक्शन को बंद रखना चाहिए। इससे बच्चों पर प्रभाव पड़ता है। मोबाइल में गेम और अनावश्यक एप्प को हटा देना चाहिए।
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उत्तरप्रदेश राज्य के बस्ती ज़िला के गाँधीनगर से 37 वर्षीय रानो श्रीवास्तव ,मोबाइल वाणी के माध्यम से कहती है कि आज कल सभी माता चाहती है कि अगर वो काम करे तो बच्चों को व्यस्त रखने के लिए उन्हें मोबाइल दे देती है। एक शोध के अनुसार भारत में बच्चे मोबाइल के बहुत ही ज़्यादा आदि हो गए है। जिससे उनके स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। एक साइकोलोजिस्ट ने अपने रिपोर्ट में कहा कि जिस प्रकार बच्चे टीवी और मोबाइल में समय बिता रहे है वो बहुत ही खतरनाक है। एक साल से लेकर पंद्रह साल तक के बच्चे दिन में लगभग चार से पांच घंटे तक मोबाइल और टीवी में उलझे रह रहे है। ऐसे मे जाहिर है उन्हें कई स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या आ सकती है। ऐसे बच्चों में खास कर मोटापा ,मानसिक स्वास्थ्य ,दिल की बीमारी और आँख की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
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उत्तरप्रदेश राज्य के जिला बस्ती से रानू श्रीवास्तव ,मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहती है कि डिप्रेशन कई प्रकार का हो सकता है।जिसमे से एक मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर भी कहते हैं।इसमें व्यक्ति को उदासी ,निराशा ,और काम करने की रूचि कम होती है।इस तरह का लक्षण दो सप्ताह तक बने रहते हैं।दुसरा मुख्य तनाव है परसिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर,इसमें तनाव दो साल तक बने रहते हैं।तीसरा है मौसमी भावनात्मक विकार इसमें तनाव मौसम के हिसाब से प्रभावित होता है।कम धुप के कारण लोगों में उदासी देखने को मिलता है।चौथा तरह के तनाव गर्भावस्था के समय होता है।पांचवा तरह का तनाव मासिक धर्म से पहले आता है