सुनिए डॉक्टर स्नेहा माथुर की संघर्षमय लेकिन प्रेरक कहानी और जानिए कैसे उन्होंने भारतीय समाज और परिवारों में फैली बुराइयों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई! सुनिए उनका संघर्ष और जीत, धारावाहिक 'मैं कुछ भी कर सकती हूं' में...

बिहार राज्य के समस्तीपुर जिला से दीपक कुमार ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि विश्व माहवारी दिवस पर आज पीरामल स्वास्थ्य एवं आर.एन. ए .आर कॉलेज प्रशासन समस्तीपुर द्वारा संयुक्त रूप से कॉलेज परिसर में आयोजित किया गया। कार्यक्रम का शुरुआत पिरामल स्वास्थ्य एस्पिरेशनल भारत कोलैबोरेटिव समस्तीपुर टीम के द्वारा बाल गीत से शुरू किया गया। कार्यक्रम में  पिरामल स्वास्थ्य समस्तीपुर टीम के द्वारा छात्राओं को माहवारी के दौरान होने वाली समस्याओं, माहवारी के दौरान स्वच्छता, माहवारी के दौरान आयरन एवं पोषण युक्त खान-पान, मासिक धर्म के दौरान सामान्य स्वच्छता बनाए रखने के महत्व पर चर्चा किया गया।  सेनेटरी नैपकिन के उचित उपयोग और सुरक्षित निपटान के बारे में बताया गया। कॉलेज प्रिंसिपल प्रोफेसर सुरेंद्र जी द्वारा मासिक धर्म के संबंध में आम मिथकों और भ्रांतियों पर चर्चा की गई।लड़कियों को प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित किया और किसी भी गलत सूचना को दूर करने के लिए तथ्यात्मक उत्तर दिए।योगासन सिखाया गया जो मासिक धर्म के दौरान पेट दर्द और परेशानी को कम करने में मदद कर सकते हैं।मासिक धर्म के दर्द को प्रबंधित करने के अन्य तरीकों पर सुझाव दिए गए। उक्त कार्यक्रम में आर. एन. ए . आर , प्रिंसिपल प्रोफेसर सुरेंद्र कुमार, प्रोफेसर डॉ अर्चना, पीरामल स्वास्थ्य समस्तीपुर जिला लीड आदित्य जी, प्रोग्राम लीडर केशव, प्रोग्राम लीडर श्रेया एवं श्वेता, गांधी फेलो गिरीश, छात्रा रुखसार सिद्दीकी, निशा कुमारी, कंचन कुमारी इत्यादि सक्रिय रूप से भाग लिए।विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

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भारत में जहां 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव हो रहे हैं। इन चुनावों में एक तरफ राजनीतिक दल हैं जो सत्ता में आने के लिए मतदाताओं से उनका जीवन बेहतर बनाने के तमाम वादे कर रहे हैं, दूसरी तरफ मतदाता हैं जिनसे पूछा ही नहीं जा रहा है कि वास्तव में उन्हें क्या चाहिए। राजनीतिक दलों ने भले ही मतदाताओं को उनके हाल पर छोड़ दिया हो लेकिन अलग-अलग समुदायो से आने वाले महिला समूहों ने गांव, जिला और राज्य स्तर पर चुनाव में भाग ले रहे राजनीतिर दलों के साथ साझा करने के लिए घोषणापत्र तैयार किया है। इन समूहों में घुमंतू जनजातियों की महिलाओं से लेकर गन्ना काटने वालों सहित, छोटे सामाजिक और श्रमिक समूह मौजूदा चुनाव लड़ रहे राजनेताओं और पार्टियों के सामने अपनी मांगों का घोषणा पत्र पेश कर रहे हैं। क्या है उनकी मांगे ? जानने के लिए इस ऑडियो को सुने

दोस्तों, हमारे यह 2 तरह के देश बसते है। एक शहर , जिसे हम इंडिया कहते है और दूसरा ग्रामीण जो भारत है और इसी भारत में देश की लगभग आधी से ज्यादा आबादी रहती है। और उस आबादी में आज भी हम महिला को नाम से नहीं जानते। कोई महिला पिंटू की माँ है , कोई मनोज की पत्नी, कोई फलाने घर की बड़ी या छोटी बहु है , कोई संजय की बहन, तो कोई फलाने गाँव वाली, जहाँ उन्हें उनके मायके के गाँव के नाम से जाना जाता है। हम महिलाओ को आज भी ऐसे ही पुकारते है और अपने आप को समाज में मॉडर्न दिखने की रीती का निर्वाह कर लेते है। समाज में महिलाओं की पहचान का महत्व और उनकी स्थिति को समझने की आवश्यकता के बावजूद, यह बहुत दुःख कि बात है आधुनिक समय में भी महिलाओं की पहचान गुम हो रही है। तो दोस्तों, आप हमें बताइए कि *-----आप इस मसले को लेकर क्या सोचते है ? *-----आपके अनुसार से औरतों को आगे लाने के लिए हमें किस तरह के प्रयास करने की ज़रूरत है *-----साथ ही, आप औरतों को किस नाम से जानते है ?

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किसी भी समाज को बदलने का सबसे आसान तरीका है कि राजनीति को बदला जाए, मानव भारत जैसे देश में जहां आज भी महिलाओं को घर और परिवार संभालने की प्रमुख इकाई के तौर पर देखा जाता है, वहां यह सवाल कम से कम एक सदी आगे का है। हक और अधिकारों की लड़ाई समय, देश, काल और परिस्थितियों से इतर होती है? ऐसे में इस एक सवाल के सहारे इस पर वोट मांगना बड़ा और साहसिक लेकिन जरूरी सवाल है, क्योंकि देश की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है। इस मसले पर बहनबॉक्स की तान्याराणा ने कई महिलाओँ से बात की जिसमें से एक महिला ने तान्या को बताया कि कामकाजी माँओं के रूप में, उन्हें खाली जगह की भी ज़रूरत महसूस होती है पर अब उन्हें वह समय नहीं मिलता है. महिलाओं को उनके काम का हिस्सा देने और उन्हें उनकी पहचान देने के मसले पर आप क्या सोचते हैं? इस विषय पर राय रिकॉर्ड करें

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