झारखण्ड राज्य के गुमला जिला के सिसई प्रखंड से संदीप कुमार मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं कि आधुनिक समय में लोग स्वदेशी सामान के जगह विदेशी या चायनीज सामानो का उपयोग अधिक करते हैं। जिस प्रकार दीपावली पर्व में दिये को देखा जाए, तो कुम्हार द्वारा बनाए गए दिये की जगह लोग चायनीज दिये का प्रयोग अधिक मात्रा में करते हैं और सामान्यता देखा जाए तो कुम्हार के दिये से कम मूल्य में चायनीज दिये बाजार में मिल जाते हैं। और चायनीज वस्तु कीमत के साथ-साथ लोगों में आकर्षण का केंद्र भी बना रहता है। फलस्वरूप यह देखा जाता है कि कुम्हार के दिये की जगह चायनीज ज्यादा बिक्री होते हैं। जिस कारण कुम्हारों में अपनी मिटटी की कला के प्रति थोड़ी उदासीनता देखने को मिलती है।जिससे कुम्हारों का रोजगार समाप्त होता जा रहा है। कुम्हारों को मिट्टी के बर्तन,दिये,घड़ा एवं अन्य वस्तुओं को बनाने में जितना मेहनत लगता है। उसके अनुसार वस्तु का लागत मूल्य नहीं मिल पाता है। मूल्य नहीं मिलने के कारण ही बाजार में कुम्हार द्वारा बनाई गई मिट्टी के बर्तन बनाने में बहुत कम रूचि दिखाई देती है।

Transcript Unavailable.

गुमला से दीपक जैसवाल झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से सर्कस पर अपने अनुभव व्यक्त कर रहे है