बिहार राज्य के जिला नालंदा से शम्भू प्रसाद , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप सिर्फ वोट लें और लोगों को अपने लिए छोड़ दें क्योंकि आज के राजनीतिक दल वही काम कर रहे हैं जो गन्ना किसानों और मंटू कर रहे हैं। ऐसे लोग हैं जिनके पास केवल अपने अधिकार बचे हैं, उसके बाद भी उनके पास आधार कार्ड या कोई जानकारी नहीं है ताकि वे अपने काम के किसी भी पहलू को न खोएं। वहाँ की राशन योजना के साथ भी नहीं मिल सकता क्योंकि हमने इतने सारे खानाबदोश लोगों से बात की है क्योंकि लातूर जाति के लोग यहाँ आते हैं। और जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने कहा कि नहीं, भाई, हम इस सब के बारे में कुछ नहीं जानते हैं, इसलिए हम यहाँ से वहाँ जाते हैं। अगर उन लोगों को भी राशन कार्ड दिए जाते तो उनके बच्चे को कुछ फायदा होता। क्योंकि उनके पास कहीं भी साधन नहीं हैं, जहां वे रहते हैं, उनके बच्चे का मतलब यह भी है कि विकास का कोई भी काम नहीं किया जा सकता है।
बिहार राज्य के जिला नालंदा से अशोक चौहान , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि नेता लोग ऐसी हैं जो जी. एस. टी. के नाम पर, किसी और के नाम पर और किसी और पिछड़ी जाति के नाम पर, फिर ये लोग आपस में फूट डालते हैं और फिर यहाँ से वोट की राजनीति शुरू होती है। तो एक तरफ जातिवाद को खत्म करने की बात है और दूसरी तरफ जातिवाद का सर्वेक्षण किया जा रहा है और फिर उन्हें अलग करने और अलग से बाहर लाने की कोशिश की जा रही है क्योंकि वहां जातिवाद के प्रवेश दर को मिलाने का क्या मतलब है? आपको समझ नहीं आता कि जिस गरीब व्यक्ति को आरक्षण दिया गया है, वह गरीब व्यक्ति क्यों है जिसे आरक्षण दिया गया है और अन्य आम जातियां गरीब क्यों नहीं हैं। भले ही कई लोग गरीब हों, लेकिन कई लोगों के लिए उनकी आय भी कम हो सकती है, तो उन्हें आर्थिक देश के नाम पर आरक्षण क्यों दिया जाता है।
बिहार राज्य के जिला नालंदा से शम्भू प्रसाद , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि राजनीतिक दल अपने वोट बैंक का उपयोग करके जनता को धोखा देते हैं। वोट देने के बाद कोई भी कोई काम नहीं करता है , राजनीतिक दल केवल वोट लेने तक सीमित हैं। व्यवस्था इस तरह होना चाहिए की बाहर से आये लोगों को नागरिकता उचित तरीके से मिले।
बिहार राज्य के नालंदा ज़िला से शंम्भु प्रसाद ,मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते है कि सत्ता में विपक्ष का होना अति आवश्यक है। राजनीतिक पार्टियाँ केवल मनलुभावने वादे के साथ आते है। लेकिन काम के नाम पर कुछ नहीं दिखता है।
भारत में जहां 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव हो रहे हैं। इन चुनावों में एक तरफ राजनीतिक दल हैं जो सत्ता में आने के लिए मतदाताओं से उनका जीवन बेहतर बनाने के तमाम वादे कर रहे हैं, दूसरी तरफ मतदाता हैं जिनसे पूछा ही नहीं जा रहा है कि वास्तव में उन्हें क्या चाहिए। राजनीतिक दलों ने भले ही मतदाताओं को उनके हाल पर छोड़ दिया हो लेकिन अलग-अलग समुदायो से आने वाले महिला समूहों ने गांव, जिला और राज्य स्तर पर चुनाव में भाग ले रहे राजनीतिर दलों के साथ साझा करने के लिए घोषणापत्र तैयार किया है। इन समूहों में घुमंतू जनजातियों की महिलाओं से लेकर गन्ना काटने वालों सहित, छोटे सामाजिक और श्रमिक समूह मौजूदा चुनाव लड़ रहे राजनेताओं और पार्टियों के सामने अपनी मांगों का घोषणा पत्र पेश कर रहे हैं। क्या है उनकी मांगे ? जानने के लिए इस ऑडियो को सुने
