गुजरात राज्य के अहमदाबाद से हमारे श्रोता राजेंद्र साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से कोरोना पर आधारित एक गीत की पेशकश कर रहे हैं

हमारे श्रोता साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे है कि उनहोंने अहमदाबाद में करीबन 10 साल काम किया फिर कोरोना के कारन हुवे लॉक डाउन की वजह से उन्हें वापस अपना घर आना पढ़ा। बता रहे है कि अभी उनके पास वापस काम में जाने के लिए कोई सुविधा नहीं है

दिल्ली से रफ़ी जी साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से अहमदाबाद के रहने वाले एक श्रमिक भाई अनिल से वार्ता कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कंपनी में काम करते समय उनके साथ दुर्घटना हुई थी। जिसमें उनके हाँथ में गंभीर चोटें आईं हैं और कंपनी ने न कोई बीमा की ,न ईएसआई कराई थी और कंपनी ने उनको नौकरी से निकाल भी दिया है।

गुजरात राज्य के अहमदाबाद से हमारे एक श्रोता ,साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते है कि वो सात साल से कंपनी में कार्य कर रहे है। उन्हें 5000 रूपए वेतन मिलता है। वेतन भी बढ़ाया नहीं जाता है। उनका पीएफ भी नहीं कटता है। इसके लिए वो क्या करें?

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अगर आपकी कंपनी में 20 या 20 से अधिक मज़दूर काम करते हैं तो आपकी कंपनी को पीएफ का योगदान देना अनिवार्य है। कंपनी मज़दूरों के पीएफ का पैसा देने से मना नहीं कर सकती, क्योंकि वह मज़दूरों का पैसा है। लेकिन अगर कम्पन्यां ऐसा करती हैं तो आप इसकी शिकायत जरूर करें। ऑनलाइन शिकायत करने के लिए वेबसाइट- http://epfigms.gov.in/ खोलें और स्टेटस में पीएफ सदस्य या ईपीएस पेंशनर चुनें, यदि आप पेंशनर हैं। यदि आपके पास अपना यूएएन नंबर नहीं है या आप ऑनलाइन पोर्टल का उपयोग करना नहीं जानते, तो आप एक विस्तृत शिकायत पत्र भी लिख सकते हैं, जिसमें आपको अपनी कंपनी का नाम, आपकी कंपनी द्वारा निर्गत परिचय पत्र संख्या और आपके काम करने के दिन जैसे विवरण लिख कर परेशानी का कारण बताते हुए परिचय पत्र, वेतन पर्ची, नियुक्ति पत्र आदि का ज़ेरॉक्स संलग्न करते हुए उसे जमा कर दें। अगर आपकी समस्या का हल नहीं मिलता है तो आप एक लेबर ऑफिस भी जा सकते हैं, जहां लेबर अधिकारी आपके और आपकी कंपनी के बीच सुलह करवाने कि कोशिश करेंगें, और समझौता ना होने पर वे आपका केस लेबर कोर्ट में भेज देंगे। मज़दूरों का शोषण इसलिए होता है क्योंकि कम्पन्यां मज़दूरों को अलग-अलग बाट कर रखना चाहती है, और वे इसमें सफल भी हुऐ हैं, कोई भी मजदूर यूनियनो के साथ नहीं जुड़ते और जिसका सीधा फायदा कम्पन्यां उठाती हैं। दूसरी बात यह है कि मज़दूरों को अपने हकों के बारे में कोई जानकारी नहीं होती और आखिर में जब उन्हें अपना पीएफ-ईएसआई का लाभ चाहिये होता है तब वो कंपनी से सरकारी दफ़्तर और सरकारी दफ़्तर से कंपनी दौड़ते रहते हैं। मज़दूरों में जबतक एकता और अपने हकों के बारे में जानकारी नहीं होगी तब तक उनका शोषण हर तरफ़ से होता रहेगा। एकता कि ताकत को मज़दूर अभी तक नहीं समझ पाए हैं।
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Sept. 7, 2020, 5:36 p.m. | Tags: govt entitlements   int-PAJ   industrial work   workplace entitlements  

