उत्तरप्रदेश राज्य के जिला बस्ती से अरविन्द श्रीवास्तव , मोबाइल वाणी के माध्यम से यह बताना चाहते है कि लैंगिक असमानता स्कूल में शुरू नहीं होती है, बल्कि गर्भधारण के समय शुरू होती है, लोग जांच कराकर पता लगा लेते है कि लड़का है या लड़की ,अगर लड़की हुई तो उसे पैदा होने से रोकने के लिए कई प्रयास किए जाते हैं। समाज में लोग लड़के की इच्छा में, कई प्रकार के कार्य करते रहते है। समाज में लोगों का यह मानना है कि पुरुष ही केवल घर चला सकते हैं,लेकिन ऐसा नहीं है। आज भी महिलाएं उंचाईयों पर है और नौकरियों में भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएँ कृषि का काम कर रही है। वह कृषि का काम तो कर रही है लेकिन उन्हें जमीन पर मालिकाना हक़ नहीं मिला है। पुरुष प्रधान देश होने के नाते जमीन पर हक़ पुरुषों को ही दिया जाता है। महिलाओं को जमीन पर हक़ प्राप्त करने में कठिन संगर्ष करना पड़ता है। कई महिलायें पैतृक संम्पत्ति नहीं लेना चाहती है क्योंकि उनका मानना है कि हक़ लेने पर घर में विवाद हो सकता है। सरकार द्वारा यह कानून भी बनाया गया है कि अगर पति की मृत्यु हो जाती है तो जमीन पर पत्नी को भी हक़ मिलेगा।