बिहार राज्य के जमुई जिला के गिद्धौर प्रखंड से रंजन कुमार मोबाइल वाणी के माध्यम से बनाडीह गांव के रवि पंडित से प्रवासी मजदूरों के बारे में बातचीत कर रहे है जिसमे रवि जी का कहना है कि प्रवासी मजदूरों को वहां के रहन सहन भाषा सबकी परेशानी होती है प्रदेश के लोग प्रवासी लोगों को मजदुर की दृष्टि से देखते हैं और उनकी हिंदी भाषी को गलत मतलब देते हैं।इसलिए उन्हें अपना गांव वापस आना पड़ा। उन्हें सरकार द्वारा चलाई गई कोई भी योजना का लाभ नहीं मिलता साथ ही उन्हें एक कमरा दिया जाता है और आठ से दस मजदूरों को रहने पर बाध्य किया जाता है अगर उन्होंने विरोध किया तो मार पीट तक बात आ जाती है, इसलिए प्रवासी लोग शांत रहकर चुपचाप उनकी बातों का पालन करते हैं।वहाँ उन्हें डर कर रहना पड़ता है। क्योंकि उनके साथ छोटे-छोटे बच्चे होते हैं। अगर उनसे ज्यादा बात हुई तो वो लोग मारने पे उतर आते हैं।उनकी हिंदी भाषी को निचा नजर से देखा जाता है।उनके बिहारी होने की वजह से उनको साथ बैठने तक नहीं दिया जाता है। रवि पंडित ने बताया की वो लोग वहाँ भगवान् भरोसे रहते हैं क्यूंकि वहाँ उनका और कोई अपना नहीं होता।साथ ही वहाँ उनके रहने का कोई उचित जगह नहीं होता न ही निश्चित काम।उनहोंने अपने सपने के बारे में भी कहा की, उनका सपना था की वो काम करेंगे और वापस आकर अपने बच्चों की पढ़ाई पूरी करेंगे और साथ ही बूढ़े माँ बाप के सपनो को पूरा करेंगे।परन्तु उनके सपने अधूरे रह गए और वो वहां से जान बचा कर भाग आए अपने गांव।