तीन वस्तुओं वाणी,पानी और कर्माणि अर्थात आमदनी को कभी नहीं बिगाड़ना चाहिए क्योंकि इसके बिगड़ जाने से जीवन में परेशानियों का दौर शुरु हो जाता है।आय तभी शुद्ध होती है ,जब उसके दशांश का दान कर दिया जाता है। ये बातें अपने सातवें दिन के प्रवचन के क्रम में अयोध्या से पधारे संत सह आचार्य रामप्रवेश दास जी महाराज ने हनुमानगढी मंदिर परिसर में आयोजित संगीतमय श्रीरामकथा के सातवें दिन उपस्थित श्रद्धालुओं से कही।उन्होंने अयोध्याकांड के अंतर्गत राम-सीता वनगमन,केवट प्रसंग,भगवान राम का चित्रकूट निवास व भरत-चरित्र की संगीतमय कथा सुनाते हुए कही।उन्होंने बताया कि मानव मात्र को कभी अहंकार नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि जल से भरे एक घड़े में हम एक-एक कर के पत्थर डालते जाते है तो धीरे-धीरे वह घड़ा कंकड़ से भर जाता है तथा जल से रिक्त हो जाता है। वैसे ही यदि हम अपने शरीर रूपी घड़े में, अंधकार रूपी कंकड़ ज्यादा डालेंगे तो हमारा शरीर शीलगुण रूपी पानी से रिक्त हो जायेगा। मानस की केवल एक चौपाई भी पूरी तरह से टूट चुके जीर्ण-शीर्ण हो चुके मनुष्य को पुन उसके वास्तविक स्वरूप जैसा पवित्र कर देती है। आचार्य ने कथा में उपस्थित महिलाओं को यह सलाह दी कि वे ब्रह्म मुहूर्त अर्थात तीन से चार बजे तक उठ जायें और अपने-अपने इष्ट देव, कुलदेव व गुरु का ध्यान करके ही कामकाज करें। इससे घर-परिवार में सुख-शांति कायम रहती है।
