टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत अब दवा दुकानदारों पर भी विभाग ने निगरानी शुरु कर दी है। प्राईवेट अस्पतालों में इलाज कराने वाले टीबी मरीजों की दवा मिलने की प्रक्रिया को अब दवा दुकानदरों के द्वारा पूरी तरह पंजी में दर्ज करना होगा। यूं कहें तो प्राइवेट स्तर पर इलाज कराने वाले मरीजों का पूरा ब्यौरा दवा दुकानदारों को रखना होगा। ऐसा नहीं करने वाले दवा दुकानदारों के विरुद्ध कार्रवाई भी की जाएगी। इसको लेकर स्वास्थ्य विभागा ने सभी सीएस के अलावे एनसीडीओ व सहायक औषधि नियंत्रक विभाग को जिम्मेदारी सौंपी है। ताकि किसी मरीजों की सही आंकलन किया जा सके। इसके तहत केवल निबंधित एवं लाईसेंस दवा दूकानदारों के द्वारा ही टीबी रोगी से संबंधित दवा का विक्रय किया जाना है। नए निर्देश के अनुसार अगर कोई दवा दूकानदार दूकान पर आने वाले टीबी मरीजों को दवा देता है तो शिड्यूल एच वन रजिस्टर में मरीजों को ब्यौरा अंकित करना है। जिसमें मरीजों का नाम, पता, मोबाइल नम्बर, उम्र, दवा शुरु करने की तिथि, डॉक्टर का नाम, पंजीकरण संख्या आदि के साथ दी जाने वाली दवाओं का ब्यौरा अंकित करना अनिवार्य कर दिया गया है। साथ ही सीएस, सीडीओ व सहायक औषधि नियंत्रक को समय-समय पर समीक्षा भी करनी है। ताकि यह पता लगाया जा सकें कि टीबी के मरीजों की संख्या व दवा की उपलब्धता हो पा रही है या नहीं। डीटीओ डॉ. विशाल कुमार ने बताया कि पत्र मिला है। इसको लेकर माइक्रोप्लान बनाया जा रहा है। ताकि टीबी मरीजों को कोई परेशानी नहीं हो सके। मिली जानकारी के अनुसार स्वास्थ्य विभाग भारत सरकार के अंतर्गत केंद्रीय यक्ष्मा प्रभाग में कार्यरत प्रतिनिधियों के द्वारा पिछले महीने बिहार के आठ जिलों का भ्रमण किया गया था। जिसमें यह पाया गया कि प्राइवेट दूकानों के द्वारा टीबी मरीजों को दवा दी जाती है। लेकिन इन दुकानदारों के पास टीबी मरीजों के बारे में कोई आंकड़ा व नाम की सूची उपलब्ध नहीं है। प्राइवेट दवा विक्रेताओं के द्वारा शिड्यूल एच वन रजिस्टर का संधारण नहीं किया जाता है।