बिहार राज्य के जमुई जिला के गिद्धौर प्रखंड से मोबाइल वाणी के माध्यम से संदीप कुमार से श्रमिकों के बारे में बातचीत कर रहे है,जिसमे संदीप जी का कहना है कि ये पंजाब में धागा फैक्ट्री में काम करते है और ये इन्होनें किसी दूसरे के माध्यम से खोजा। उन्होंने यह भी बताया की उन्हें वहाँ के स्थानीय लोगों की बाते समझ नहीं आती, वो उनकी बातें तो सुन लेते पर उन्हें उनका जवाब नहीं दे पाते ,इस तरह से उन लोगो को भाषाओं को लेकर बहुत परेशानी होती है। वहाँ के फैक्ट्री में वहाँ के स्थानीय लोगों को काम नहीं दी जाती क्यूंकि वो कम मजदूरी में ज्यादा काम नहीं करना चाहते। उन्हें पैसे ज्यादा चाहिए होता है साथ ही वे लोग आपस में ही दंगा फ़साद करने लग जाते है। किसी भी मुद्दे पर इस वजह से उन्हें काम नहीं दी जाती। जबकि जो वहाँ काम के सिलसिले में गए हैं उन्हें काम जल्दी मिल जाता है,क्यूंकि ये लोग कम मजदूरी में ज्यादा काम कर लेते है,क्यूंकि ये लोग उसी मकसद से गए हैं। उनका काम करना ही एक लक्ष्य रह जाता है। इसलिए ये मजदुर जैसा भी काम हो स्वीकार लेते है। वहां उनका अपना कोई नहीं होता। उन्हें अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती है। उनके दौरान हमें यह भी जानकारी मिली की उन मजदूरों से लगभग चौदह से पंद्रह घंटे काम करवाए जाते है और उन्हें वो काम पूरी सिद्दत से करनी पड़ती है वहाँ उन्हें उनके अनुसार रहना पड़ता है खुद को उनके इशारे पे ढलना पड़ता है।कभी वहाँ किसी भी बात पे विवाद छिड़ जाए तो वहाँ के फैक्ट्री वाले उस बात को फैक्ट्री के अंदर ही दबा कर रख लेते यही। सरकार तक उन मजदूरों की बात पहुंच ही नहीं पाती। इसी दौरान संदीप से पूछा गया की उनके साथ हो रहे दुराचार से कैसे उन्हें या उनके साथी को बचाया जाए तो उन्होंने बताया की सरकार को वैसी ही फैक्ट्रियां अपने शहर में दी जाए, ताकि हम जैसे मजदूरों को बाहर काम करने के लिए नहीं जाना पड़ेगा।