हमारी सूखती नदियां, घटता जल स्तर, खत्म होते जंगल और इसी वजह से बदलता मौसम शायद ही कभी चुनाव का मुद्दा बनता है। शायद ही हमारे नागरिकों को इससे फर्क पड़ता है। सोच कर देखिए कि अगर आपके गांव, कस्बे या शहर के नक्शे में से वहां बहने वाली नदी, तालाब, पेड़ हटा दिये जाएं तो वहां क्या बचेगा। क्या वह मरुस्थल नहीं हो जाएगा... जहां जीवन नहीं होता। अगर ऐसा है तो क्यों नहीं नागरिक कभी नदियों-जंगलों को बचाने की कवायद को चुनावी मुद्दा नहीं बनाते। ऐसे मुद्दे राजनीति का मुद्दा नहीं बनते क्योंकि हम नागरिक इनके प्रति गंभीर नहीं हैं, जी हां, यह नागरिकों का ही धर्म है क्योंकि हमारे इसी समाज से निकले नेता हमारी बात करते हैं।

प्लास्टिक के थैले से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है,विनोद कुमार सेठ,

शहर में रहने वाले विद्यार्थियों के लिए डोलची बनाना, खेत में कुदाल चलाना, बीज बोना, जैविक खेती के तरीके सीखना एक नया अनुभव होता है। यह अनुभव उन्होंने बेटावर, बच्छांव स्थित विद्याश्रम दी साउथ प्वाइंट स्कूल परिसर में आयोजित पर्यावरण का जश्न कार्यक्रम में किया। इस अनोखे कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने प्राकृतिक खाद बनाना सीखा, ग्राम शिल्प के तहत मिट्टी के बर्तन, चारपाई बनाने की विधि जानी। स्कूल निदेशिका डॉ. नीता कुमार ने बच्चों का उत्साह वर्धन किया। इस दौरान प्रिंसिपल जयंती मिश्रा, हर्षिता वाडिया, मंजू सचदेवा आदि मौजूद थीं।

वाराणसी में सर्दी में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी तिब्बत और मानसरोवर से काशी आते हैं। इस दौरान सैलानियों से इनकी निकटता भी होती है। इनके प्रति प्यार प्रदर्शित करने के लिए सैलानी इन्हें बेसन और मटर के सेव खिलाते हैं जो ये बड़े चाव से खाते हैं। सैलानियों का प्यार वापसी की यात्रा में हेडेड गल के लिए काल बन जाता है। सेव खाने से इनके शरीर में फैट की मात्रा अधिक हो जाती है जो इनकी मौत का कारण बनती है। 30 फीसदी अत्यधिक फैट के कारण वापसी की उड़ान के दौरान बीच रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं। पक्षी वैज्ञानिकों ने इसका खुलासा बर्ड रिंगिंग तकनीक के माध्यम से किया है। वापसी में हेडेड गल की मौत का सिलसिला विगत पांच-सात वर्षों सेबढ़ गया है। हेडेड गल प्राकृतिक खुराक और प्रजनन के अनुकूल वातावरण की तलाश में यहां आते हैं। पक्षी विज्ञानियों ने वर्ल्ड बर्ड रिंगिंग एसोसिएशन की रिपोर्ट के हवाले से बताया कि लौटने वाले ब्लैक हेडेड गल और व्हाइट हेडेड गल की संख्या में 30 फीसदी तक की कमी हो रही है। डाटा के परीक्षण से पता चला कि उनमें फैट की मात्रा आश्चर्यजनकढंग से बहुत अधिक थी। पक्षी जब वापसी की उड़ान आरंभ करते हैं तो बीच में विश्राम नहीं करते। अधिक थकने के बाद भी वे उड़ते रहते है और उनकी मौत हो जाती हैबर्ड रिंगिंग या बर्ड बैंडिंग पक्षी की व्यक्तिगत पहचान और अध्ययन के लिए लगाए. जाते हैं। उनके पैर अथवा पंख में धातु या प्लास्टिक की अंगूठीनुमा टैगलगाया जाता है जो चिप के माध्यम से कंम्प्यूटर से जुड़ा होता है। टैग पर यूनिक नंबर और संपर्क का पता अंकित होता है। पहली बर्ड बैंडिंग योजना जर्मनी में जोहन्स थिएनेमैन ने 1903 में शुरू हुई थी। 1908 में हंगरी के आर्थर लैंडस्बोरो थॉमस, 1909 में ब्रिटेन के हैरी वाइटबी ने इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किए।

काशी शब्दोत्सव में विकसित भारत-विश्वगुरु भारत' के विविध आयामों पर विमर्श किया जाएगा। साहित्य, संस्कृति के साथ विज्ञान और पर्यावरण का इस आयोजन में संदर्भ लिया जाएगा। काशी विद्यापीठ स्थित मदन मोहन मालवीय पत्रकारिता संस्थान में प्रेसवार्ता के दौरान कार्यक्रम संयोजक डॉ. हरेंद्र राय ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि चार दिवसीय आयोजन की शुरूआत 15 फरवरी से होगी। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में केंद्रीय मंत्री डॉ. महेंद्रनाथ पाण्डेय बतौर मुख्य अतिथि शुभारंभ करेंगे। यहां मुख्यवक्ता के रूप में अयोध्या में हनुमंत पीठ के महंत आचार्य मिथिलेश नंदिनी शरण होंगे। काशी विद्यापीठ, तिब्बती उच्च शिक्षण संस्थान और बीएचयू के वैदिक विज्ञान केंद्र में भी आयोजन होगा। प्रो. ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि काशी शब्दोत्सव में नौ सत्र होंगे। रामराज्य विकसित भारत, युवा भारत विज्ञान व विकास समेत अन्य संबंधित विषयों पर विद्वतजन विचार रखेंगे।

रामघाट पर स्वच्छता अभियान चलाकर लोगो को जागरुक किया गया।

बुधवार को रामघाट पर स्वच्छता अभियान चलाया गया और लोगों को जागरूक किया गया। इस दौरान स्वच्छ नदियां-बेहतर कल का सन्देश दिया गया। कचरा मुक्त गंगा घाट' का आह्वान कर रामघाट पर गंगा किनारे की सफाई की गई। । गंगा स्वयं सेवक नमामि गंगे काशी क्षेत्र के संयोजक राजेश शुक्ला ने कहा कि इस अभियान का मुख्य उद्देश्य युवाओं और नागरिकों को नदियों के महत्व के बारे में जागरूक करना, नदियों को कचरा मुक्त करना तथा नदियों को स्वच्छ कर इनकी धारा को अविरल बनाये रखना है।

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दीपावली दियों से या धमाकों से? अबकि दीवाली पर हमें यह सोचना ही होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि हमारे शहरों की हवा हमारे इस उत्साह को शायद और नहीं झेल पा रही है। हवा इतनी खराब है कि सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है। भारत की राजधानी दिल्ली इस मामले में कुछ ज्यादा बदनाम है। दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित जगहों में शामिल दिल्ली में प्रदूषण इतना अधिक है कि लोगों का रहना भी यहां दूभर हो रहा है।

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