बिहार राज्य के मधुबनी ज़िला के खुटौना प्रखंड से राम बाबू ,मधुबनी मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते है कि अनलॉक डाउन में मिली छूट से लोगों को बहुत राहत मिली है। राज्य का एकमात्र मल्टी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल इंदिरा गाँधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस के ओपीडी में मरीज़ों की संख्या बहुत सीमित है ,इससे मरीज़ों को बहुत समस्या हो रही है। सुदूरवर्ती क्षेत्र से आने वाले मरीज़ों को कई बार चक्कर लगानी पड़ती है ,इसके बाद भी उनका पंजीकरण नहीं हो पाता है। ऑनलाइन पंजीकरण व्यवस्था होने से मरीज़ ,साइबर कैफ़े में दोगुनी राशि दे कर पंजीकरण करवाना पड़ रहा है

कोरोना संक्रमण में लापरवाही

शहरों में ऑफिस दोबारा खोले जा रहे हैं लेकिन फिर भी यहां से जो छोटे—मोटे ठेले, पान की दुकानें गायब हुईं हैं वो अब भी खाली हैं. ट्रेनों में यात्रियों की भीड है पर इस भीड़ में चने—मूंगफली बेचने वाले नही हैं. क्या सोचा है आपने कि वे सब कहां गए? वे लोग जो गांव से निकलकर शहर आए थे और छोटा—मोटा रोजगार कर अपना और परिवार का पेट पाल रहे थे आखिर वे गए कहां? क्यों लॉकडाउन खुलने के बाद भी वे वापिस नहीं आए? आखिर क्या हुआ उनका? सरकार ने कोरोना राहत पैकेज के तहत स्वरोजगार करने वालों को बिना ब्याज के लोन सुविधा देने का एलान किया लेकिन फिर भी बहुत से लोग खुद को वापिस खड़ा नहीं कर पाए हैं? क्या ऐसा इसलिए है कि लोन लेने की स्थिति में नहीं हैं, क्योंकि उन पर पहले से ही कर्ज बहुत ज्यादा है? क्या अब शहरों में इन छोटे रोजगार करने वालों की जरूर खत्म हो गई है? क्या शहरों की होटलों, ढाबों या दूसरे छोटे संस्थानों में मजदूरों की मांग कम हो गई है? अगर ऐसा है तो यहां काम करने वाले पुराने मजदूर अब कहां हैं? वे कैसे अपना जीवन यापन कर रहे हैं? अगर आप ऐसे किन्ही मजदूरों के बारे में जानते हैं तो हमें उनकी स्थिति के बारे में जरूर बताएं. अपनी बात रिकॉर्ड करने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3

साथियों, क्या आपने इस कोरोना काल के दौरान आपने शिक्षकों को तलाशने की कोशिश की? क्या आपने उनसे उनका हाल जाना? क्या आपके आसपास ऐसे लोग हैं जो पहले शिक्षक थे लेकिन कोविड काल में नौकरी जाने के बाद अब कोई दूसरा काम कर रहे हैं? क्या आपको नहीं लगता कि सरकार को शिक्षकों की आर्थिक स्थिति सुधारने पर ध्यान देने की जरूरत है? स्कूल बंद होने और शिक्षकों के ना रहने से आपके बच्चों की पढ़ाई पर कितना असर पड़ा है? अगर आप शिक्षक हैं, तो हमें बताएं कि कोविड काल के दौरान आपको किस तरह की परेशानियां आईं और क्या अब आपके हालात पहले जैसे हैं? अपनी बात हम तक पहुंचाने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3.

दोस्तों, शिक्षक का पद बहुत ही गरिमामय है, वे हमेशा अपने छात्रों को स्वाभिमानी बनने की शिक्षा देते हैं, सोचिए उनके लिए यह समय कितना विकराल रहा है? स्कूल बंद, कोचिंग बंद, नौकरी नहीं, तनख्वाह नहीं... हाथ खाली और वे बस बेबस! सरकार ने गरीबों को राशन दिया, अच्छी बात है पर एक शिक्षक का आत्मसम्मान तो उसे वहां तक भी नहीं पहुंचा सकता. सरकारी शिक्षकों के पास तो फिर भी तनख्वाह पहुंच रही थी लेकिन संविदा शिक्षक, निजी स्कूल में आॅनलाइन कक्षाएं ना ले पाने वाले शिक्षकों या फिर ऐसे शिक्षक जो छात्रों तक नहीं पहुंच पाए क्या उनके साथ सबकुछ ठीक रहा? अब जबकि हालात सामान्य की ओर हैं, तब भी स्कूलों से शिक्षक नदारद हैं. कुछ ने अपने लिए नए काम की तलाश कर ली है तो कुछ रोजगार की तलाश में हैं. साथियों, हम आपसे जानना चाहते हैं... कि क्या आपने इस कोरोना काल के दौरान आपने शिक्षकों को तलाशने की कोशिश की? क्या आपने उनसे उनका हाल जाना? क्या आपके आसपास ऐसे लोग हैं जो पहले शिक्षक थे लेकिन कोविड काल में नौकरी जाने के बाद अब कोई दूसरा काम कर रहे हैं? क्या आपको नहीं लगता कि सरकार को शिक्षकों की आर्थिक स्थिति सुधारने पर ध्यान देने की जरूरत है? स्कूल बंद होने और शिक्षकों के ना रहने से आपके बच्चों की पढ़ाई पर कितना असर पड़ा है? अगर आप शिक्षक हैं, तो हमें बताएं कि कोविड काल के दौरान आपको किस तरह की परेशानियां आईं और क्या अब आपके हालात पहले जैसे हैं? अपनी बात हम तक पहुंचाने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3.

