एक तरफ राज्यों और केंद्र ने काम के घण्टे और काम बढ़ाने की योजना को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है क्या हम मज़दूर अब मजबूर हैं 12 घन्टे काम करने के लिए? तो क्या हम मज़दूर श्रम के बढ़ते घन्टों से पूँजी बनाने के इस चक्र में सरकार और कंपनियों की इन आर्थिक नीतियोँ के साथ हैं?