राजनैतिक सिंद्धांत औऱ प्रक्रियाओं में न्याय सबसे पुरानी अवधारणाओं में से एक है, न्याय के सिद्धांत को लेकर तमाम प्रकार की बातें कहीं गई हैं, जिसे लगभग हर दार्शनिक और विद्वान ने अपने समय के अनुसार समझाया है और सभी ने इसके पक्ष में अपनी आवाज को बुलंद किया है। न्याय को लेकर वर्तमान में भी पूरी दुनिया में आज भी वही विचार हैं, कि किसी भी परिस्थिति में सबको न्याय मिलना चाहिए। इसके उलट भारत में इस समय न्याय के मूल सिद्धामत को खत्म किया जा रहा है। कारण कि यहां न्याय सभी कानूनी प्रक्रियाओं को धता को बताकर एनकाउंटक की बुल्डोजर पर सवार है, जिसमें अपरधियों की जाति और धर्म देखकर न्याय किया जाता है। क्या आपको भी लगता है कि पुलिस को इस तरह की कार्रवाइयां सही हैं और अगर सही हैं तो कितनी सही हैं। आप इस मसले पर क्या सोचते हैं हमें बताइये अपनी राय रिकॉर्ड करके, भले ही इस मुद्दे के पक्ष में हों या विपक्ष में

दिल्ली के संत नगर से राजेश कुमार पाठक मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे है की , दल बदल पहले भी हुआ करती थी, पर लोग प्रधान मंत्री पर ऐसे आरोप नहीं लगाते थे। मैं पूरी तरह से असहमत हूं कि प्रधानमंत्री ने कोई धमकी भरी माफी मांगी है। इन दिनों लोगों के पास डिग्री होती है , लेकिन लोग नैतिक मूल्य खो रहे हैं।

नए नए आजाद हुए देश के प्रधानमंत्री नेहरू एक बार दिल्ली की सड़कों पर थे और जनता का हाल जान रहे थे, इसी बीच एक महिला ने आकर उनकी कॉलर पकड़ कर पूछा कि आजादी के बाद तुमको तो प्रधानमंत्री की कुर्सी मिल गई, जनता को क्या मिला, पहले की ही तरह भूखी और नंगी है। इस पर नेहरु ने जवाब दिया कि अम्मा आप देश के प्रधानमंत्री की कॉलर पकड़ पा रही हैं यह क्या है? नेहरू के इस किस्से को किस रूप में देखना है यह आप पर निर्भर करता है, बस सवाल इतना है कि क्या आज हम ऐसा सोच भी सकते हैं?

उत्तर प्रदेश राज्य के गाजीपुर जनपद में रोजी रोटी अभियान व महिलाओं के रोजगार को लेकर क्या है लोगों की राय आप भी क्लिक कर जरूर सुनें

भारत में महिला श्रम शक्ति भागीदारी में हाल के वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, हालांकि वैश्विक औसत की तुलना में यह कम आधार पर है। ।स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया रिपोर्ट 2023 के अनुसार, भारत में महिला कार्यबल की संरचना विकसित हो रही है, जिसमें उच्च शिक्षा प्राप्त युवा महिलाओं की संख्या बढ़ रही है जो श्रम बाजार में शामिल हो रही हैं। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी कामकाजी आयु वाली आबादी होने का अनुमान है, जो 2030 तक लगभग 70% तक पहुंच जाएगी, लेकिन कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी का वर्तमान निम्न स्तर लगातार असहनीय होता जा रहा है।तो दोस्तों, हर समस्या का समाधान होता है आप हमें बताइए कि *----- महिलाएं किन प्रकार के कार्यों में अधिकतर अपना ज्यादा समय लगाती है ? *----- महिलाओं को उच्च पदों पर पहुंचने में क्या क्या चुनौतियां आती हैं? *----- आपके अनुसार महिलाओं को कार्यस्थल पर किन प्रकार के भेदभाव का सामना करना पड़ता है? और महिलाओं को उद्यमिता और स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत हैं? *----- क्या आपको भी लगता है कि समाज को इस दिशा में सोच बदलने की ज़रूरत है .?