दोस्तों, लॉकडाउन के अकेलेपन को हम सबने झेला है पर खतरा अभी टला नहीं है और हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वैज्ञानिक कोरोना की तीसरी लहर आने का अंदेशा जता चुके हैं. ऐसे में क्या इस तरह की लापरवाही ठीक है? हमें बताएं कि आखिर क्यों सार्वजनिक स्थलों पर इतनी ज्यादा आवाजाही हो रही है? क्या स्थानीय प्रबंधन इसे रोकने के लिए कोई प्रयास कर रहा है? क्या केवल चालान काटने और जुर्माना लगा देने भर से कोरोना के प्रति बरती जा रही लापरवाही को रोका जा सकता है या फिर इसके लिए आम लोगों का जागरूक होना ज्यादा जरूरी है? अपनी बात हम तक पहुंचाने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3.

नमस्कार दोस्तों, पहले कोरोना आया और फिर साथ में लेकर आया लॉकडाउन, जिसने देश में हर गतिविधि को रोक दिया. जिनके घर राशन से भरे थे वे इस वक्त को गुजारते चले गए और जो हर दिन की कमाई पर निर्भर थे वे सरकारी राशन, आम लोगों की दया के भरोसे वक्त गुजारते रहे. अब अनलॉक हो चुका है, प्रवासी मजदूरों को यकीन था कि वे फिर से शहर लौटेंगे और सब ठीक हो जाएगा... पर क्या वाकई ऐसा हुआ है?दोस्तों, हम आपसे जानना चाहते हैं कि क्या आप भी इस संकट का सामना कर रहे हैं? क्या आपको भी रोजगार की तलाश करने में परेशानी हो रही है? कंपनी मालिक क्या कह कर काम देने से ​इंकार कर रहे हैं? क्या कारखानों में काम देने के पहले वैक्सीन लगवाना अनिवार्य कर दिया गया है? अगर आप अब तक को​रोना की वैक्सीन नहीं ले पाएं हैं तो इसका क्या कारण है? क्या वापिस गांव लौटने पर आपको काम मिलने की उम्मीद है? अगर आपको पहले की तरह रोजगार नहीं मिल रहा है, तो परिवार का भरण पोषण कैसे कर रहे हैं? अपनी बात हम तक पहुंचाने के लिए फोन में अभी दबाएं नम्बर 3.

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों की एक नई रिपोर्ट कह रही है कि दुनियाभर में बाल मजदूरों की संख्या में 16 करोड़ नए बच्चों ने इजाफा किया है. यह बीते 4 दशक की सबसे बड़ी बढोत्तरी है. इसके पीछे दो कारण है. पहला, परिवार की आर्थिक स्थितियां खराब हो गईं हैं इसलिए अब परिवार का हर सदस्य अपनी क्षमता के हिसाब से काम की तलाश कर रहा है और दूसरा, स्कूल बंद हैं. और भला...मजदूर के आंगन में खेलता हुआ बच्चा कब किसे अच्छा लगा है.... सो उसे भी काम की आग में झोंका जा रहा है. दिल्ली, मुंबई, सूरत, अहमदाबाद समेत कई महानगरों में बाल श्रमिकों की संख्या तेजी से बढ़ी है. जो चिंता का विषय होना चाहिए.दोस्तों --बाल मज़दूरी के बारे में आप क्या सोचते है ? -- आखिर क्यों हमें बाल मज़दूरी समाप्त करनी चाहिए ? -- आपके हिसाब से बाल मज़दूरी कारण है ? इस बारे में अपने विचार और अनुभव बताने के लिए अभी दबाएँ अपने फोन में नं 3 और रिकॉर्ड करें अपनी बात 

नेपाल सीमा सील रहने के बाद भी दैनिक उपयोग के सामानो की धड़ल्ले जारी है तस्करी | आलू प्याज चीनी मिर्च मसाला सहित कई सामानो की हो रही है तस्करी ।विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर। 

बिहार राज्य के मधुबनी ज़िला से रामानंद सिंह ने मधुबनी मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि कोरोना वायरस महामारी के कारण आँगनबाड़ी केन्द्रो पर टेक होम राशन वाली प्रथा चरमरा गई थी । पिछले चार पांच महीनों से यह कार्यक्रम बंद रहा और इसके स्थान पर लाभुकों के खाते में पोषाहार की राशि डीबीटी के माध्यम से हस्तांतरित की जा रही थी। परन्तु अब विभाग द्वारा फिर से नए निर्देश के अनुसार आँगनबाड़ी केंद्रों पर टेक होम राशन शुरू होने जा रहा है। आईसीडीएस से डॉक्टर रश्मी वर्मा कहती है कि कुपोषण के दर में कमी लाने के लिए 3 से 6 साल के बच्चों को 150 ग्राम दूध पिलाने का प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक बच्चे को 18 ग्राम दूध पाउडर 150 मिलीलीटर के शुद्ध पेयजल में घोलकर पिलाने का प्रावधान किया गया। बच्चों में कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिए साफ सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए। नियमित रूप से खाने से पहले और खाने के बाद हाथ धोया जाए और यही क्रम शौचालय में भी रखना चाहिए। आँगनबाड़ी केंद्रों पर मिल रही सुविधाओं को पारदर्शी करने के लिए अब आँगनबाड़ी केंद्रों से पोषाहार लेने के लिए टोकन प्रणाली लागू की जा रही है।