बिहार राज्य के नालंदा जिला से शम्भू प्रसाद ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि घर के काम को पुराने ज़माने से महिलाओं की ज़िम्मेदारी ही समझी जाती है। लेकिन अब इस सोच को बदलने की आवश्यकता है। घर के काम में पुरुष को भी हाथ बटाने की आवश्यकता है, जिससे की महिलाओं को बराबर का अधिकार मिल सके
बिहार राज्य के जिला नालंदा से शम्भू प्रसाद , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि जिसमें महिलाओं को पालन-पोषण और रक्षक के रूप में देखा जाता है। इसके लिए राहुल गांधी ने सवाल उठाया है कि इसका मतलब है कि उन्हें घर के काम के लिए भुगतान नहीं किया जाता है, तो लोगों को इसका समर्थन करना चाहिए । वह घर का काम करती है, तो पुरुष उसका सम्मान नहीं करते जैसे वे सोचते हैं कि यह उनका अधिकार है, लेकिन यह उनका अधिकार नहीं बल्कि महिलाएं अपने कर्तव्य को समझती हैं, इसलिए वे काम करती हैं और इसके लिए पुरुष वर्ग को भी आगे आना चाहिए। अगर महिलायें बाहर काम करती है तो पुरुष को भी घर में खाना बनाने में उनकी मदद करनी चाहिए।
किसी भी समाज को बदलने का सबसे आसान तरीका है कि राजनीति को बदला जाए, मानव भारत जैसे देश में जहां आज भी महिलाओं को घर और परिवार संभालने की प्रमुख इकाई के तौर पर देखा जाता है, वहां यह सवाल कम से कम एक सदी आगे का है। हक और अधिकारों की लड़ाई समय, देश, काल और परिस्थितियों से इतर होती है? ऐसे में इस एक सवाल के सहारे इस पर वोट मांगना बड़ा और साहसिक लेकिन जरूरी सवाल है, क्योंकि देश की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है। इस मसले पर बहनबॉक्स की तान्याराणा ने कई महिलाओँ से बात की जिसमें से एक महिला ने तान्या को बताया कि कामकाजी माँओं के रूप में, उन्हें खाली जगह की भी ज़रूरत महसूस होती है पर अब उन्हें वह समय नहीं मिलता है. महिलाओं को उनके काम का हिस्सा देने और उन्हें उनकी पहचान देने के मसले पर आप क्या सोचते हैं? इस विषय पर राय रिकॉर्ड करें
नालंदा जिला से आकांक्षा , की बातचीत मोबाइल वाणी के माध्यम से पुष्पा देवी से हुई , पुष्प देवी बताती है कि जल जीवन मिशन के तहत समय से नहीं मिलता है पानी लोग है परेशान। सभी नल जल ख़राब हो गया है। लोगो को पानी बहुत दूर से लाना पड़ता है। चापाकल भी ख़राब है। लोग बहुत परेशान है।
नालंदा जिला से आकांक्षा , की बातचीत मोबाइल वाणी के माध्यम से पुष्प देवी से हुई , पुष्प देवी बताती है कि बेटियों को पढ़ाना बहुत जरूरी है, उसका उज्ज्वल भविष्य बनाना चाहिए। उन्हें अच्छी शिक्षा देनी चाहिए। सरकार ने बेटियों को निःशुल्क कलम ,कॉपी और पोशाक उपलब्ध करवाए है।