दिल्ली एनसीआर के नॉएडा से कांता प्रसाद ,साझा मंच मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते है कि उन्हें मज़दूरों की डायरी पसंद आई। यह बात सच है कि पूंजीपति वर्ग हमेशा से मज़दूरों को मज़बूर ही समझते आए है। मज़दूरों का कोई नहीं है ,न ही सरकारी तंत्र ,न श्रम विभाग न लेबर कोर्ट। इस कारण उनका कोई कार्य नहीं हो पाता है। ऑडियो पर क्लिक कर सुनें पूरे विचार...