बीएनएमयू के पूर्व कुलपति प्रो. आर. के. पी. रमण ने मंगलवार को नवनियुक्त कुलपति प्रो. बी. एस. झा से शिष्टाचार भेंट की। पूर्व कुलपति ने नवनियुक्त कुलपति को बधाई दी। दोनों ने विश्वविद्यालय के समग्र शैक्षणिक उन्नयन हेतु विचार-विमर्श किया। इस अवसर पर कुलसचिव प्रो. मिहिर कुमार ठाकुर, उपकुलसचिव (स्थापना) डॉ. सुधांशु शेखर, कुलपति के निजी सहायक शंभू नारायण यादव आदि उपस्थित थे।

बिहार राज्य के जिला सुपौल से हमारे श्रोता, मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि गुरमैता प्राथमिक सह मध्य संस्कृत विद्यालय भपटियाही के छात्र-छात्राओं को पढ़ने में काफी कठिनाई होती है। विद्यालय में एक भवन है जिसमें दो कमरा है।विद्यालय में शौचालय का सुविधा नहीं है , जिसके कारण बच्चे स्कूल पढ़ने नहीं जाना चाहते है।

रौशन राय,निर्मली(सुपौल) : विद्यालय समय में विद्यालय से अनुपस्थित रहते है प्रधान सहित सहायक शिक्षक चलाई गई खबर का असर देखने को मिला है।मामले को लेकर जानकारी देते हुए निर्मली प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी मधुसूदन प्रसाद सिंह ने बताया कि संबंधित विद्यालय के शिक्षकों की उपस्थिति को रद्द कर दिया गया है,साथ ही स्पष्टीकरण भी मांगा जा रहा है।मालूम हो कि प्राथमिक विद्यालय रुपौली पुनर्वास में प्रधान शिक्षक सहित सहायक शिक्षक स्कूल से गायब थे,जिससे संबंधित खबर सुपौल मोबाइल पर चलाया गया था।जिसका असर देखने को मिला है।

निर्मली(सुपौल) : ठंड के मद्देनजर जिलेभर का प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में 20जनवरी तक बच्चों का छुट्टी है।हालंकि इस दौरान विद्यालय के एचएम सहित सहायक शिक्षक को निर्धारित समय तक विद्यालय में उपस्थित रहने का प्रावधान है।लेकिन प्रखंड क्षेत्र के अधिकांश विद्यालयों में शिक्षक गायब रहते है।शुक्रवार को प्रखंड क्षेत्र के कमलपुर पंचायत स्थित प्राथमिक विद्यालय रुपौली पुनर्वास में एक भी शिक्षक उपस्थित नही पाया गया।विद्यालय के मुख्य दरवाजा में ताला जड़ा पाया गया।इस बावत स्थानीय लोगों ने बताया कि ठंड के मद्देनजर जब से शिक्षा विभाग ने स्कूलों में बच्चों की छुट्टी कर दी तबसे इस विद्यालय में ताला जड़ा हुआ है,छुट्टी के बाद एक भी दिन यहां के शिक्षक विद्यालय नही पहुंचे।

हमारे देश में सभी को शिक्षा का अधिकार है लेकिन लड़कियों को इसके लिए कहीं अधिक संघर्ष करना पड़ता है। कई बार घर के काम के बोझ के साथ स्कूल के बस्ते का बोझ उठाना पड़ता है तो कभी लोगों की गंदी नज़रों से बच-बचा के स्कूल का सफर तय करना पड़ता है। जैसे-तैसे स्कूल पहुंचने के बाद भी यौन शोषण और भावनात्मक शोषण की अलग चुनौती है जो रोज़ाना उनके धैर्य और हिम्मत की परीक्षा लेती है। ऐसे में लड़कियों के लिए सुरक्षित माहौल बनाने की जिम्मेदारी शासन-प्रशासन के साथ साथ समाज की भी है। तब तक आप हमें बताइए कि * -----लड़कियों के स्कुल छोड़ने के या पढ़ाई पूरी ना कर पाने के आपको और क्या कारण नज़र आते है ? * -----आपके हिसाब से हमें सामाजिक रूप से क्या क्या बदलाव करने की ज़रूरत है , जिससे लड़कियों की शिक्षा अधूरी न रह पाए।

