कोरोना महामारी के कारण बहुत से लोगो को अपनी नौकरी को छोड़ कर अपने राज्य वापस आना पड़ा. कई लोगो को उम्मीद थी कि उनके राज्य की सरकारें उनके लिए राहत सामग्री या वित्तीय सहायता उपलब्ध कराएंगी और कई राज्यों कराया भी . फिर भी बहुत से लोगो को मदद नहीं मिल पाईं . आखिर बिहार सरकार द्वारा 1000 रु. किसे दिया जाएगा ? जानने के लिए क्लिक करें

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साथियों, हक़ की बात कार्यक्रम के जरिये आज सुनते हैं आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत प्रवासी श्रमिकों, फेरीवालों एवं किसानो के व्यवसाय के लिए लोन के बारे में। विस्तारपूर्वक जानकरी के लिए ऑडियो में क्लिक करें

साथियों, हक़ की बात कार्यक्रम के जरिये आज सुनते हैं आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत श्रमिकों के लिए बुनियादी सहायता प्रणाली और स्वास्थ्य प्रणाली के बारे में जानकारी। विस्तारपूर्वक जानकरी के लिए ऑडियो में क्लिक करें

नौकरी जाने की ख़ुशी हम मज़दूरों को नौकर शब्द से आज़ाद करती है आखिर इन्सान क्यों किसी का नौकर हो?साथ ही हम मज़दूरों के लिये बेरोजगारी भत्ते का दरवाज़ा खोलती है और सरकार को एक और सब्सिडी का ग़म दे सकती है जहाँ बेरोज़गारों की बढ़ती तादाद के बदले सरकार को पैसा तो देना ही होगा।रफ़ी की डायरी के इस पन्ने को विस्तारपूर्वक सुनने के लिए क्लिक करे ऑडियो पर....

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रफ़ी की डायरी कार्यक्रम में आप सुनेंगे की किस तरह पूरा भारत देश कोरोना का रोना रो रहा है। खबर को विस्तार पूर्वक सुनने के लिए ऑडियो पर करें क्लिक शुक्रिया,धन्यवाद।

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कोरोना महामारी और उसके बाद सम्पूर्ण भारत में ताला बंदी संगठित व असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए कहर बरपा रही है, प्रवासी श्रमिक जो देश के नागरिक भी हैं अपने आँखों में उम्मीद लिए अपनों से मिलने की आस में थके हारे घर पहुँच तो गए लेकिन पहुँचने के बाद भी परेशानी पीछा नहीं छोडती नज़र आई। आप में से बहुत से शर्मिक ऐसे होंगे जिन्हें अपने घर पर ही 14 दिनों के लिए कोरनटाईन में रहने का सलाह दिया होगा और आपके लिए भी राशन कार्ड और खाद्यान्न मिलना सुनिश्चित होना चाहिए, लेकिन क्या सच में आप को इन सभी सुविधाओं का लाभ मिला? क्या अब तक आपको मनरेगा में काम मिला और राशन उपलब्ध कराया गया या राशन की दुकान से आपने राशन प्राप्त किया? काम और राशन न मिलने की मुख्य वजह क्या रही हैं? हम यह भी जानते हैं की आपको इनके इसके अलावा और भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ रह रहा होगा तो इन परेशानियों को अपने आप तक न रखें , मोबाइल वाणी पर साझा करें, 3 नम्बर दबाकर रिकॉर्ड करें

एक तरफ राज्यों और केंद्र ने काम के घण्टे और काम बढ़ाने की योजना को अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है क्या हम मज़दूर अब मजबूर हैं 12 घन्टे काम करने के लिए? तो क्या हम मज़दूर श्रम के बढ़ते घन्टों से पूँजी बनाने के इस चक्र में सरकार और कंपनियों की इन आर्थिक नीतियोँ के साथ हैं?