प्लान इंडिया,चेतना विकास,नव भारत जाग्रति केंद्र,यूनिसेफ,scpcr और मोबाइल वाणी के साझा प्रयास से बाल विवाह मुक्त झारखण्ड अभियान की दशवीं कड़ी में आइये हम सुनते हैं बाल विवाह से जुडी एक कहानी जिसका नाम है "बबली का सफर" इस कहानी की पिछली कड़ी में हमसे सुना कि, किस तरह एक तरफ रोज़ाना स्कूल जाने से सुनीता पढ़ाई में अच्छे से समय देकर नए विषयों में जानकारी प्राप्त कर रही है, वहीँ दूसरी ओर बबली घर पर रह कर कामकाज के साथ-साथ अपनी किताबों में लिखे विषयों को समझने के लिए संघर्ष कर रही हैं। बबली का सफर कहानी के दशवीं कड़ी में हम सुनेंगे कि, अपने संघर्ष के चलते बबली सुनीता से मिलने जाती है और अपनी आपबीती साझा करते हुए कहती है की, वो आज कल काफी चिड़चिड़ा महसूस करने लगी है जिसे सुन सुनीता बबली को समझाते हुए कहती है इस उम्र में लड़कियों के शरीर में बहुत से बदलाव आते हैं।जिसके कारण कई बार हम चिड़चिड़े हो जातें हैं। ये सारी बातों को सुनकर बबली आश्चर्य में पड़ जाती है और सुनीता से यह जानने लगती है कि उसे ये सारी बातों के बारे में कहा से जाना। दोस्तों रोज स्कूल जा कर सुनीता ना सिर्फ पढ़ाई अच्छे से कर रही है, बल्कि उसे युवा अनुकूल स्वास्थ्य सेवा के बारे में भी जानकारी मिली। उधर बबली सारे समय घर पर माता-पिता के साथ रह कर अकेली और चिड़चिड़ा महसूस करने लगी है। तो साथियों आपको क्या लगता है अगर माता-पिता अपने किशोर संतानो को उनकी जगह दे और उन्हें समझे तो क्या बाल विवाह की दरों में कमी आएगी...? आपके अनुसार हमारे समाज में इस खुलेपन की कितनी आवश्यकता है...?