काके प्रखंड के ग्राम सुदर नगर से अर्पणा बाड़ा ने झारखण्ड मोबाइल वाणी पे आठ तारीख को मनाने जा रहे महिला दिवस पर बात की एवं महिला सशक्तिकरण पर पूछे गए प्रशन महिलाए क्या पुरुषो से पीछे है? का जवाब देते हुए बताया की हमारा देश पुरुष प्रधान देश है.यहाँ पे आज तक महिलाओ के साथ भेदभाव बरता जाता है महिलाए आज घरों से बाहर जरुर है लेकिन आज भी अपने पति के निर्णयों पर निर्भर रहती है वे अपने फैसले खुद लेने की आजादी नहीं हैं. इस से यह साबित होता है की महिलाए कितनी आंगे हैं. महिलाओ के किये जो कानून वयवस्था है जो बहुत ही लचर है कुछ कानून जो बने हैं जैसे 1961 में दहेज़ प्रथा कानून बनी फिर उसमे 1984 में संसोधन करके भारतीय धंद सहिंता में धरा 304(B)को जोड़कर बहू की संदिग्ध अवस्था में हत्या पर न्युनतम सात साल एवं अधिकतम आजीवन कारावास की सजा सम्मिलित कर दी गइ. मगर इसका प्रभाव समाज पे क्या है हम जानते हैं. सरकार ने महिला सशतिकरण के लिए कोई थोश कदम नहीं उठाए है.महिलाओ के लिए कानून तो बनते है मगर लागु नहीं होते हैं.उन्हें न्याय भी पाने में वर्सो लग जाते हैं. महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार को चाहियें की उन्हें हार क्षेत्र में आगे लाये और सबसे जरुरी है उनके बिच जागरूकता लाना ताकि वो अपने अधिकारों को जाने. बहुत सारे स्वमसेवी संस्था महिलाओ में जागरूकता फ़ैलाने का काम रहे हैं ताकि समाज में वो आगे आयें. सरकार महिलाओ के बिच जागरूकता के लिए ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं बनाई है जो जमानी स्तर पर लागु हो. सरकार की ओर से महिला सशक्तिकरण नाम मात्र का हो रहा हैं.