चतरा,हंटरगंज प्रखण्ड के आमीन ग्राम में दो दिन पहले जमीन को लेकर हुए हिंसक विवाद मे SSB जवान शिव कुमार यादव की चली गई थी जान। प्राप्त जानकारी के अनुसार एस एस बी जवान शिव कुमार यादव उसी दिन छुटे पर घर लौटे थे और विवाद मे हिंसक झड़प के दौरान उनकी जान चली गई । उसी क्रम मे घायल संतोष प्रजापति की भी इलाज के दौरान आज मौत हो गई।

मनोरम प्राकृतिक सौंदर्यों और धार्मिक आस्था का महासंगम है कौलेशवरी पर्वत। झारखंड के पावन पृष्ठभूमि पर अवस्थित कोल्हुआ पहाड़ पर विराजमान मां कौलेश्वरी का मंदिर अद्भुत मनोरम पर्वत श्रृंखलाओं से घीरा प्राकृतिक छँटा से विद्यमान मनमोहक और विचित्र दृश्य को प्रस्तुत करता है ऊंचे पर्वत पर स्थित माँ की प्रतिमा झारखंड के चतरा जिले का ऐतिहासिक धरती पर विशेष स्मृति संस्कृति का आगाज करता है जहां से हिंदू ,जैन एवं बौद्ध धर्म का संगम प्रवाहित होता है तरह-तरह के पुष्प-पौधे और वन उपवन से सुसज्जित वादियां इसकी सुंदरता में चार चांद लगा रहे हैं कल कल करते झरने और पक्षियों की चहचहाहट से पूरा पर्वत गुंजायमान हो रहा है इसके पश्चिम से गुजरने वाली लीलाजन नदी की निर्मल गंगा जो गया विष्णुपद में फल्गु के नाम से जानी जाती है इस की गरिमा को विशेष गौरवांवित कर रही है। प्रकृति के गोद में बसे इस पावन दर्शनीय स्थल का मनमोहक दृश्य भक्तों और पर्यटकों को विशेष आकर्षित करता रहा है प्राप्त कथा के अनुसार इस पर्वत को कौल्हुआ, कौलगिरी, कौलेश्वरी,कुलेश्वरी एवं कोटशिला के नाम से जाना जाता है। यह हिंदू जैन एवं बौद्ध धर्म का समन्वय स्थल है जहां तीनों धर्मों के लोग अपनी-अपनी आस्था के अनुसार अपने धर्म से जुड़े धर्म स्थल मानते हैं। कहा जाता है कि आदिवासीयों के अराध्य देवी मां कौलेश्वरी हैं दुर्गा सप्तशती में देवी को कुलेश्वरी कहा गया है इस क्षेत्र को राजा विराट का किला माना जाता है राजा विराट ने अपने इष्ट देवी कौलेश्वरी की प्राण प्रतिष्ठा यहां की थी महिषासुर मर्दिनी के रूप में मां कौलेश्वरी आराध्य देवी दुर्गा हैं। किंवदन्ती है की इस स्थल पर सती माता का कोख गिरा था और इस रूप में यह एक सिद्ध पीठ है इस आधार पर धारणा है की संतान प्राप्ति की मनोकामना यहाँ पुरी होती है। कथा आलोकित है कि वनवास के समय श्री राम सीता एवं लक्ष्मण यहां आए थे तथा अज्ञातवास का समय पांडवों ने यहाँ व्यक्त किया है। इस स्थल पर एक स्थान मंडवा-मांडवी अथवा मड़वा-मड़ई के नाम से जाना जाता है जहां अर्जुन पुत्र अभिमन्यु का उत्तरा के साथ विवाह इसी स्थान पर माना जाता है इसलिए विवाह के बाद नव दंपति इस स्थान का दर्शन करने आते हैं और सुखद सुखी वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करते हैं । यह तीर्थ स्थल के साथ-साथ अनुपम पर्यटन का केंद्र है जहां सभी धर्मों के लोग आते हैं यहां सालों भर विदेशी सैलानियों हिंदू ,बौद्ध एवं जैन समुदाय का आना-जाना लगा रहता है किंतु चैत्र नवरात्रि की विशेषता है चैत्र नवरात्र प्रारंभ होते ही भक्तों का जत्था मां के दर्शन को उमड़ने लगता है। नवरात्र मेले में भक्तों का तांता लगा रहता है । सावन मास में यहां संत और भक्तों द्वारा विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। सावन में पुष्प, पौधे,वनस्पतियों और हरे-भरे लताओं से सुशोभित यह स्थल मानो धरती पर स्वर्ग की अनुभूति करा रहा हो। सावन में भक्त पदयात्रा करके पर्वत पर स्थित बाबा भोलेनाथ के शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं सावन के प्रत्येक सोमवारी तथा सावन पूर्णिमा (रक्षाबंधन) को भक्तों का विशेष भीड़ एकत्रित होकर भजन कीर्तन के सांस्कृतिक संगीत में मुग्ध होकर भावविभोर भक्तिमय वातावरण में खो जाते हैं बसंत पंचमी के पूर्व से यहां मुंडन तथा विदेशी पर्यटकों का आवागमन अधिक देखने को मिलता है । पर्वतारोहण के बाद पर्वत चोटी पर पहूँच कर पर्यटक मार्ग की थकावट पूर्णतया भूल जाता है एवं रोमांचक आनन्द प्राप्त करता है। मकर सक्रांति को भी भक्तों का जत्था मां के दर्शन पूजन कर यहां के सभी दर्शनीय स्थलों का दर्शन करते हैं और मनोरंजन का भी आनंद उठाते हैं। 