उत्तरप्रदेश राज्य के ग़ाज़ीपुर जिला से हमारे श्रोता मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिलाओं और लड़कियों के लापता होने में सरकारी संगठन है या गैर-संगठन की जिम्मेदारियां बनती हैं, सरकार को इसके बारे में सोचना चाहिए, लेकिन सरकार सिर्फ अपनी कुर्सी बचाने के लिए, राजनीति बचाने के लिए इन चीजों पर ध्यान नहीं देती है। भेद भाव के चक्कर में अपना देश बचाने के चक्कर में रहती हैं उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है।

उत्तर प्रदेश राज्य के ग़ाज़ीपुर जिला से उपेन्दर कुमार ने देवनारायण सिंह से बातचीत की जिसमें उन्होंने जानकारी दी कि हमारे क्षेत्र में बाढ़ नहीं आता है। अगर बाढ़ आये तो हमें काफी मदद होगी। इस क्षेत्र में पानी का स्तर बहुत नीचे जा चुका है। अगर नदी पोखर में जल स्तर बढ़ेगा तो हमारे क्षेत्र के जल स्रोतों में भी पानी का स्तर अच्छा होगा। इससे किसानों को भी मदद होगी। क्योंकि यहाँ की नहरों में समय से पानी नहीं आता है। ट्यूबवेल भी खराब पड़े हैं ,सरकार का ध्यान इस तरफ बिल्कुल भी नहीं है। सरकार द्वारा समस्याओं के समाधान के लिए हेल्पलाइन नंबर तो जारी हैं। लेकिन समस्याओं का समाधान केवल कागजों पर ही दिखता है। सरकार को गंभीरता से इन विषयों पर संज्ञान लेते हुए। जनता की भलाई के लिए कार्य करने चाहिए

उत्तर प्रदेश राज्य के गाजीपुर जनपद में किसान नेता विजयबहादुर सिंह से हुई वार्ता में उन्होंने कहा कि किसानों की समस्याओं पर सरकार नहीं दे रही ध्यान जानें असली वजह

भारतीय संविधान किसी के आर्टिकल 14 से लेकर आर्टिकल 21 तक समानता की बात कही है, इस समानता धार्मिक आर्थिक राजनीतिक और अवसर की समानता का जिक्र किया गया है। इस समानता किसी प्रकार की जगह नहीं है और किसी को भी धर्म, जाति और समंप्रदाय के आधार पर कोई भेद नहीं किये जाने का भी वादा किया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार के हालिया फैसले में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि वह धर्म की पहचान के आधार भेदभाव पैदा करने की कोशिश है।दोस्तों आप इस मसले पर क्या सोचते हैं? क्या आप सरकार के फैसले के साथ हैं या फिर इसके खिलाफ, जो भी हो इस मसले पर आपकी क्या राय है? आप इस मसले पर जो भी सोचते हैं अपनी राय रिकॉर्ड करें

मोटाभाई ने महज एक शादी में जितना खर्च किया है, वह उनकी दौलत 118 बिलियन डॉलर का 0.27 है। जबकि उनकी दौलत कृषि संकट से जूझ रहे देश का केंद्रीय बजट का 7.5 प्रतिशत से भी कम है। जिस मीडिया की जिम्मेदारी थी कि वह लोगों को सच बताएगा बिना किसी का पक्ष लिए, क्या यह वही सच है? अगर हां तो फिर इसके आगे कोई सवाल ही नहीं बनता और अगर यह सच नहीं तो फिर मीडिया द्वारा महज एक शादी को देश का अचीवमेंट बताना शुद्ध रूप से मुनाफे से जुड़ा मसला है जो विज्ञापन के रुप में आम लोगों के सामने आता है। क्योंकि मीडिया का लगभग पचास प्रतिशत हिस्सा तो मोटाभाई का खुद का है और जो नहीं है वह विज्ञापन के लिए हो जाता है "कर लो दुनिया मुट्ठी में” की तर्ज पर। दोस्तों, इस मुद्दे पर आप क्या सोचते है ?अपनी राय रिकॉर्ड करें मोबाईलवाणी पर, अपने फोन से तीन नंबर का बटन दबाकर या फिर मोबाईल का एप डाउनलोड करके।