- कारखाना श्रमिक सुरक्षा संघ नारोल का लीगल रजिस्ट्रेशन का गठन किया गया। - कारखाना श्रमिक सुरक्षा संघ नारोल के द्वारा टीबी (TB) के मरीज़ों को 50 राशन किट का वितरण की गई। - कोरोना एक्ट ऑफ़ गॉड जी एस टी कलेक्शन 2.35 लाख करोड़ काम हुआ। - नारोल में 15 दिन से भारी बारिश से सड़कों के हालत ख़राब ,दुर्घटनएं बढ़ी। - बैंक में लस्ट 4 साल से सर्विस चार्ज के नाम पर 15 हजार करोड़ रूपये कि की वसूली।

Transcript Unavailable.

अहमदाबाद से दुर्गाराम साझा मंच मोबाईल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि ठेकेदारी प्रथा में काम करनेवाले श्रमिकों का ठेकेदार आर्थिक और शारीरिक रूप से शोषण करते हैं। सरकार द्वारा लाए जा रहे नए श्रम क़ानून के माध्यम से इनके साथ बड़ी कम्पनियों में काम करनेवाले श्रमिकों का भी शोषण होगा। सरकार को चाहिए कि सरकार कम्पनियों के साथ ठेकेदारों को भी इस तरह नियमों के दायरे में ले आए, जिससे वे मनमानी करते हुए श्रमिकों का शोषण न कर सकें।

अहमदाबाद, गुजरात से अरूण साझा मंच मोबाईल वाणी के माध्यम से सरकार से निवेदन कर रहे हैं कि कपड़ों की जो सिलाई यूनिट अभी किसी तरह चालू हुई हैं, लेकिन बीस-बाईस हज़ार कमाने वाला कामगार आज नौ-दस हज़ार पर काम करने को तैयार है। इस स्थिति में उनका जीविकोपार्जन मुश्किल हो गया है। इसे देखते हुए सरकार को उनकी मदद करनी चाहिए और मज़दूरों के जनधन खातों की तरह उनके खातों में भी आर्थिक मदद भेजनी चाहिए।

अहमदाबाद से दुर्गा राम साझा मंच मोबाईल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि लॉक डाउन में किसी तरह घर गए कामगार तीन गुना अधिक किराया देकर जब काम पर आए, तो महीने में सिर्फ़ पंद्रह दिन काम देकर कम्पनी मालिक पारिश्रमिक में तीस प्रतिशत की कटौती कर वेतन दे रहे हैं। इसपर सरकार को ध्यान देना चाहिए और यह खबर समाचारों का हिस्सा बननी चाहिए।

श्रोताओं मै रंजीत एडवोकेट आजीविका ब्यूरो से, पूरे देश में अभी नहीं तो कभी नहीं अभियान चला रहें है,जिसके लिए आप सभी की भागीदारी जरूरी है। लॉकडाउन के वजह से बढ़ती मुश्किलों के बाद प्रवासी श्रमिक घर यानी गांव जा रहे हैं कई साथी अब घर पर ही हैं, लेकिन हां कभी ना कभी उन्हें वापस काम पर जाने की जरूरत होगी। - फिर से ऐसी बुरी परिस्थितियों में जाने से कैसे बचें? - श्रोताओं, कार्य क्षेत्र में फिर से वापस जाने से पहले, क्या आप बेहतर काम करने की स्थिति को सुरक्षित करने के लिए कदम उठा सकते हैं? क्या आप एक-दूसरे के बीच बात कर सकते हैं, ठेकेदार और नियोक्ता के साथ स्पष्ट रूप से बात कर सकते हैं, सामूहिक रूप से काम कर सकते हैं ताकि नियोक्ता बेहतर शर्तों और सुविधाएं प्रदान करने के लिए मजबूर हों? - वापस मत जाइए जब तक आपको मिनिमम मजदूरी का आश्वासन नहीं दी जाती है, वापस काम पर मत जाइए तक काम के घंटे का आश्वासन नहीं दिया है, तब तक काम पर वापस न जाएं,जब तक आपने रोजगार आदि का प्रमाण नहीं दिया है, तब तक पीछे न हटें। जुड़े रहें अभी नहीं तो कभी अभियान से ,साझा मंच पर कॉल करें