1575 फिट उंचाई पर पर्वत के उपर मुख्य मंदिर के सामने करीब 900 फिट चौड़ा 2000 फिट लम्बा एवं 30 फिट गहरा विशाल प्राकृतिक जलाशय है, जिसमें सालों भर पानी भरा रहता है जो एक अद्भुत और आश्चर्यजनक है। इस सरोवर का पानी मधुर,शीतल एवं औषधीय गुणों से परिपूर्ण संजीवनी समान है इसके उपयोग से कई प्रकार के उदर रोगों का क्षय होता है तथा यह पाचन क्रिया में पर्याप्त है । इसलिए लोग यहाँ आकर रात्री विश्राम और लिट्टी चोखा का आनन्द लेना नही भूलते। 1967 के सुखाड़ मे भी इस तालाब मे भरपूर पानी था। देवी के प्रिय पुष्प लाल कमल इस सरोवर मे बहुतायत पाए जाते हैं पूर्व मे यहाँ बलि की प्रथा थी वर्ष मे दो बार बसंत पंचमी एवं रामनवमी मेला के अवसर पर अधिक बलि दी जाती थी जिससे सरोवर का पानी गंदा हो जाता था किंतु अब मंदिर मे बलि के लिए लाए गए बकरों को मंदिर मे सिर्फ पूजन होता है पहाड़ के निचे भाग मे विभिन्न स्थानों पर ठहराव की जगह से बलि दी जाती है। सरोवर की पानी निकासी के लिए पूर्व से प्राकृतिक मार्ग बना हुआ था किंतु जमाने से पानी की सफाई नही हो पाई थी वर्ष 1996 मे बृहद सफाई करवाई गई फिर पानी पूर्ववत निर्मल हो गया तब से बिच-बिच मे साफ सफाई का कार्य होते रहता है। पर्वत शिखर जिसे आकाश लोचन कहा जाता है वहां से चारों और का दृश्य ही निराला दिखता है । पहाड़ के उत्तरी तराई मे एक सुन्दर झरना गिरता है जिसका लुत्फ पर्यटक व स्थानीय लोग वर्षा त्रृतु मे खुब उठाते हैं। *पर्वत के छत पर चहारदीवारी* पहाड़ की चोटी पर 10 फुट चौड़ाई की चहारदीवारी थी जिसके भग्नावशेष अभी भी स्पष्ट रूप से विद्यमान हैं चहारदीवारी के पूरब की ओर दरवाजे एवं पश्चिम की ओर खिड़की थी अभी यहां दो मार्ग मंदिर प्रांगण में प्रवेश के लिए उपलब्ध है दंतार तरफ से जाने पर पूर्वी दरवाजा से प्रवेश करते हैं एवं हंटरगंज से जाने पर पश्चिम वाले द्वार खिड़की से प्रवेश करते हैं मनोरम पर्वत पर अवस्थित यह स्थल गोरिल्ला युद्ध एवं सैनिक प्रशिक्षण के लिए बहुत ही उपयुक्त है इस आधार पर यहां राजधानी होना तर्कसंगत है मालूम पड़ता है। झारखंड के मानचित्र पर अमिट छाप छोड़ने वाला यह धार्मिक तथा पर्यटन क्षेत्र कई असुविधाओं का दंश झेल रहा है कई वर्षों पूर्व से निर्माणाधीन धर्मशालाएं पूर्ण होने का बाट जोह रहा है जो झारखंड सरकार की उपेक्षाओं और उपदंश को प्रदर्शित कर रहा है यहां पेयजल हेतु एक ही कुआं है जिससे दर्शकों को पेयजल का सामना भी करना पड़ता है। अब पानी के लिए पाइप लाइन का कार्य कौलेश्वरी विकास प्रबंधन समिति के द्वारा जारी है तथा प्रबंधन समिति के द्वारा शौचालय का भी निर्माण करवाया गया है जो समुचित देखभाल के अभाव मे उपयोगी नही है। पूर्व पर्यटन सचिव सजल चक्रवर्ती भी इस स्थल का हवाई मुआयना कर चुके हैं और उन्होंने यहाँ रज्जो मार्ग बनवाने का विचार भी व्यक्त किया था जिन्हें उस दौर में झारखंड के स्वच्छ छवि और स्वच्छंद विकास पुरुष के रूप में देखा जा रहा था। उपायुक्त हीमानी पाण्डेय ने यहाँ का दौरा कर अधुरे पड़े धर्मशालाओं को पूर्ण कराने का निर्देश दिया था किन्तु वो अभी तक अपूर्ण ही हैं। त्रृषि मुनियों का यह साधक स्थल रहा है,पहाड़ी बाबा ने यहां अपना जीवन व्यतीत किया और समाधि लेकर समाधिस्थ हो गए उनके स्थान पर उनका समाधि स्थल बनाया गया है। *मुख्य दर्शनीय स्थल* * माता का मंदिर* शिव मंदिर* जैन मंदिर* भैरवनाथ गुफा*पांच पांडव*सप्त रिषि गुफा*आकाश लोचन*अर्जुन बाण आदी। *दुरी* - बिहार की उत्तरी सीमा से लगभग 13 एवं हंटरगंज से 10 किलोमीटर। जिला मुख्यालय चतरा से-33 गया जंक्शन से-57 बोधगया से-46 माँ भद्रकाली मंदिर, ईटखोरी से-67 मुख्य द्वार घंघरी से-10 किलोमीटर है।

