साथियों गर्मी का मौसम आने वाला है और इसके साथ आएगी पानी की समस्या। आज की कड़ी में हम आपको बता रहे है कि बरसात के पानी को कैसे संरक्षित कर भूजल को बढ़ाने में हम अपना योगदान दे सकते है। आप हमें बताइए गर्मियों में आप पानी की कौन से दिक्कतों से जूझते हैं... एवं आपके क्षेत्र में भूजल कि क्या स्थिति है....

सरकार की महत्वाकांक्षी "हर घर नल" योजना बनी ग्रामीणों के लिए परेशानी का सबब देवरान व खजरा गांव में डाली जा रही पाइप लाइन के ठेकेदार द्वारा की जा रही लापरवाही से ग्रामीण हो रहे परेशान पाइप लाइन डालने के लिए की गई खुदाई से क्षतिग्रस्त सड़कों व नालियों का निर्माण न होने से हालात खराब पानी सड़कों पर बहने से ग्रामीणों को करना पड़ रहा है परेशानियों का सामना ललितपुर। जहां एक ओर केंद्र सरकार महत्वाकांक्षी "हर घर नल योजना" के तहत गांव के ग्रामीणों को शुद्ध पेय जल उपलब्ध कराने के लिए ठोस कदम उठा रही है और धरातल पर भी उतारने के लिए लगातार ठोस कदम उठा रही है। तो वहीं दूसरी ओर जिम्मेदार अधिकारियों की उदासीनता और ठेकेदार की लापरवाही ग्रामीणों के लिए मुसीबत का सबब बनती नजर आ रही है। आज जनपद के अधिकतर गांवों में इस योजना की धरातलीय स्थिति काफी खराब है और घरों तक पानी नहीं पहुंच रहा बल्कि यह पानी सड़कों पर बर्बाद हो रहा है। आलम यह है कि विकासखण्ड बार के ग्राम देवरान व खजरा में डाली गई घटिया किस्म की पाइप लाइन से पानी का रिसाव होने से घरोंतक पानी नहीं पहुंच रहा, तो वहीं पाइप लाइन डालने के लिए को दी गई सड़क और क्षतिग्रस्त की गई नालियों को भी ठीक नहीं कराया जा रहा, जिससे ग्रामीणों के लिए यह योजना परेशानी का सबक बन गई है। ग्रामीणों अधिकारियों से गुहार लगाई है कि गांव की पाइपलाइन को ठीक करवा कर यहां की नालियों और क्षतिग्रस्त सड़कों को भी दुस्त कराया जाए ताकि ग्रामीण आसानी से आवागमन कर सके।

2016 में 14% छात्र औपचारिक शिक्षा से बाहर थे जो कि देश में 2023 में भयानक सुधार होने के बाद भी अब मात्र 13.2 फीसद बाहर हैं ... 2016 में 23.4 फीसद अपनी भाषा में कक्षा 2 का पाठ नहीं पढ़ पाते थे आज 2023 में अति भयानक सुधार के साथ ये आंकड़ा 26.4 प्रतिशत है ... देश के आज भी 50 फीसद छात्र गणित से जूझ रहे हैं ... मात्र 8 साल में गणित में हालात बद से बदतर हो गए ... 42.7% अंग्रेजी में वाक्य नहीं पढ़ सकते हैं... अगर आप सरकार से जवाब माँगिए , तो वे कहती है कि वो लगातार बैठकें कर रहे हैं लेकिन असर की रिपोर्ट बताती है कि ये बैठकें कितनी बेअसर हैं... तो विश्व गुरु बनने तक हमें बताइये कि *-----आपके गांव या जिला के स्कूलों की स्थिति क्या है ? *-----वहां पर आपके बच्चों को या अन्य बच्चों को किस तरह की शिक्षा मिल रही है ? *-----और आपके गाँव के स्कूलों में स्कुल के भवन , बच्चों की पढ़ाई और शिक्षक और शिक्षिका की स्थिति क्या है ?

ललितपुर नगर निकाय चुनाव के 7 माह बाद भी नगर पालिका परिषद द्वारा नहीं कराए जा रहे विकास कार्य शहरी इलाके के लगभग सभी मुक्तिधामों व शमशान घाटों की हालत दयनीय मुक्ति धाम पर शाम के समय अंतिम संस्कार करने के लिए नहीं है पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था आम जनमानुष गाड़ियों की लाइट की रोशनी और अन्य उपकरणों की रोशनी के सहारे परिजनों का अंतिम संस्कार करने को मजबूर श्मशान घाटों पर पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था न होने पर आम जनमानस में पनप रहा आक्रोश अंतिम संस्कार में मौजूद पार्षद ने मामला नगर पालिका अध्यक्ष और अधिशासी अधिकारी की संज्ञान में लाकर पर्याप्त रोशनी की व्यवस्था कराए जाने का दिया आश्वासन नगर के इलाइट मुक्तिधाम का मामला

