शक्तिपीठ कड़ाधाम के कुबरी घाट पर हर वर्ष पीडब्ल्यूडी विभाग द्वारा प्लाण्टून पुल का निर्माण कराया जाता है। इस बार भी विभाग द्वारा पुल का निर्माण कराया गया है लेकिन निर्माण में भारी लापरवाही बरती गई है। जिसके कारण यहां आने वाले तीर्थ यात्रियों व स्थानीय लोगों को भारी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। इस बार दो धाराएं गंगा जी की हैं जिसमें विभाग द्वारा पहले वाली धारा में पुल का निर्माण तो कर दिया गया है लेकिन दूसरी धारा में कार्य आधा अधूरा छोड़ दिया गया है।जिसके चलते यात्रियों को दूसरी धारा में नाव का सहारा लेना पड़ता है।समस्या के चलते लोगों में विभाग के प्रति काफी आक्रोश है। इतना ही नही विभाग द्वारा कोई निर्देश बोर्ड भी नहीं लगाया गया है कि यह पुल अभी अधूरा है या बन रहा है जिसके कारण जाने अनजाने में लोग पुल पार करने के बाद अपने को ठगा हुआ महसूस करते है और दूसरे धारे में पैसा देकर नाव से उस पार जा रहे हैं।तीर्थ यात्रियों व स्थानीय लोगों ने आलाधिकारियों से मांग की है कि अधूरे पुल का निर्माण कार्य पूरा कराया जाए जिससे लोगों को आवागमन में सुगमता हो।

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कीचड़ होकर गुजरना पड़ता हैं ग्रमीणों को

साथियों, आये दिन हमें ऐसे खबरे सुनने को और देखने को मिलती कि फंलाने जगह सरकारी स्कुल की छत गिर गई या स्कुल की दिवार ढह गई। यहाँ तक कि आजकल स्कुल के क्षेत्र में लोग पशु भी बाँधने लगते है, अभी ऐसी ही खबर दैनिक भास्कर के रांची सस्करण में छपी। रांची के हरमू इलाके में जहाँ कुछ लोग वर्षो सेअपने दुधारू पशु को स्कुल से सटे दीवाल में बाँध रहे है और प्रशासन इस पर मौन है। ये हाल झारखण्ड की राजधानी रांची के एक सरकारी स्कुल का है , बाकि गाँव का हाल तो छोड़ ही दीजिये। क्या आपको पता है कि शिक्षा के अधिकार के नियम के तहत स्कुल में पीने का साफ़ पानी और शौचालय की बुनियादी सुविधा के अनिवार्य रूप से मुहैया करवाने की बात कही गयी है। और ये बेसिक सी चीज़े उपलब्ध करवाना सभी सरकारों का काम है। लेकिन जब 25 से 35 % स्कूलों का हाल ये हो तब किसे दोषी माना जाए ? सरकार को नेताओ को या खुद को कि हम नहीं पूछते??? बाक़ि हाल आप जान ही रहे है। तब तक, आप हमें बताइए कि ******आपके गाँव या क्षेत्र में सरकारी स्कूलों में शौचालय और पानी की व्यवस्था कैसी है ? ****** वहां के स्कुल कितने शिक्षक और शिक्षिका पढ़ाने आते है ? ****** साथ ही शिक्षा के मसले पर आपको किससे सवाल पूछने चाहिए ? और इसे कैसे बेहतर बनाया जा सकता है , ताकि हमारे देश का भविष्य आगे बढे।

दोस्तों, सरकारी स्कूलों की बदहाली किससे छुपी है? इसी कारण देश की पूरी शिक्षा व्यवस्था, प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक, पूरी तरह से बाजारवाद में जकड़ गई है। उच्च व मध्यम वर्ग के बच्चे तो प्राइवेट स्कूलों में अपने भविष्य का निर्माण करते हैं। नेताओं और नौकरशाह की बात तो दूर अधिकांश विद्यालय में कार्यरत शिक्षक के बच्चे भी सुविधा संपन्न प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई करते हैं भला ऐसे में सरकारी विद्यालयों की दुर्दशा की चिंता किसे होगी? देश के छोटे से छोटे विकास खंड में सरकारी स्कूलों में करोड़ों खर्चे जाते हैं फिर भी उनका स्तर नहीं सुधरता। -------------तो दोस्तों, आप हमें बताइए कि आपके गांव या जिला के स्कूलों की स्थिति क्या है ? -------------वहां पर आपके बच्चों को या अन्य बच्चों को किस तरह की शिक्षा मिल रही है ? -------------और आपके गाँव के स्कूलों में स्कुल के भवन , बच्चों की पढ़ाई और शिक्षक और शिक्षिका की स्थिति क्या है ? दोस्तों इस मुद्दे पर अपनी बात को जरूर रिकॉर्ड करें अपने फ़ोन में नंबर 3 का बटन दबाकर या मोबाइल वाणी एप्प में ऐड का बटन दबाकर।