कोरोना संक्रमण के कारण हुए लॉकडाउन के दौरान और फिर हुए अनलॉक के बाद भी विभिन्न फैक्ट्रियों, कम्पनियों, कार्यालयों में कार्यरत कामगारों के बिना सूचना के निकाले जाने का शुरू हुआ सिलसिला अभी भी थमने का नाम नहीं ले रहा। इन खबरों के माध्यम से हम आपको बस इतना बताना चाहते हैं कि कामगारों को सिर्फ़ अभी ही नहीं निकाला जा रहा, बल्कि इनको बिना सूचना दिए काम से निकालने का क्रम तो बहुत पहले से चला आ रहा है। हाँ, उसके पीछे के बहाने जरूर बदल जाते हैं, जैसे अभी कोरोना-संक्रमण के कारण छायी वैश्विक मंदी और माँग कम होने के कारण हो रहे घाटे का है। इसलिए इन बीत चुकी खबरों के माध्यम से हमें इतिहास में झांकते हुए उससे सबक़ सीखने और खुद को विपरीत परिस्थितियों के लिए तैयार रहने की सीख मिलती है।केंद्र सरकार द्वारा मीडिया के लिए बनाए गए बोर्ड ने जब 2008 में सभी अख़बार कम्पनियों को अपने कर्मचारियों के लिए नया ग्रेड लागू करने का आदेश दिया, तब उसके ख़िलाफ़ सारी अख़बार कम्पनियाँ उच्चतम न्यायालय तक जाने के बाद भी मुक़दमा हार गयीं, लेकिन अपने कर्मचारियों के लिए नया ग्रेड लागू नहीं किया। तब उच्चतम न्यायालय ने उन्हें नया ग्रेड लागू करने और एरियर का भुगतान चार किश्तों में करने का आदेश दिया, जिसे पूरा करने का भरोसा सभी अख़बार कम्पनियों ने दिया। उस समय एक-एक कामगार को ये चौदह-पंद्रह हज़ार वेतन दे रहे थे, जबकि बोर्ड के अनुसार यह वेतन बावन से पचपन हज़ार होना चाहिए था।