झारखंड राज्य के बोकारो जिला के जरीडीह प्रखंड से सुरेंद्र नाथ महतो मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं, कि सकारक द्वारा हर क्षेत्र में पौध रोपण किया जाता है। परन्तु मनुष्य अपनी सुख सुविधाओं के कारण जंगलो को नष्ट कर देते हैं। जिसके कारण जंगलो में रहने वाले जीव जन्तु शहरो की ओर अपना रुख अपना लेते हैं। जिनमे से एक हांथी है जो अपनी भूख मिटाने के लिए गांव और बस्ती में आ जाता है। लोग हांथी को भागने के लिए मसाल,टायर,पटाखा जला कर अपने गांव की रक्षा करते हैं। अतः सरकार द्वारा जंगलो में तालाब का निर्माण करवाना चाहिए।
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झारखण्ड राज्य के धनबाद ज़िला के बाघमारा प्रखंड से बीरबल महतो झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि राज्य में लगातार पेड़ों की कटाई के कारण जंगल नष्ट हो रहे हैं जिससे हाथियों का झुण्ड जंगलों को छोड़ भोजन की तलाश में अपना रुख गांव की तरफ़ मोड़ लेते हैं।गांव में प्रवेश करते हुए किसानों की फ़सलों को रोंद देते हैं जिससे किसानों को काफ़ी नुकसान हो जाता हैं।गांव के लोग हाथियों को खदेड़ने के लिए मसाल के प्रोग के साथ साथ एल.ई.डी को भी प्रोग में लाते हैं।हाथियों के उत्पात से जो भी नुकसान किसानों को होते हैं उनके मुआवज़े की घोषणा सरकार करती तो हैं परन्तु इसकी प्रक्रियाँ इतनी लम्बी रहती हैं कि गरीब किसान कभी कभी मुआवज़े के तौर पे मिलने वाली रक़म से वंचित रह जाते हैं। हाथियों के गांव में प्रवेश होने का मुख्य कारण वनों की हो रही धड़ाधड़ कटाई हैं। इसमें सबसे बड़ा हाथ इंसानों का ही हैं जो अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पेड़ों की कटाई कर रहे हैं और इसकी भरपाई हेतु पौधरोपण का विचार नहीं रखते।
झारखण्ड राज्य के हज़ारीबाग ज़िला के विष्णुगढ़ प्रखंड से राजेश्वर महतो झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि गजराज की लगातार घटती संख्या ,राष्ट्रीय वन्य उद्यान अभयारण के कर्मियों के बीच एक चिंता का विषय बन गया हैं। देश के विकास के नाम पर हो रही आधुनिकरण जैसे चौड़ी सड़कों का निर्माण,राजमार्गो का निर्माण,रेल परिवहन का निर्माण ,बड़ी बड़ी बाँधो का निर्माण ,ऊँची-ऊँची इमारतों के निर्माण आदि के वज़ह से वनों की धड़ाधड़ कटाई चालू हैं। इससे न केवल हथियाँ बल्कि अन्य वन्य जीव के लिए भी समस्या खड़ी हो गई हैं। देखा जाए तो इसके कारण प्रदेश में हाथियों की संख्या में काफ़ी गिरावट आई हैं। वर्त्तमान में प्रदेश के जंगलों में हाथियों की संख्या छह सौ अठ्ठासी से घट कर पांच सौ पचपन हो गई हैं।राजेश्वर जी यह भी बता रहे हैं कि उनके क्षेत्र में उत्पात मचाने वाले हाथियों को सुरक्षित खदेड़ने हेतु वन्य अधिकारी अपने अनुसार प्रयास करते हैं। एवं हाथियों द्वारा बर्बाद फ़सलों के लिए किसानों को अंचल अधिकारीयों द्वारा भौतिक सत्यापन के बाद उचित मुआवजा दिया जाता हैं। परन्तु इन सब से अलग़ हाथियों को सुरक्षित रखने एवं उनकी देखरेख के लिए अधिकारीयों के साथ साथ कर्मियों को भी ईमानदारी से कार्य करना होगा। अवैध रूप से होने वाली पेड़ों की कटाई और शिकार पर बंधिश लगाने हेतु विचार विमर्श के बाद उचित उपाय निकालने की आवश्यकता हैं। जंगलों में होने वाली आकस्मिक आग जैसी समस्या के निपटारे हेतु समाधान निकालने की जरुरत ज़्यादा हैं। साथ ही जन-शिक्षा जागरूकता कार्यक्रम भी करानी चाहिए ताकि लोग वन्य जीवों को सुरक्षित रखने में अपना-अपना योगदान दे। वन्य-जीव वनों की शोभा बढ़ाते हैं।
