बिहार राज्य के गिद्धौर जिला से संवाददाता रंजन ने मोबाइल वाणी के माध्यम से कहा कि हमारे समाज में होली की परंपरा आज भी जीवित है। संवाददाता ने बताया की जिस दिन होलिका दहन होता है, तो हमारे आस-पास के लोग बूढ़े, बच्चे और जवान लोग अपने घरों से होलिका दहन को देखने के लिए आते है और इसके चारो तरफ गोल-गोल घूमते है। उसके बाद अपनी हर बुराईयों को दूर भागने के लिए प्राथना करते है। ठीक उसके दुसरे दिन होली खेलना सुरु कर देते है। संवाददाता कहते है कि पहले के समय में ग्रामीण के युवा और बुजुर्ग लोग ढोल और झाल लेकर पवित्र स्थान पर बैठ कर होली गीत संगीत का आयोजन करते थे। पहले के समय में ग्रामीण इलाकों में जब होली का गीत संगीत का आयोजन किया जाता था तो उस समय एक युवा महंत का भी चुनाव होता था। साथ ही यह भी परंपरा थी की उस युवा महंत को होली में अपने घर पर बुलाते थे। आज भी कुछ ऐसे जगह है जहाँ पर यह परंपरा कायम है। संवाददाता ने यह भी कहा कि सुबह होते ही अपने अपने समाज के लोग ढोल झाल लेकर सभी अपने समाज के घरों में जाते है और होली खेलने के साथ साथ गीत संगीत का भी आयोजन किया जाता है। साथ ही होलिका दहन की राख से होली खेलते है। जिसे धुरखेल के नाम से जाना जाता है। संवाददाता ने यह भी कहा कि शाम होते ही बच्चे और युवा हाथों में गुलाल लेकर अपने माँ बाप को पैरों में गुलाल लगाकर आशीर्वाद लेते है।