मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?

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बिहार राज्य से प्रिंस कुमार ,मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते है कि जब कोरोना काल में प्रवासी श्रमिक अपने घर आ रहे थे तो उन्हें गाँव में अलग से केंद्र में क्वारंटाइन रखा गया था। इसके बाद जब प्रवासी श्रमिक अपने घर लौटे तब भी लोग उनसे घृणा करते थे।