बाराचकिया में अखिल भारतीय केन्द्रीय गौ सेवा के संरक्षक शंकरलाल ने कहा कि हम अगर भारतीय गाय की शरण में जायें। इसके पंचगव्य का उपयोग करें तो हमारे जीवन में आमूलचूल परिवर्तन स्वत हो जाएगा। एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति रोगी का नहीं रोग का इलाज करती है जिसके कारण एक रोग ठीक होता है दूसरा प्रारंभ हो जाता है। उन्होंने बताया कि गौमाता के एक ग्राम गोबर में लगभग चार सौ करोड़ सूक्ष्म जीवाणु विद्यमान हैं। गोबर की गंध से ही केंचुआ सक्रिय होकर भूमि को उर्वरा बनाता है।