सदर प्रखंड अंतर्गत हरदी पश्चिम चौघारा पंचायत के मोतीलाल-कुसुमलता उच्च माध्यमिक विद्यालय परिसर में शिक्षा संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी विवेकानंद सत्यार्थी, डीपीओ स्थापना राहुल चंद्र चौधरी व मत्स्य प्रसार पदाधिकारी दुर्गेश कुमार मौजूद रहे। कार्यक्रम की शुरुआत स्वागत गीत के साथ की गई। कार्यक्रम में अभिभावक व स्कूली छात्रों से संवाद किया गया। साथ ही डीपीओ द्वारा छात्रों के लिए सरकार द्वारा संचालित कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी छात्रों एवं अभिभावकों को दी गई। पोशाक योजना, छात्रवृत्ति योजना, कन्या उत्थान योजना, स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड योजना, मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना सहित अन्य कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी विस्तृत रूप से दी गई। पदाधिकारियों ने अभिभावकों से अनुरोध किया कि आप अपने बच्चों को रोजाना विद्यालय भेजें। कहा कि सरकार की कोशिश यही है कि बच्चे और बच्चियां पढ़े और आगे बढ़े। इस विद्यालय में कुल 715 छात्रों के संख्या है। मौके पर विद्यालय के प्राचार्य बिनोद कुमार, शिक्षक प्रमोद कुमार सूरज, मुस्तकीम आलम सहित अभिभावक एवं छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।

यूनेस्को की 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 1.10 लाख ऐसे स्कूल हैं जो केवल एक ही शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। इसके अलावा देश भर में शिक्षकों के लगभग 11.16 लाख पद खाली हैं और उसमें से भी तक़रीबन 70 फीसदी पद गांव के इलाके के स्कूलों में हैं। है ना मज़ेदार बात। जो गाँव देश की आत्मा है , जिसके लिए सभी सरकारें खूब बड़ी बड़ी बातें बोलती रहती है। कभी किसान को अन्नदाता , भाग्य विधाता, तो कभी भगवान तक बना देती है। उसी किसान के बच्चों के पढ़ने के लिए वो स्कूलों में सही से शिक्षक नहीं दे पाती है। जिन स्कूलों में शिक्षक है वहाँ की शिक्षा की हालत काफी बदहाल है. माध्यमिक से ऊपर के ज्यादातर स्कूलों में संबंधित विषयों के शिक्षक नहीं हैं. नतीजतन भूगोल के शिक्षक को विज्ञान और विज्ञान के शिक्षक को गणित पढ़ाना पड़ता है. ऐसे में इन बच्चों के ज्ञान और भविष्य की कल्पना करना मुश्किल नहीं है. लोग अपनी नौकरी के लिए तो आवाज़ उठा रहे है। लेकिन आप कब अपने बच्चो की शिक्षा के लिए आवाज़ उठाएंगे और अपने जन प्रतिनिधियों से पूछेंगे कि कहाँ है हमारे बच्चो के शिक्षक? खैर, तब तक, आप हमें बताइए कि ------आपके गाँव या क्षेत्र में सरकारी स्कूलों में कितने शिक्षक और शिक्षिका पढ़ाने आते है ? ------ क्या आपने क्षेत्र या गाँव के स्कूल में हर विषय के शिक्षक पढ़ाने आते है ? अगर नहीं , तो आप अपने बच्चों की उस विषय की शिक्षा कैसे पूरी करवाते है ? ------साथ ही शिक्षा के मसले पर आपको किससे सवाल पूछने चाहिए ? और इसे कैसे बेहतर बनाया जा सकता है , ताकि हमारे देश का भविष्य आगे बढे।

