दोस्तों, हमारे आपके बीच ऐसी महिलाओं के बहुत से उदाहरण हैं, पर उन पर गौर नहीं किया जाता. अगर आपने गौर किया है तो हमें जरूर बताएं. साथ ही वे महिलाएं आगे आएं जो घंटों पानी भरने और ढोने का काम करती हैं. उनका अपना अनुभव कैसा है? वे अपने जीवन के बारे में क्या सोचती हैं? क्या इस काम के कारण उनका जीवन नरक बन रहा है? क्या वे परिवार में पानी की आपूर्ति के चक्कर में अपना आत्मसम्मान खो रही हैं? क्या कभी ऐसा कोई वाक्या हुआ जहां पानी के बदले उनसे बदसलूकी की गई हो, रास्ते में किसी तरह की दुर्घटना हुई हो या फिर किसी तरह के अपशब्द अपमान सहना पडा?

उत्तर प्रदेश राज्य के संत कबीर नगर जिला से के. सी. चौधरी ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे है की, बरसात के मौसम में पानी का संरक्षण करना आसान है। अगर हम पानी बचाते हैं तो आने वाले समय में लोगों को पानी के संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा। जहाँ भी घर हो, वहाँ घर से गिरने वाले पानी को पाइप के माध्यम से जमीन में होल करके वहाँ से आने वाला पानी उसमें जमा हो और धीरे-धीरे पानी का संरक्षण होगा और आसपास के क्षेत्र में पानी की कमी नहीं होगी और जल स्तर भी बढ़ेगा क्योंकि आने वाले समय में लोगों को पानी के संकट का सामना करना पड़ सकता है।

उत्तर प्रदेश राज्य के संत कबीर नगर जिला से रामप्रकाश सिंह ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि महिलायें नल से पानी लाती है, किसी किसी प्रदेश में ऐसा है की वहां लोग कुएँ से पानी लाते है। पहले यह देखा गया है कि कुएँ से पानी लाया जाता था और पानी को सुरक्षित रखा जाता था। लेकिन के आजा के ज़माने में जब से नल सबके घर घर में है तब से पानी सुरक्षित नहीं रखा जाता है ।जब कुएँ से पानी भरना पड़ता था, तो वह उसे सुरक्षित रखा जाता था ताकि पानी ज्यादा न गिरे और गिरने पर कौन नहीं भरेगा, इसलिए वे पानी को सुरक्षित रखते थे, लेकिन आज के समय में पानी की बर्बादी एक आम बात है।

उत्तरप्रदेश राज्य के संत कबीर नगर से के सी चौधरी मोबाइल वाणी के माध्यम से बात रहे है की सरकार का दावा करती है कि गाँव में पानी की टंकी है, सरकारी हैंडपंप लगाए गए हैं लेकिन ग्रामीणों को अभी भी साफ पानी नहीं मिल पा रहा है। लोग स्वदेशी हैंडपंपों की मदद से पानी पीने के लिए मजबूर हैं, वहीं कुछ लोगों ने बताया है कि गाँव में लगाए गए सरकारी हैंडपंप बेकार साबित हो रहे हैं और इसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है।

उत्तर प्रदेश राज्य के संत कबीर नगर जिला से रामप्रकाश सिंह ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि आज भी महिलायें पानी की तलाश में दूर दूर तक जाती है। अभी भी क्षेत्र के बहुत से ऐसे जगह है जहाँ नल का कनेक्शन नहीं लगा है। उत्तर प्रदेश में ऐसा कोई गाँव नहीं बचा है जहाँ किसी के दरवाजे पर हैंडपाइप नहीं लगा हो

दोस्तों, राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट के अनुसार एक महिला अभी भी 2.5 किमी तक पैदल चलकर जाती हैं ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं अपने परिवार के लिए पीने का पानी लाने में औसतन दिन में 3-4 घंटे खर्च करती हैं, यानि अपने पूरे जीवन काल में 20 लाख घंटों से भी ज्यादा. क्या आपको ये बातें पता है ?और ज्यादा जानने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें.

उत्तर प्रदेश राज्य के संत कबीर नगर जिला से रामप्रकाश सिंह ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि अधिकतर देखा जा रहा है की आंगनवाड़ी केंद्र में कोई हैंडपंप या स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था नहीं है। सभी जगह के नल ख़राब हो चुके है और सरकार भी ध्यान नहीं दे रही है, सरकार को इसपर ध्यान देने की जरुरत है

दोस्तों, मोबाइलवाणी के अभियान क्योंकि जिंदगी जरूरी है में इस बार हम इसी मसले पर बात कर रहे हैं, जहां आपका अनुभव और राय दोनों बहुत जरूरी हैं. इसलिए हमें बताएं कि आपके क्षेत्र में बच्चों को साफ पानी किस तरह से उपलब्ध हो रहा है? क्या इसमें पंचायत, आंगनबाडी केन्द्र आदि मदद कर रहे हैं?आप अपने परिवार में बच्चों को साफ पानी कैसे उपलब्ध करवाते हैं? अगर गर्मियों में बच्चों को दूषित पानी के कारण पेचिस, दस्त, उल्टी और पेट संबंधी बीमारियां होती हैं, तो ऐसे में आप क्या करते हैं? क्या सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों से बच्चों का इलाज संभव है या फिर इलाज के लिए दूसरे शहर जाना पड रहा है? जो बच्चे स्कूल जा रहे हैं, क्या उन्हें वहां पीने का साफ पानी मिल रहा है? अगर नहीं तो वे कैसे पानी का इंतजाम करते हैं?

उत्तरप्रदेश राज्य के संत कबीर नगर से के. सी. चौधरी मोबाइल वाणी के माध्यम से बता रहे हैं कि दूषित पानी पीने को लोग मजबूर हो रहे हैं। गांव में पानी की टंकी बन रही लेकिन आधी अधुरी छोड़ दी जा रही है। ग्राम पंचायतों में अक्सर देखा जा रहा है लोग कि कुछ स्थानों पर हैंडपंप सूख गए हैं कुछ स्थानों पर हैंडपंप दुसित पानी दे रहा हैं. गांव में पानी की टंकी बन रही लेकिन आधी अधुरी छोड़ने के कारण लोगों को पीने का पानी नहीं मिल रहा है। यह अक्सर देखा जाता है कि गाँव में लगाए गए हैंडपंपों पर घोड़े के निशान भी होते हैं कि उनका पानी पीने के लिए दूषित माना जाता है लेकिन इसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं होता है।

पानी में आर्सेनिक, लोह तत्व और दूसरे घातक पदार्थों की मात्रा महिलाओं के स्वास्थ्य पर सबसे बुरा असर कर रही है और फिर यही असर गर्भपात, समय से पहले बच्चे का जन्म या फिर कुपोषण के रूप में सामने आ रहा है. साथियों, हमें बताएं कि आपके परिवार में अगर कोई गर्भवति महिला या नवजात शिशु या फिर छोटे बच्चे हैं तो उन्हें पीने का पानी देने से पहले किस प्रकार साफ करते हैं? अगर डॉक्टर कहते हैं कि बच्चों और महिलाओं को पीने का साफ पानी दें, तो आप उसकी व्यवस्था कैसे कर रहे हैं? क्या आंगनबाडी केन्द्र, एएनएम और आशा कार्यकर्ता आपको साफ पानी का महत्व बताती हैं? और ये भी बताएं कि आप अपने घर में किस माध्यम से पानी लाते हैं यानि बोरवेल, चापाकल या कुएं और तालाबों से?