चतरा( झारखण्ड) जिले मे समय से पर्याप्त वारिस नही होने के कारण किसान निराश हैं क्योंकी किसान चावल के जिस दाने की पैदावार के लिए धान के बीज की बुआई, रोपाई करते हैं उसे खेत मे पानी ना होने से बोने का समय निकला जा रहा है। ग्रामीण स्तर पर किसानों के पास समुचित सिंचाई व्यवस्था नही होने से वैकल्पिक सुविधा का भी अभाव है।

झारखण्ड राज्य, छात्र जिला, पंचायत नरगड़ा, ग्राम गेंदवा से लाल देव भोक्ता मोबाइल वाणी के माध्यम से जानकारी दे रहें हैं कि, ये झारखण्ड बचाव आंदोलन का प्रखंड सचिव हैं। और इन्हें ग्राम गुंडई में वन अधिकार क़ानून के तहत पट्टा बनाने के लिए भेजा गया था लेकिन इन्हें फॉरेस्ट ऑफिसर्स धमकी दे रहें हैं

Transcript Unavailable.

झारखण्ड राज्य के चतरा जिला से लाल देव गुप्ता झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि उन्होंने 2021 में मनरेगा में काम किया था जिसका उन्हें मजदूरी नहीं दिया गया। जिसके कारण उन्हें भरण पोषण करने में समस्या हो रही है

झारखण्ड राज्य से लाल देव गुप्ता मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि वे झारखण्ड जंगल बचाओ आंदोलन के प्रखंड सचिव हैं। भारत सरकार द्वारा गरीबों को 2006 वन अधिकार कानून की जानकारी सभी लोगों को गाँव गाँव जा कर बताते हैं। जंगल बचाव के लिए 11 मई को चतरा में वनवासी द्वारा कार्यक्रम रखा जायेगा कार्यक्रम

Transcript Unavailable.

Transcript Unavailable.

Transcript Unavailable.