आधुनिक जीवन में अधिक से अधिक सुखों की चाह में मनुष्य अधिक दुखी होता जा रहा है। यदि हम हर घड़ी यह मान लें कि ईश्वर ने सबसे सुखी हमें ही बनाया है तो हम दुखों को जीवन में आने से टाल सकते हैं। प्रभु श्री राम की दृढ़ निष्ठा और विश्वास से भक्ति करें तो परम सुख और वैभव को प्राप्त कर सकते हैं। ये बातें छठे दिन के प्रवचन के क्रम में अयोध्या से पधारे संगीतमय श्री रामकथा वाचक रामप्रवेश दास जी महाराज ने हनुमानगढ़ी मंदिर परिसर में आयोजित संगीतमय श्रीरामकथा ज्ञानयज्ञ के कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालुओं से कही। उन्होंने पुष्पवाटिका में राम व सीता के प्रथम मिलन का संगीतमय वर्णन करते हुए बताया कि गुरुदेव की आज्ञा लेकर श्री राम व लक्ष्मण पुष्पवाटिका में जाते हैं ,उधर सीता जी भी गौरीपूजन के लिए पुष्पवाटिका में आती है। इस प्रकार राम व सीता का प्रथम मिलन पुष्पवाटिका में होता है। इस दौरान ‘राम सिया के मधुर मिलन से फूलबगिया हर्षाए.. कोयलिया कजरी गाए’ आदि भक्तिगीतों पर उपस्थित लोग भाव विभोर हो गये। भागवत कथा में हुई गुरुजनों की सेवा पर चर्चा मिस्कॉट के स्राइं मंदिर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दशम स्कंद की संगीतमय कथा सुनाते हुए आचार्य सुमन पाण्डेय ने बताया कि प्राचीनकाल में लोग लम्बी उमर तक जीते थे। इसका कारण यह था कि वे लोग प्रतिदिन अपने माता-पिता और गुरुजनों को प्रणाम किया करते थे। मनुस्मृति में यह लिखा हुआ है कि जो अपने माता पिता और गुरुजनों की सेवा करता है ,उन्हें प्रणाम करता है उसकी आयु,विद्या,यश और बल की वृद्धि होती है। अनादिकाल से महापुरुषों ने भी अपने जीवन में माता पिता और गुरुजनों का सम्मान किया है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने बालकाण्ड में स्पष्ट किया है कि ‘प्रातकाल उठि कै रघुनाथा,मातु पिता गुरु नावहिं माथा’। इस अवसर पर आयोेजक मंडल के सदस्यों सहित अनेक स्थानीय भक्तगण उपस्थित थे।
