खेलकूद प्रतियोगिता का हुआ आयोजन

हंसगुल्ले:गंजा और नाई की कहानी

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अकेले गुजरे पल--दो शब्द राजीव रावत मैं आज भी अकेले नदी के किनारे पर तुम्हारे इंतजार में रोज रेत के महल बनाती हूं-- अपने उंगलियों से सहला कर आहिस्ता आहिस्ता तुम्हारे कमरे का बिस्तर बिछाती हूं-- मोटे मोटे कंकड़ो परे कर नर्म रेत का तकिया बनाती हूं- और हवा के झोकों या नदी की तेज लहर आने से पहले उसमें स्वप्नों के नये नये दरख्त उगाती हूं-- मैं जानती हूं कि पल भर में यह सब बिखर जायेगा- लेकिन मेरी जिन्दगी का वह एक पल तो कम से कम तुम्हारे अहसासों से भर कर छलक जायेगा- तुम्हारी धड़कनों की आवाजें सुकून से सोने कहां देती हैं-- शरीर की वह गंध और तुम्हारे स्पर्श का स्पंदन और तुम्हारी परिछायी तुम्हारी गुजरी राह में आज भी दिखाई देती है-- सच कहूं यह अकेलेपन की वेदना हर जगह उदास निगाहों से तुम्हें देखना बालों में तुम्हारी उंगलियों की संवेदना अधरों का अधरों पर प्यार की दास्ताँ गोदना सोते सोते अचानक चौंक कर उठ जाती हूं- एक बात पूंछू वहां खाली बिस्तर, सूने तकिये के लिहाफों और दिल के किसी कोने से अकेलेपन में क्या कभी मैं भी याद आती हूं-- राजीव रावत