झारखण्ड राज्य के धनबाद ज़िला के बाघमारा प्रखंड के महुदा क्षेत्र से राधु राय झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से हाथियों से सम्बंधित एक कविता की कुछ पंक्तियों के जरिएं बता रहे हैं की हाथियों द्वारा वन छोर गांव की तऱफ प्रवेश करने का मुख्य कारण भूख हैं। विकास के नाम पर पेड़ों की अंधाधुन्द कटाई से जंगली जानवरों को कई परेशानियाँ हो रही हैं। हाथियों का भी यही हाल हैं। उन्हें खाने युक्त वनों से मिलने वाली पर्याप्त फल उपलब्ध नहीं हो पा रहे इस कारण वो भोजन की तलाश में गांव की तरफ़ अपना रुख मोड़ रहे हैं। फसलों को रोंदते हुए गांव की तरफ़ आते हैं। जिससे किसान भाई खेती के नाम पे जो भी सपने संझोऐं रखते हैं वो पल भर में टूट जाते हैं। कई नुकसाने हो जाती हैं इसी कारण नई व्यापार के उद्देश्य से कुछ किसानें शहर की तरफ़ पलायन कर लेते हैं।सरकार मुआवज़े के नाम पर कुछ रुपय किसानों को प्रदान करते हैं जो नुकसान की भरपाई हेतु पर्याप्त नहीं होते। कई बार निराशा इस तरह हावी हो जाता हैं कि आत्महत्या जैसे क़दम उठाने को किसान मज़बूर हो जाते हैं। सरकार को इन समस्याओं पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिएँ। क्षतिपूर्ति के लिए सरकार को उचित मुआवज़ा किसानों को प्रदान करनी चाहिएँ। हाथियों को भगाने के लिए कई बार गांव वाले विशेषज्ञ को बुलाते हैं जो मसाल व वाद्ययंत्र की ऊंचे आवाज़ों के ज़रिए हाथियों के झुंड को खदेड़ने का नुस्ख़ा अपनाती हैं। उनके क्षेत्र में भी एक बार एक भूखा हाथी प्रवेश कर गया और जो भी खाद्यपदार्थ उसके नज़र में आया सारा चट कर गया।
इस बरसात के बाद वो दिन दूर नही जब ये हाथी राजा आप ही के गांव के तरफ रुख़ करेंगे. हलवा पूरी ना सही पर खेत के फसल ज़रूर साफ करेंगे. और ये कोई आज की बात नही,बल्कि झारखंड मे ये समस्या पुराने समय से चली आ रही है. इस अनचाहे मेहमान के आने से केवल किसान की फसल ही नही बल्कि साधारण लोगो की जान पर भी बन आती है. कई बार लोग समूह मे रात भर जाग कर अपने खेतो की रक्षा करते रहते है तो कई बार तेज़ रौशनी, आग और ड्रम बजा कर हाथियों को भागने की कोशिश होती है. आप के समुदाय मे इनमे से किस प्रकार की कोशिश ज़्यादा होती है...? और इस मे सफलता किस हद तक मिल पति है...? प्रायः हथियाँ आख़िर जंगल छोड़ कर इंसानो के बस्तियों का रुख़ क्यों करती है...? आख़िर इस मौसम मे ऐसा क्या होता है जो हाथियों को गांवों के तरफ खिच लाती है...? और जब हथियाँ गाँवो के तरफ आती है तो आप के क्षेत्रा के वन विभाग अधिकारी कितनी सक्रिया रहती है..? प्रायोगिक तरीक़ो के तौर पर केरला मे मधु मख्ही पालन कर हाथियों को भगाया गया है तो तमिल नाडु मे PVC गण से भागने की कोशिश हो रही है. इधर ओड़िसा मे LED लाइट और स्कैयर गण के ज़रिए हाथी भागने का प्रयोग जारी है. ऐसे मे आप के क्षेत्रा मे हाथी भागने के लिए वन विभाग अधिकारी क्या कोई नया तरीका अपनाते है या पारंपरिक तरीके के सहारे ही अभी तक हाथी भागने की कोशिश होती है...? जब हाथी खेत का फसल चौपट कर चला जाता है तो किसान पर आफ़तो का सैलाब टूट पड़ती है. वो किसान जीने बड़ी मेहनत से फसल उगाया था ये सोच कर की वो इस फसल के पैसे से अपने परिवार का भारण पोषण करेगा, उसके हाथ मे अब कुछ भी नही बचता है. ऐसे मे उसका सहारा होता है केवल सरकारी मुआवजा. पर क्या वो मुआवजा सही समय से किसानो को मिल पाती है...? और यदि नही तो उन्हे किस तरह के समस्याओं का सामना करना पड़ता है...? आप के अनुसार क्या मुआवजा की राशि देते समय बरबाद हुए फसल का सही मूल्यांकन किया जाता हैं..?