उत्तरप्रदेश राज्य के बस्ती जिला से अरविन्द श्रीवास्तव ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं का आर्थिक परिवर्तन या सामाजिक परिवर्तन भी देखा। लेकिन इन सबके बावजूद, आज भी कहीं न कहीं यह देखा जाता है कि आज भी हमारा समाज महिलाओं को भूमि का अधिकार देने से कतराता है। स्वतंत्रता आंदोलन में केवल पुरुषों ने भाग नहीं लिया था। वास्तव में, कई महिलाओं ने भी अपने प्राणों की आहुति दी और बड़ी संख्या में भाग लिया। आजादी के बाद सरकार ने अपना मन बदल लिया कि महिलाओं को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए। उन्होंने, बदले में, महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं, जैसे कि शिक्षा में उनकी भागीदारी, रोजगार में उनकी भागीदारी, या समाज के उत्थान में उनकी भागीदारी। लेकिन आज भी अगर उस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह स्थिति बहुत पीछे है क्योंकि महिलाओं को आज भी उचित अधिकार नहीं मिल रहे हैं। धान की बुआई चल रही है जिसमें देखा जाए तो अस्सी प्रतिशत महिलाएँ केवल धान की बुवाई का काम कर रही हैं। पुरुष कहीं न कहीं अकेले दिखाई देते हैं क्योंकि पुरुष शहर से बाहर जाते हैं और उनका सारा सुरक्षा कार्य पूरा हो जाता है। महिलाएं ये सब काम जानवरों की देखभाल के लिए कर रही हैं, लेकिन आज भी हमारा समाज उन्हें अधिकार देने से कतराता रहता है। महिलाओं को चुनाव लड़ने की स्वतंत्रता भी दी जाती है, लेकिन यह देखा गया है कि चुनाव जीतने के बाद काम पर उन महिलाओं का वर्चस्व समाप्त हो जाता है और केवल पुरुष ही उनका काम देखते हैं। अगर महिलाओं से उनके काम के बारे में पूछा जाए तो शायद ही बहुत सी महिलाओं को पता हो कि यह विडंबना अभी भी चल रही है और इसे खत्म करने के लिए समाज को आगे आना होगा