झारखण्ड राज्य के जिला हज़ारीबाग के कटकमसांडी प्रखंड से रविंद्र कुमार , झारखण्ड मोबाइल वाणी के माध्यम से बताते हैं कि नचले व सकरजा गांव चारो ओर जंगल और पहाड़ों से घिरा है। इस गावँ में आज भी सड़क निर्माण की कमी है। एक ओर जहाँ केंद्र व राज्य सरकार हर गांव में सड़क के लिए कृत संकल्प है और पानी की तरह पैसे बहा रही है लेकिन ये नचले व सकरजा गावँ आज भी मुख्यालय से नहीं जुड़ पाया है। अनुसूचित जाति बहुल गावँ में जाने के लिए लोगों को जंगली पगडंडियों का ही सहारा लेना पड़ता है।सबसे ज्यादा परेशानियों का सामना ग्रामीणों को बरसात के समय में करना पड़ता है ।भारी बारिश के वजह से सभी खेत ,नदी ,नाले भर जाने के कारण पूरा गावँ मुख्यालय से ही कट जाता है। सबसे ज़्यादा परेशानी तब होती है ,जब किसी मरीज को अस्पताल लेकर जाना होता है।बीमार व्यक्ति को मुख्यालय तक ले जाने के लिए न तो एम्बुलेंस आती है और ना ही कोई सवारी जा पाती है।मज़बूरी में लोगों को खटोले में टांग कर इलाज के लिए अस्पताल ले जाना पड़ता है। गावँ में खेती के अलावा कोई और वैकल्पिक साधन नहीं है ,जिसके कारण लोगों को बेरोज़गारी का भी सामना करना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि पदाधिकारियों को कई बार पत्र लिख कर गावँ में सड़क बनाने की मांग की गई लेकिन आज तक सड़क का निर्माण नहीं हो सका है।साथ ही ग्रामीणों का यह भी कहना है कि  नचले व सकरजा गांव में सड़क का निर्माण हो जाने से न केवल लोगों को इसका फ़ायदा होगा बल्कि ग्रामीण अपने कृषि उत्पाद भी बाज़ारों तक पहुँचा सकेंगे।   एक ओर केंद्र व राज्य की सरकार हर गांव को मुख्य सड़क से जोड़ने के प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के लिये पानी की तरह पैसा बहा रही है  परंतु प्रखंड कटकमसांडी अंतर्गत बाझा पंचायत के नचले व सकरजा गांव आज भी  मुख्य मार्ग से कटा है। लगभग दो सौ आबादी वाले अनुसूचित जनजाति बाहुल आबादी के इस गांव में जाने के लिए आज भी एक अदद सड़क नहीं है ।नचले व सकरजा गांव के लोग अपने गांव से कटकमसांडी मुख्य चौक आने के लिए  जंगली पगडंडियों और खेत के मेढ़ो का सहारा ले रहे हैं ।सबसे ज्यादा मुसीबत गांव वासियों को बरसात के समय में उठाना पड़ता है ।भारी बारिश के वजह से जब सभी खेत भर जाते हैं तो ऐसे में खेत के मेढ़ों की मिट्टी  फिसलन हो जाती है जिस पर आना जाना मुश्किल हो जाता है ।कई बार तो लोग चिकनी मिट्टी में फिसल कर अपने हाथ और पैर की हड्डी भी तोड़वा चुके हैं दूसरी इन दिनों में बीमार होने पर मरीज के लिये गांव तक एम्बुलेंस नही जा पाता।मरीज को खटोले में गांव से मुख्य सड़क तक कंधे में ढोकर लाना होता है।बरसात के दिनों में लोगो को जंगली पगडण्डी ही एक मात्र साधन है। इस समय  जंगल में घने जंगल झाड़ उग आते हैं।इन झाड़ियों में जंगली जानवर लकड़बग्घे भालू तथा चीते का आक्रमण की संभावना अधिक हो जाती है।