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मध्य प्रदेश राज्य के देवी तहसील से कनाल सिंह ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया की उनके जिले में जितनी भी आंगन बाड़ी केंद्र है उनमें सरकारी थालियों में राशन के तहत बच्चों को भोजन नहीं दिया जाता है और बच्चो के साथ भेद भाव किया जाता है।

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हमारे समाज में कुछ ऐसी मान्यताएं प्रचलित है जिन्हें अंधविश्वास कहा जाता है हालांकि कुछ लोगों के लिए यह आस्था का सवाल हो सकता है। इन मान्यताओं के कारण भारत की अधिकांश जनता अपने मन में वहम पालकर जीवन जीती है। निर्णयहीन होकर किसी अनहोनी की आशंका से डरी हुई रहती है और धर्मभीरू बन जाती है। मेरा अनुभव कहता है जो लोग अंधविश्वासों को मानते हैं वह डरे हुए ही जीवन गुजार देते हैं लेकिन साहसी लोग अपनी बुद्धि और समझ पर भरोसा करते हैं। आज हम बात करेंगे सामाजिक मान्यताएं और अंधविश्वास पर। समाज में ढ़ेरों मान्यताएं है जिनमें से कुछ को हम अपने संस्कृति का हिस्सा मानते है। तो ऐसे मान्यताएं है जो लोक परंपरा और स्थानीय लोगों की स्वीकोरोक्ति पर आधारित है हालांकि इनमें कुछ विश्वासों को अनुभव पर आधारित माना जाता है ।

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दैनिक जीवन में हम बहुत सी पाखंड की बाते देखते है। कोइ सिद्ध पुरूष यह दावा करता है कि पुत्र देने की सिद्धियां उस के पास है, तो काई धनवान बनने तो बीमारियां दूर करने का जीवन का संकट हर लेने का दावा करता है। तब लोग उनकी और आकर्षित होते है और हाथ जोड़कर अपनी मनोकामाना पूरी करने की बात करते है। मनोकामनाओं की पूर्ति का जाल फैलाकर धूर्त और पाखंडी लोगों को लुटने का कारोबार शुरू करते है। आज हम बात करेंगे ऐसे धुर्त और पाखंडी लोगों के षडयंत्र की। यह पाखंडी इतने धुर्त होते है कि इनके सामने बड़े बड़े विद्वान भी धोखा खा जाते है। यह पांखडी ग्रुप बना कर काम करता है। इनके ग्रुप में जो डीलडौल हो और किसी महात्मा जैसे दिख सकता हो को सिद्ध पुरूष बना देते है।

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अंधविश्वास लोगों के शोषण को बढ़ावा तो देता ही है, साथ में सामाजिक विकास भी बाधित करता है। अंधविश्वास के कारण आयोजित रस्मों, रिवाजों और समारोहों में लोग अपनी उर्जा, समय तथा धन की बर्बादी करते है। यह देश की आर्थिक उत्पादकता कम करने का कार्य करता है। महिलाओं को देवी मानने वाले इस देश में प्रायः महिलाओं केा जादू.-टोना के संदेह पर नंगा घुमाया जाता है, इस से महिलाओं के शोषण को बढ़ावा मिलता है। मानसिक रोगियों को भूत या बुरी आत्माओं के प्रभाव में बता कर उन्हें समुचित उपचार से वंचित रखा जाता है। देश के अलग-अलग राज्यों में अंधविश्वास उन्मूलन के लिए कानून भी बने है। दो दिन पहले हमने 75 वा गणंत़त्र दिवस मनाया है। आज हम बात करेंगे देश में 7 दशक से अधिक समय पूर्ण हो गया लेकिन अंधविश्वास उन्न्मूलन के बने कानून कितने करागर है इस पर कभी चिंतन या मंथन करने की हमनें जरूरत नहीं समझी है।

हमारा जन्म मां के गर्भ में होता है, गर्भ में संपूर्ण शारीरिक विकास की प्रक्रियां में हम गर्भ की नाल से जुड़े होते है, यह हमें सुरक्षित रखता है। क्यों कि तब हम पूर्णतः स्वतंत्र होते है, किसी वस्तू की जिज्ञासा नहीं होती है, न भविष्य की कल्पना, न अतित की चिंता होती है। लेकिन जैसे ही मां की गर्भ से बहार आते तब हमारी नाल काटी जाती है तब हमारा संबंध में मा के गर्भ की बहार की दुनिया से जुड़ता है। जहा जिज्ञासा, भविष्य की कल्पना, अतित की चिंता से लेकर अस्तित्व का विषय जुड़ जाते है। गर्भ में हम सुरक्षित महसूस करते थे, लेकिन जैसी ही गर्भ के बहार नई दुनिया में प्रवेश करते तब स्वंय को असुरक्षित महसूस करते है। मां के गर्भ से निकला शिशु प्रारंभिक अवस्था में सामन्य आवाज में भी भयभीत होता है, आवाज की ध्वनी अधिक हो तो वह रोने लगता है। मां के गर्भ से बहार निकलने के बाद शिशु का ब्रेन सामन्यतः पूर्ण खाली होता है, असुरक्षा की भवाना उसके ब्रेन के अर्धचेतन अवस्था में रिकार्ड होने लगती है। इसी असुरक्षा की भावना से भय की शुरूआत यही से होती है।