सवाल कभी-कभी केवल संभावनायें ही नहीं दिखाते बल्कि आपकी धारणाओं को तोड़ने और आपकी जरूरतों की तरफ मोड़ने के लिए भी बहुत उपयोगी होते हैं

पिछले 10 सालों में गेहूं की एमएसपी में महज 800 रुपये की वृद्धि हुई है वहीं धान में 823 रुपये की वृद्धि हुई है। सरकार की तरफ से 24 फसलों को ही एमएसपी में शामिल किया गया है। जबकि इसका बड़ा हिस्सा धान और गेहूं के हिस्से में जाता है, यह हाल तब है जबकि महज कुछ प्रतिशत बड़े किसान ही अपनी फसल एमएसपी पर बेच पाते हैं। एक और आंकड़ा है जो इसकी वास्तविक स्थिति को बेहतर ढ़ंग से बंया करत है, 2013-14 में एक आम परिवार की मासिक 6426 रुपये थी, जबकि 2018-19 में यह बढ़कर 10218 रुपये हो गई। उसके बाद से सरकार ने आंकड़े जारी करना ही बंद कर दिए इससे पता लगाना मुश्किल है कि वास्तवितक स्थिति क्या है। दोस्तों आपको सरकार के दावें कितने सच लगते हैं। क्या आप भी मानते हैं कि देश में गरीबी कम हुई है? क्या आपको अपने आसपास गरीब लोग नहीं दिखते हैं, क्या आपके खुद के घर का खर्च बिना सोचे बिचारे पूरे हो जाते हैं? इन सब सरकारी बातों का सच क्या है बताइये ग्रामवाणी पर अपनी राय को रिकॉर्ड करके

उत्तरप्रदेश राज्य के जिला सुल्तानपुर से गॉस मोहम्मद , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि किसान जब भी खेती करता है उसकी लागत दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रही है। लेकिन जब किसान फसलों को बेचता है तो उसको कम मूल्य मिलता है। इसमें सरकार ध्यान नहीं दे रहे है। सरकार किसानो के लिए कोई छूठ नहीं दे रही है। किसानो की मांगो को पूरा किया जाना चाहिए।

उत्तरप्रदेश राज्य के जिला मऊ से सुरेंद्र नाथ , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि किसान को एमएसपी मिलनी ही चाहिए ताकि किसानो के अपने द्वारा लगाई गई लागत को प्राप्त कर सके। हर फसल पर एमएसपी मिलनी चाहिए।

CRISIL के अनुसार 2022-23 में किसान को MSP देने में सरकार पर ₹21,000 करोड़ का अतिरिक्त भार आता, जो कुल बजट का मात्र 0.4% है। जिस देश में ₹14 लाख करोड़ के बैंक लोन माफ कर दिए गए हों, ₹1.8 लाख करोड़ कॉर्पोरेट टैक्स में छूट दी गई हो, वहां किसान पर थोड़ा सा खर्च भी इनकी आंखों को क्यों खटक रहा है? आप इस पर क्या सोचते है ? इस मसले को सुनने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें

बदलते मौसम के आज की कड़ी में हम सुनेंगे जैव-विविधता के बारे में

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उत्तरप्रदेश राज्य के जिला सुल्तानपुर से फकरुद्दीन , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि कई किसानो को भारत रत्न देने की घोषणा की गई है और दूसरी तरफ किसान अपनी मांगो को लेकर प्रदर्शन करने को तैयार है। सरकार किसानो की मांगों को मानने से इंकार कर रही है। किसान आज मजबूर हो गए है कि उनकी मांगों को माना जाए और उनकी अनाजों को उचित मूल्य दिया जाए। उनकी मांगों को नहीं मानने पर किसान दिल्ली की तरफ कूच कर रही है।

उत्तरप्रदेश राज्य के जिला सिद्धार्थनगर से अनिल , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि किसानों की मांगों को सरकार को मान लेना चाहिए क्योंकि हमारे देश के अन्नदाता हमारे देश के भविष्य है। सरकार को एम.एस.पी पर कानून बना देना चाहिए।

देश के किसान एक बार फिर नाराज़ दिखाई दे रहे हैं। इससे पहले साल नवंबर 2020 में किसानों ने केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के रद्द करने के लिए दिल्ली में प्रदर्शन किया था और इसके बाद अगले साल 19 नवंबर 2021 को केंद्र सरकार ने तीनों कानून वापस ले लिए थे, हालांकि इस दौरान करीब सात सौ किसानों की मौत हो चुकी थी। उस समय सरकार ने किसानों की कुछ मांगों पर विचार करने और उन्हें जल्दी पूरा करने का आश्वासन दिया था लेकिन ऐसा अब तक नहीं हआ है। और यही वजह है कि किसान एक बार फिर नाराज़ हैं।