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बिहार के जिला जमुई,प्रखण्ड सिकंदरा से विजय कुमार सिंह जी मोबाईल वाणी के माध्यम सी बता रहे है कि राज्य में चलाये जा रहे स्वच्छ भारत अभियान की सफलता में सबसे बड़ी बाधा राज्य सरकार की नीति ही बन गयी है।सरकार द्वारा शौचालय निर्माण के लिए पहले राशि नहीं दी जा रही है।यह प्रावधान किया गया है की पंचायत और वार्ड में रहने वाले सभी लोगों के घर में शौचालय का निर्माण हो जायेगा। तभी सरकार द्वारा एक साथ सभी की राशि दी जाएगी।यह अपने आप में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है।मुख्यालय से हर घर में शौचालय निर्माण का दबाव है लेकिन राशि के आभाव में गरीब लोग शौचालय का निर्माण नहीं करा पा रहे है।सरकार द्वारा शौचालय निर्माण के लिए बारह हजार की राशि दी जाती है।
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बिहार के जिला जमुई,प्रखण्ड सिकंदरा से विजय कुमार सिंह जी मोबाईल वाणी के माध्यम से बता रहे है कि आज भी आधी आबादी में असमानता दिखाई देती है।महिला साक्षरता में बिहार आज भी बहुत पीछे है। जहाँ पुरुषों की साक्षरता 71.2 फीसद है वहीं महिलाओं की साक्षरता महज 51.5 फीसद है।अगर लड़कियों को सही शिक्षा नहीं मिलेगी तो समाज में समानता की अपेक्षा कैसे की जा सकती है। महिलाओं की शिक्षा के लिए राज्य सरकार ने हाल के वर्षो में अच्छी पहल की है।सरकार ने पहली बार पंचायतों और शहरी पदों के लिए आधी आबादी के लिए आधी सीटें आरक्षित कर दी है। बालिका संघ योजना राइट टू पब्लिक सर्विस एक्ट को लागु किया गया।इसके बाद सभी तरह की सरकारी नौकरियों में 35 फीसद आरक्षण तय कर दिया गया है।आगे दहेज़ बंदी अभियान से भी मुक्ति की राह आसान हो सकती है। किन्तु तब तक पारिवारिक स्तर पर शिक्षा व्यवस्था को एक समान नहीं किया जाएगा तब तक सही मायने में महिलाओं की तरक्की संभव नहीं है।आज भी बेटे-बेटियों के परवरिश में भेदभाव किया जाता है।
बिहार के जिला जमुई,प्रखण्ड सिकंदरा से विजय कुमार सिंह जी मोबाईल वाणी के माध्यम से बता रहे है कि आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी किसानों की आमदनी में किसी प्रकार की कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है।बिहार में साल-दर-साल अच्छी पैदावार का कीर्तिमान बन रहा है।फिर भी किसानों की हालत नहीं सुधर रही है।आय के मामले में आज भी बिहार के किसान राष्ट्रीय औसत से बहुत पीछे है।आर्थिक सोच के चलते किसानों की मुश्किलें काफी बढ़ रही है। खाद्य पदार्थो में दिन-प्रतिदिन बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने का समस्त भार किसानों पर ही डाल दिया जाता है।यही कारण है की पैदावार की मुख्य कीमतें बीस वर्षो बाद भी लगभग स्थिर है।एक अध्ययन के मुताबिक 1995 से अबतक उत्पादक मूल्यों में कोई बदलाव नहीं हुआ है।1970 में जब सरकारी शिक्षकों की तनख्वाह 80 रूपया प्रति माह थी तब गेंहू का न्यूनतम समर्थन मूल्य 76 रुपये प्रति क्विंटल था।दोनों के इनकम में महज चार रुपये का फर्क था।अब 46 वर्षो में शिक्षकों का वेतन औसतन 40 हजार हो गया है। लेकिन गेंहू की कीमत महज 16 सौ रुपये प्रति क्विंटल पर अटकी हुई है।दोनों की कमाई के अंतर से किसानो की बदहाली का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।जाहिर है सबकी सुविधाएँ बढ़ रही है लेकिन किसान की नहीं।जिस प्रदेश के अन्नदाता खुशहाल नहीं रहेंगे तो उसकी तरक्की की राह आसान कैसे हो सकती है।
विजय कुमार सिंह,जिला जमुई के सिकंदरा प्रखंड से मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि प्लास्टिक एक जानलेवा जहर है।दुनियाभर में पिछले दस वर्षो में प्लास्टिक का जितना उत्पादन हुआ है उतना उसके पहले पचास से साठ वर्षो में कभी नहीं हुआ है।प्लास्टिक का उत्पादन बहुत तेजी से बढ़ रहा है और हर तरह के प्लास्टिक का उत्पादन तेजी से हो रहा है सिर्फ बोतल ही उसमे शामिल नहीं है।वही ये भी जानने को मिला है की हर मिनट एक मिलियन प्लास्टिक के बोतल लाए जा रहे है.वही दुनियाभर में यह देखने को मिलता है कि प्लास्टिक को दुनियाभर में किसी न किसी रूप में ख़रीदे और बेचे जा रहे है।आज प्लास्टिक का बड़े पैमाने पर उत्पादन हो रहा है.इसलिए अगर प्लास्टिक के उत्पादन पर ही रोक लगा दिया जाये तो इसके उपयोग को कम किया जा सकता है और इसपर काबू भी पाया जा सकता है।