नासिक में रहने वाली मयूरी धूमल, जो पानी, स्वच्छता और जेंडर के विषय पर काम करती हैं, कहती हैं कि नासिक के त्र्यंबकेश्वर और इगतपुरी तालुका में स्थिति सबसे खराब है। इन गांवों की महिलाओं को पानी के लिए हर साल औसतन 1800 किमी पैदल चला पड़ता है, जबकि हर साल औसतन 22 टन वज़न बोझ अपने सिर पर ढोती हैं। और ज्यादा जानने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें।

बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" के नारे से रंगी हुई लॉरी, टेम्पो या ऑटो रिक्शा आज एक आम दृश्य है. पर नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च द्वारा 2020 में 14 राज्यों में किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि योजना ने अपने लक्ष्यों की "प्रभावी और समय पर" निगरानी नहीं की। साल 2017 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में हरियाणा में "धन के हेराफेरी" के भी प्रमाण प्रस्तुत किए। अपनी रिपोर्ट में कहा कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ स्लोगन छपे लैपटॉप बैग और मग खरीदे गए, जिसका प्रावधान ही नहीं था। साल 2016 की एक और रिपोर्ट में पाया गया कि केंद्रीय बजट रिलीज़ में देरी और पंजाब में धन का उपयोग, राज्य में योजना के संभावित प्रभावी कार्यान्वयन से समझौता है।

महिलाओं की लगातार बढ़ती हिस्सेदारी और उसके सहारे में परिवारों के आर्थिक हालात सुधारने की तमाम कहानियां हैं जो अलग-अलग संस्थानों में लिखी गई हैं, अब समय की मांग है कि महिलाओं को इस योजना से जोड़ने के लिए इसमें नए कामों को शामिल किया जाए जिससे की ज्यादातर महिलाएं इसका लाभ ले सकें। दोस्तों आपको क्या लगता है कि मनरेगा के जरिए महिलाओँ के जीवन में क्या बदलाव आए हैं। क्या आपको भी लगता है कि और अधिक महिलाओं को इस योजना से जोड़ा जाना चाहिए ?

छत्तीसगढ़ राज्य के राजनांदगांव से वीरेंदर गन्धर्व ने मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया कि मनरेगा में रोजगार नहीं होने के कारण ग्रामीण मजदूरों को पलायन का रास्ता अपनाना पड़ता है। इसे गंभीरता से लेते हुए सरकार को मजदूरों के लिए रोजगार का इंतजाम करना चाहिए

मनरेगा में भ्रष्टाचार किसी से छुपा हुआ नहीं है, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा दलित आदिवासी समुदाय के सरपंचों और प्रधानों को उठाना पड़ता है, क्योंकि पहले तो उन्हें गांव के दबंगो और ऊंची जाती के लोगों से लड़ना पड़ता है, किसी तरह उनसे पार पा भी जाएं तो फिर उन्हें प्रशासनिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस मसले पर आप क्या सोचते हैं? क्या मनरेगा नागरिकों की इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हो पाएगी?

भारत का आम समाज अक्सर सरकारी सेवाओं की शिकायत करता रहता है, सरकारी सेवाओं की इन आलोचनाओं के पक्ष में आम लोगों सहित तमाम बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों तक का मानना है कि खुले बाजार से किसी भी क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों में कंपटीशन बढ़ेगा जो आम लोगों को बेहतर सुविधाएं देगा। इस एक तर्क के सहारे सरकार ने सभी सेवाओं को बाजार के हवाले पर छोड़ दिया, इसमें जिन सेवाओं पर इसका सबसे ज्यादा असर हुआ वे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर पड़ा है। इसका खामियाजा गरीब, मजदूर और आम लोगों को भुगतना पड़ता है।

कई लोकतान्त्रिक व्यवस्था में अलग - अलग चालों का इस्तेमाल किया गया है और उसका इस्तेमाल करने के बाद ये लोग देश का सबसे बड़ा देश नहीं बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा देश हैं । लोकतांत्रिक व्यवस्था बता रही है । विज्ञान और शिक्षित लोग इस प्रणाली के बारे में बहुत अच्छी तरह से जानते हैं ।

भारत सरकार की किसी न किसी योजना में कोई न कोई त्रुटि ज़रूर होता है। योजना अब जातिवादी हो गया है। उच्च जाति को लाभ मिलेगा परन्तु निचली जाति वाले को कोई लाभ नहीं

महाराष्ट्र राज्य के नागपुर से मोबाइल वाणी के माध्यम से आदर्श बोल रहें हैं की राशन कार्ड न मिलने के सबसे बड़े कारणों में से एक यह है कि बयानबाजी में सबसे पहले हमें यह बताया जाता है । कि हमने अभी तक अस्सी करोड़ लोगों को राशन दिया है और ऐसा नहीं हो रहा है , लेकिन यहां सुनने में आ रहा है कि कुछ लोगों का राशन कार्ड नहीं बन रहा है , कुछ लोगों का राशन कार्ड है लेकिन इसमें लोगों का नाम शामिल नहीं किया जा रहा है । कोई परिवार का नाम हटाना चाहता है , कोई जोड़ना चाहता है , शायद सरकार खुद नहीं चाहती कि कोई व्यक्ति किसी योजना के लिए आवेदन करे , लेकिन यहाँ बताया गया है कि अस्सी लाख लोगों को राशन मिल रहा है लेकिन मुझे लगता है कि इसका सबसे बड़ा कारण यह हो सकता है कि अब सरकार नए पंजीकृत लोगों को योजना का लाभ नहीं देना चाहती है ।

पूर्वी दिल्ली के प्रेम कुमार ने मध्य प्रदेश मोबाइल वाणी के माध्यम से बताया की हेमल दरबार सिंह जो की रहने वाले है झुगी नंबर 132 मधु विहार हसंपू डिपू का राशन कार्ड नहीं बन रहा है