उत्तरप्रदेश राज्य के जिला ग़ाज़ीपुर से सोमारी देवी , मोबाइल वाणी के माध्यम से एक कविता सुना रही है।

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मैं आप सभी को नमस्कार करता हूं , मैं आपको एक बात बताना चाहता हूं कि एक नदी के किनारे दो लोग थे और दो लोग , एक लकड़ी काटने वाला था , वह लकड़ी काट रहा था । फिर अचानक उसका सिर नदी में गिर गया , फिर वह रोने लगा , इतना गरीब कि वह एक खिलाड़ी भी नहीं था , और फिर वह फिर से रोने लगा कि वह उस दिन से एक भी सिर लेकर बाहर आया था । ये इतना क्यों रो रहे हैं , तुम इतने दुखी क्यों हो , फिर मैंने अपनी माँ से बात करना बंद कर दिया , एक खिलाड़ी आधे लकड़ी से हमारे घर को अवरुद्ध कर रहा है और उस खिलाड़ी ने इस नदी को जीत लिया । जिसे उन्होंने पहले एक सिल्हड़ी दी और कहा कि खिलाड़ी के बारे में , फिर उन्होंने उस लकड़ी में कहा कि नहीं यह मेरा नहीं है तो पदी कैसी खिलाडी तो उन्होंने कहा कि नहीं यह भी मेरा खिलाड़ी नहीं है । ऐ है तो फिर वो लो आगे फुलादी थी तो उस पेया कोलादी थी , तो उसने कहा कि हाँ यह मेरी कुल्हाड़ी है , इसलिए माँ उसकी ईमानदारी से खुश थी , इसलिए तीनों कुल्हाड़ी खुद से खुश थे । सीता सीता ने उनसे पूछा कि भाई , आपने आपको फिर से कहाँ भेजा , उन्होंने सब कुछ बताया , उन्होंने भी जानबूझकर नदी की कुल्हाड़ी नहीं गिराई , फिर उन्होंने कुल्हाड़ी गिरा दी । कुल्लाडी थी ने कहा कि यह आपकी खुल्लड़ी है , उस व्यक्ति ने कहा कि हां यह मेरी खुल्लड़ी है , फिर उसने कहा कि आप बहुत चुटीले हैं , आपको कुछ नहीं मिलना चाहिए , इसलिए वह माता जी के पास गया और यह व्यक्ति भी अपनी मां के पास गया ।

यह कविता आज़ादी से पहले " रामप्रसाद बिस्मिल " जी द्वारा लिखी गई थी

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