उत्तरप्रदेश राज्य के गोरखपुर जिला से अर्जुन त्रिपाठी मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि जब तक दुनिया है गरीब और गरीबी को समाप्त नहीं किया जा सकता है। किंतु जन सामान्य को रहने के लिए घर पहनने के लिए वस्त्र और भोजन तथा उपचार आदि की समुचित व्यवस्था उपलब्ध कराने के बाद लोगों के जीवन स्तर में सुधार किया जा सकता है। गरीब और गरीबी को मापने का पैमाना चाहे जैसा भी हो वास्तविकता यही है कि भारत में सरकारी संसाधनों का भरपूर अभाव है। किंतु विकासित राष्ट्रों में जन उपयोगी संसाधन अधिक सुलभ हैं।अमेरिका की कुल आबादी 40 करोड़ के सापेक्ष लगभग 4 करोड़ गरीब हैं। अर्थात महज 10% लोग जबकि भारत में कुल 140 करोड़ की आबादी में 23 करोड़ गरीब हैं। अर्थात 17% से अधिक लोग गरीब हैं।अमेरिका में प्रति व्यक्ति औसत आय के आधार पर गरीबी का पता लगाया जाता है। और वहां सरकार के द्वारा जन सामान्य के लिए पर्याप्त संसाधनों की भरपूर व्यवस्था की जाती है।जबकि भारत में गरीबी का आंकलन आय और क्रय शक्ति के आधार पर किया जाता है यहां प्रति व्यक्ति आय का औसत भी अमेरिका तथा यूरोप के विकसित देशों के मुकाबले बहुत कम है। तथा संसाधनों का पर्याप्त अभाव बना हुआ है।सच भले ही कड़वा लगे लेकिन सच यही है कि गरीब और गरीबी मिटाने के दावों के आंकड़े कुछ और हैं तथा वास्तविकता के धरातल पर गरीबी का हाल बहुत ही बुरा और भयावह है। आज भी ऐसे बहुत से परिवार हैं जिनके पास रहने के लिए छत और दोनों वक्त भरपेट भोजन करने की व्यवस्था नहीं है। सरकारी आंकड़ों की बाजीगरी सच को झूठ और झूठ को सच बताने में प्रशासन के खेल को भी देश का हर नागरिक जानता है। भारत में बढ़ती जनसंख्या और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की घातक प्रवृत्ति से भी गरीबी और गरीबों की रफ्तार बढ़ती नजर आ रही है।