लड़कियों के सपने सच में पुरे हो , इसके लिए हमें बहुत सारे समाजिक बदलाव करने की ज़रूरत है। और सबसे ज्यादा जो बदलाव की ज़रूरत है, वो है खुद की सोच को बदलने की। शिक्षा महिलाओं की स्थिति में बड़ा परिवर्तन ला सकती है लेकिन शिक्षा को लैंगिक रूप से संवेदनशील होने की जरूरत है। गरीब और वंचित समूह के बच्चों को जीवन में शिक्षा में पहले ही सीमित अवसर मिलते हैं उनमें से लड़कियों के लिए और भी कम अवसर मिलते हैं, समान अवसर तो दूर की बात है। सरकारी स्तर पर जितने ही प्रयास किये जा रहे हों, यदि हम समाज के लोग इसके लिए मुखर नहीं होंगे , तब तक ऐसी भयावह रिपोर्टों के आने का सिलसिला जारी रहेगा और सही शौचालय न होने के कारण छात्राओं को मजबूरी में स्कूल छोड़ने का दर्द सताता रहेगा। तब तक आप हमें बताएं कि *----- आपके गांव में सरकारी स्कूल में शौचालय है, और क्या उसकी स्थिति कैसी है? *----- क्या आपको भी लगता है कि सरकारी स्कूल में शौचालय नहीं होने से लड़कियों की शिक्षा से बाहर होने का बड़ा कारण है *----- शौचालय होने और ना होने से लड़कियों की शिक्षा किस प्रकार प्रभावित हो सकती है?

साथियों, आये दिन हमें ऐसे खबरे सुनने को और देखने को मिलती कि फंलाने जगह सरकारी स्कुल की छत गिर गई या स्कुल की दिवार ढह गई। यहाँ तक कि आजकल स्कुल के क्षेत्र में लोग पशु भी बाँधने लगते है, अभी ऐसी ही खबर दैनिक भास्कर के रांची सस्करण में छपी। रांची के हरमू इलाके में जहाँ कुछ लोग वर्षो सेअपने दुधारू पशु को स्कुल से सटे दीवाल में बाँध रहे है और प्रशासन इस पर मौन है। ये हाल झारखण्ड की राजधानी रांची के एक सरकारी स्कुल का है , बाकि गाँव का हाल तो छोड़ ही दीजिये। क्या आपको पता है कि शिक्षा के अधिकार के नियम के तहत स्कुल में पीने का साफ़ पानी और शौचालय की बुनियादी सुविधा के अनिवार्य रूप से मुहैया करवाने की बात कही गयी है। और ये बेसिक सी चीज़े उपलब्ध करवाना सभी सरकारों का काम है। लेकिन जब 25 से 35 % स्कूलों का हाल ये हो तब किसे दोषी माना जाए ? सरकार को नेताओ को या खुद को कि हम नहीं पूछते??? बाक़ि हाल आप जान ही रहे है। तब तक, आप हमें बताइए कि ******आपके गाँव या क्षेत्र में सरकारी स्कूलों में शौचालय और पानी की व्यवस्था कैसी है ? ****** वहां के स्कुल कितने शिक्षक और शिक्षिका पढ़ाने आते है ? ****** साथ ही शिक्षा के मसले पर आपको किससे सवाल पूछने चाहिए ? और इसे कैसे बेहतर बनाया जा सकता है , ताकि हमारे देश का भविष्य आगे बढे।

दोस्तों, सरकारी स्कूलों की बदहाली किससे छुपी है? इसी कारण देश की पूरी शिक्षा व्यवस्था, प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक, पूरी तरह से बाजारवाद में जकड़ गई है। उच्च व मध्यम वर्ग के बच्चे तो प्राइवेट स्कूलों में अपने भविष्य का निर्माण करते हैं। नेताओं और नौकरशाह की बात तो दूर अधिकांश विद्यालय में कार्यरत शिक्षक के बच्चे भी सुविधा संपन्न प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई करते हैं भला ऐसे में सरकारी विद्यालयों की दुर्दशा की चिंता किसे होगी? देश के छोटे से छोटे विकास खंड में सरकारी स्कूलों में करोड़ों खर्चे जाते हैं फिर भी उनका स्तर नहीं सुधरता। -------------तो दोस्तों, आप हमें बताइए कि आपके गांव या जिला के स्कूलों की स्थिति क्या है ? -------------वहां पर आपके बच्चों को या अन्य बच्चों को किस तरह की शिक्षा मिल रही है ? -------------और आपके गाँव के स्कूलों में स्कुल के भवन , बच्चों की पढ़ाई और शिक्षक और शिक्षिका की स्थिति क्या है ? दोस्तों इस मुद्दे पर अपनी बात को जरूर रिकॉर्ड करें अपने फ़ोन में नंबर 3 का बटन दबाकर या मोबाइल वाणी एप्प में ऐड का बटन दबाकर।