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बिहार राज्य के मुंगेर जिला के हवेली प्रखंड से गोरेलाल मंडल ने मोबाईल वाणी के माध्यम से बता रहे है कि लोकतंत्र की यही परिभासा है, आज तक जितनी भी सरकार आयी है, सभी में यही हथकंडा अपनाया है। बंदूक की गोली जब निकलती है तो वो ये नहीं जानती की इस गोली से कोई मुज़रिम मर रहा है या कोई बेक़सूर।

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राजनैतिक सिंद्धांत औऱ प्रक्रियाओं में न्याय सबसे पुरानी अवधारणाओं में से एक है, न्याय के सिद्धांत को लेकर तमाम प्रकार की बातें कहीं गई हैं, जिसे लगभग हर दार्शनिक और विद्वान ने अपने समय के अनुसार समझाया है और सभी ने इसके पक्ष में अपनी आवाज को बुलंद किया है। न्याय को लेकर वर्तमान में भी पूरी दुनिया में आज भी वही विचार हैं, कि किसी भी परिस्थिति में सबको न्याय मिलना चाहिए। इसके उलट भारत में इस समय न्याय के मूल सिद्धामत को खत्म किया जा रहा है। कारण कि यहां न्याय सभी कानूनी प्रक्रियाओं को धता को बताकर एनकाउंटक की बुल्डोजर पर सवार है, जिसमें अपरधियों की जाति और धर्म देखकर न्याय किया जाता है। क्या आपको भी लगता है कि पुलिस को इस तरह की कार्रवाइयां सही हैं और अगर सही हैं तो कितनी सही हैं। आप इस मसले पर क्या सोचते हैं हमें बताइये अपनी राय रिकॉर्ड करके, भले ही इस मुद्दे के पक्ष में हों या विपक्ष में

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बिहार राज्य के मुंगेर जिला के टेटियाबम्बर से गोरेलाल मंडल मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि आजादी के बाद प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बाद अभी वर्तमान के प्रधानमंत्री नरेंद्र दास मोदी देश में हैं। जब जब जरूरत पड़ा है देश के प्रधानमंत्री अपने स्तर से सारा काम करते हैं। दूसरे देश में राष्ट्रपति सबकुछ होते हैं अपने देश में राष्ट्रपति सिर्फ सिगनेचर करने के लिए होते हैं कि संसद क्या पारित करती है उसको दस्तखत कर दें। प्रधानमंत्री जो भी कुर्सी पर रहते हैं वे अपने नजरिया से काम करते हैं उसको जनता अपने नजरिया से देखती है। लेकिन पांच वर्ष बाद जब चुनाव का संविधान में व्यवस्था है तो आपको क्या करना है क्या नहीं करना चुनाव के माध्यम से उसको कर सकते हैं। पर ऐसे कुछ करने के लिए दो तिहाई बहुमत चाहिए इसलिए ऐसे कुछ बोलने से और नहीं बोलने से उनकी कुर्सी पर असर पड़ता है

नए नए आजाद हुए देश के प्रधानमंत्री नेहरू एक बार दिल्ली की सड़कों पर थे और जनता का हाल जान रहे थे, इसी बीच एक महिला ने आकर उनकी कॉलर पकड़ कर पूछा कि आजादी के बाद तुमको तो प्रधानमंत्री की कुर्सी मिल गई, जनता को क्या मिला, पहले की ही तरह भूखी और नंगी है। इस पर नेहरु ने जवाब दिया कि अम्मा आप देश के प्रधानमंत्री की कॉलर पकड़ पा रही हैं यह क्या है? नेहरू के इस किस्से को किस रूप में देखना है यह आप पर निर्भर करता है, बस सवाल इतना है कि क्या आज हम ऐसा सोच भी सकते हैं?

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