संतों की संगति से ही भक्ति तथा भक्ति से भगवान की प्राप्ति होती है। भगवान की कथा को मनोयोग से सुनना और उसके अनुसार आचरण करना भी भक्ति का अनुपम उदाहरण है। ये बातें अपने आठवें दिन के प्रवचन के क्रम में अयोध्या से पधारे संत आचार्य रामप्रवेश दास जी महाराज ने हनुमानगढ़ी मंदिर परिसर में जनसहयोग से चल रहे संगीतमय श्रीराम कथा के आठवें दिन के प्रवचन के दौरान उपस्थित जनों से कही। उन्होंने भरत -चरित्र, केवट प्रसंग, राम का दंडक वन में प्रवेश, जटायु मिलन, सीता हरण, श्री राम का विलाप तथा शबरी उद्धार की संगीतमय कथा सुनाते हुए कहा कि जीवन में गुरु का होना आवश्यक है। जिसने अपने गुरु का आदर किया उसने सब कुछ पा लिया। उन्होंने बताया कि जिसका मन और वाणी सम्पूर्ण रुप से भगवान में लग जाता है वह वेदों के अध्ययन ,तप और त्याग का फल प्राप्त कर लेता है। यमराज क्रोधी मनुष्य के यज्ञ,दान,तप आदि कर्मों को हर लेते हैं। क्रोध नहीं करनी चाहिए। क्रोधी मनुष्य का सारा परिश्रम बेकार चला जाता है। जिस प्रकार जहाज समुद्र को पार करने का साधन है उसी प्रकार ही सत्य स्वर्गलोक जाने की सीढ़ी है। जिस प्रकार रुखा भोजन मनुष्य को तृप्ति प्रदान नहीं करता है उसी प्रकार ही मधुर बचनाें के बिना दिया हुआ दान भी बेकार हो जाता है। उन्होंने बताया कि धन की सार्थकता दान में,शरीर की सेवा में,भगवान के गुणगान में तथा परोपकार में किया जाना चाहिए।उन्होंने बताया कि हमें आज के काम को कल पर नहीं छोड़ना चाहिए। जो आज के काम को कल पर छोड़ता है या टालमटोल करता है वह जीवन संघर्ष में क भी भी सफल नहीं हो सकता है।इस अवसर पर आयोजक मंडल के मुख्य यजमान दम्पति प्रो.बिंदा प्रसाद,पुकुल श्रीवास्तव व अधिवक्ता ओमप्रकाश सहित उपस्थित थे।
