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हमारे श्रोता ,मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि सरकार जिनको गरीब मान रही है ,उनको मान रही है जो प्रतिमाह तीन हज़ार रूपए भी नहीं काम पा रही है ।इसमें सरकार के क्या मानक है। गरीब की आर्थिक स्थिति आंकलन करना है तो वो स्वयं अपना देखे की एक दिन का उनका फ़ोन का खर्चा कितना है। इससे पता चल जाएगा की गरीब जीवन यापन कैसे कर पा रहा है। इससे सरकार की गरीबी पर आंख खुलेगी।

हमारे श्रोता मनोज श्रीवास्तव ,मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते है कि चीनी मांझा हर तरह से से नुकसानदेह है। पतंगे जब हवा में रहती हो तो मांझों से पक्षियों को नुक्सान होता है वही अगर टूट कर मांझा सड़क पर फंसता है तो इससे इंसानों को नुक्सान होता है। कभी इससे इतना बड़ा घटना घट जाता है जिसकी भरपाई भी नहीं हो सकती है।चूँकि चीनी मांझा सस्ता मिलता है तो लोग की दो पैसों की मोह के कारण कई लोगों की जान जा सकती है । लोगों को यह समझना ज़रूरी है कि चीनी मांझा खतरनाक है। इसका इस्तेमाल नहीं करे ताकि लोगों की जान का नुक्सान हो। पारम्परिक मांझा का उपयोग करे ,भले वो महँगे हो लेकिन इससे नुक्सान नहीं होगा

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मोबाइल वाणी के माध्यम से हमारे श्रोता यह बताना चाहते है कि अभी आगामी समय में सरकार द्वारा एक नया बिल सांसोदित करके लाया गया है। जिसमे किसी भी मोटर चालाक वाहन ड्राइवर दवारा किसी भी व्यक्ति का जान जाने पर सड़क पर उसके खिलाफ सात लाख जुर्माना और दस साल की सजा नॉन जमानती वार्रन्टी पारित हुआ है। इस पर मोटर बाइक ट्रांसपोर्ट यूनियन का बहुत बड़ा एतराज़ है और ये सही भी है क्यूंकि ये एक्ट जो है इसको संसोधित किया जाना चाहिए। हो सकता है कि जो इतनी ज्यादा घटनाएं हो रही है इसको ठीक करने के लिए सरकार द्वारा ये क़ानून लाया गया हो ताकि इस तरह की घटनाएं नहो सके। लेकिन कोई भी ड्राइवर जानबूझ कर एक्सीडेंट नहीं करना चाहेगा। ड्राइवर भी ट्रक चलकर अपना रोजी रोटी कमाते है। तो इस कानून पर सरकार को और ध्यान देने की जरूरत है। पक्ष और विपक्ष दोनों को इस कानून के सम्बन्ध में विचार करना चाहिए।

मोबाइल वाणी के माध्यम से हमारे श्रोता , यह बताना चाहते है कि 'नए कानून में जनता कहां' में जिन सवालों को उठाया गया है, वह सीधे तौर पर जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं । दरअसल नए कानून बनाने से पहले सरकार और जिम्मेदारों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि बनाया गया कानून, समाज और जनता के लिए कितना हितकारी रहेगा। अगर कोई नियम या व्यवस्था जनता के लिए बोझ या जुल्म का सबक बन जाए तो ऐसे नियम और व्यवस्था का न होना ही जनता के लिए उचित है। हालांकि जो नियम और व्यवस्थाएं बनाई जाती हैं वह समाज को अनुशासित रखने और एक सभ्य समाज के निर्माण के लिए जरूरी होती है।

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