दोस्तों, बीते कुछ सालों में भारत के हर शहर में स्कूलों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि एडमिशन का फैसला लेना आसान नहीं होता है. हर कोई अपने स्कूल को बेस्ट दिखाने की होड़ में लगा हुआ है. इस वजह से किसी भी स्कूल में बच्चे का एडमिशन करवाने से पहले माँ-बाप को कई स्तरों पर गहरी खोज बिन करनी पड़ती है. लेकिन ये खोज बिन या पड़ताल करते है शहर में रहने वाले माँ बाप। गाँव आज भी हमारे नक़्शे से गायब है या फिर मनोज कुमार की फिल्मो के जरिए हम गाँव को गाँव की तरह खोजने की कोशिश में लगे हुए है। क्या आपने कभी वोट देने अपने नुमाईंदों से पूछा है कि आपके क्षेत्र के स्कूलों की स्थिति ऐसी क्यों है ? बच्चे जो आपके भविष्य है उनके भविष्य का क्या होगा ? या किसी भी पार्टी को वोट देने से पहले आपको अपने बच्चे के भविष्य को लेकर यह ख़्याल आता है ? बात साफ़ है कि कम्पनियों के सरकारों के प्रवक्ता आपको इस और सोचने ही नहीं देंगे। वो चाहते है कि आप उनका झंडा उठाये, टोपी पहले और भीड़ में शामिल होकर एक-दूसरे पर चिल्लाते रहे और वो अपने बच्चों को विदेशो में पढ़ाते रहे । याद रखिए जो सरकार या पार्टी आपका या आपके पारवार कहा भविष्य खराब कर रहा है वो देश का अच्छा कैसे कर सकता है , उनके केंद्र में आप नहीं हैं तो देश भी नहीं होगा ? खैर.. ये तो आपके निर्णय की बात है तब तक, आप हमें बताइए कि ***** आपके गाँव या क्षेत्र में सरकारी स्कूलों में पढ़ाई कैसी है ? ***** वहां के स्कुल कितने शिक्षक और शिक्षिका आते है ? ***** साथ ही आपके बच्चों को या अन्य बच्चों को आपके गाँव के स्कूलों में किस तरह की शिक्षा मिल रही है ?

दोस्तों, सरकारी स्कूलों की बदहाली किससे छुपी है? इसी कारण देश की पूरी शिक्षा व्यवस्था, प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा तक, पूरी तरह से बाजारवाद में जकड़ गई है। उच्च व मध्यम वर्ग के बच्चे तो प्राइवेट स्कूलों में अपने भविष्य का निर्माण करते हैं। नेताओं और नौकरशाह की बात तो दूर अधिकांश विद्यालय में कार्यरत शिक्षक के बच्चे भी सुविधा संपन्न प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई करते हैं भला ऐसे में सरकारी विद्यालयों की दुर्दशा की चिंता किसे होगी? देश के छोटे से छोटे विकास खंड में सरकारी स्कूलों में करोड़ों खर्चे जाते हैं फिर भी उनका स्तर नहीं सुधरता। -------------तो दोस्तों, आप हमें बताइए कि आपके गांव या जिला के स्कूलों की स्थिति क्या है ? -------------वहां पर आपके बच्चों को या अन्य बच्चों को किस तरह की शिक्षा मिल रही है ? -------------और आपके गाँव के स्कूलों में स्कुल के भवन , बच्चों की पढ़ाई और शिक्षक और शिक्षिका की स्थिति क्या है ? दोस्तों इस मुद्दे पर अपनी बात को जरूर रिकॉर्ड करें अपने फ़ोन में नंबर 3 का बटन दबाकर या मोबाइल वाणी एप्प में ऐड का बटन दबाकर।

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