जीवन चुनौतियों से भरा होता है। जीवन के अंतिम साँस तक कोई न कोई चुनौती किसी न किसी रूप में हमारे सामने आकर खड़ी रहती है। ऐसे में बात करें मजदूर भाइयों की तो,जीवन की आधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने और परिवार का भरण-पोषण करने के चक्कर में ये कब मानव से मशीन बन गए खुद इन्हें भी पता नही है। ज़्यदातर मजदूरों की ज़िन्दगी घर से फैक्ट्री और फैक्ट्री से घर तक ही सिमट कर रह जाती है। इससे परे न वो सोच पाते हैं और न ही सोचने का समय मिलता है। खुद के लिए सोचना ,अपनी पसंद के लिए समय निकालना,समाज में लोगों के साथ मिलना जुलना,इत्यादि , ये वो पहलू है जो हमें इंसान बनाते हैं।इसलिए हमें काम और खुद के बीच तालमेल बैठाने की कोशिश करनी चाहिए।खुद के सुकून का ध्यान नही रखेंगे तो हम ज़िन्दगी को नही जी पाएंगे,बल्कि ज़िन्दगी हमें जीने लगेगी। इस बात का अंदाज़ा मानेसर फैक्ट्री के मजदूर भाइयों को भी हुआ था और बिना देर किये उन्होंने आपस में मिलना-जुलना, इत्मिनान से खूब बातें करना,गाना-बजाना,हंसना-हँसाना शुरू किया और काम के साथ-साथ अपने लिए खूबसूरत पलों को जीना शुरू किया। साथियों, अब आप हमें बताएं.... क्या आप और आप के साथी अपने शौक के लिए समय निकालते हैं ? आप के फैक्ट्री में काम का महौल कैसा है ? काम के तनाव के साथ हम कैसे खुद को खुश रख सकते हैं ?