पक्ष विपक्ष कड़ी संख्या 49 के तहत मेरा अपना विचार है की एमएसपी सरकार की नीति (पॉलिसी) है कानून (लॉ) नहीं, इसे सरकार संसद में बिना वोटिंग कराए, जब मर्जी रोक सकती है। अगर एमएसपी के लिए कानून बन जाएगा, तो सरकार तय फसलों को एमएसपी पर खरीदने के लिए मजबूर हो जाएगी। इसके अलावा कई राज्यों में एमएसपी लागू भी नहीं है, जैसे- बिहार। वहां राज्य सरकार ने पैक्स (प्राइमरी एग्रीकल्चर कॉपरेटिव सोसाइटीज) का गठन कर, उसे ही किसानों से अनाज खरीदने का जिम्मा दे रखा है। पैक्स को लेकर हमेशा शिकायतें आती हैं। किसान आरोप लगाते हैं कि उन्हें अपने फसल का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। बिचौलियों को कम कीमत पर फसल बेचनी पड़ती है। इसी लिए मेरा व्यक्तिगत विचार है कि एमएसपी के लिए कानून बना दिया जाए। सरकारी खरीद एमएसपी पर हो, जो ऐसा न करे उसे सजा मिले। साथ ही अन्य फसलों को भी एमएसपी के दायरे में लाया जाए।

CRISIL के अनुसार 2022-23 में किसान को MSP देने में सरकार पर ₹21,000 करोड़ का अतिरिक्त भार आता, जो कुल बजट का मात्र 0.4% है। जिस देश में ₹14 लाख करोड़ के बैंक लोन माफ कर दिए गए हों, ₹1.8 लाख करोड़ कॉर्पोरेट टैक्स में छूट दी गई हो, वहां किसान पर थोड़ा सा खर्च भी इनकी आंखों को क्यों खटक रहा है? आप इस पर क्या सोचते है ? इस मसले को सुनने के लिए इस ऑडियो को क्लिक करें

बिहार राज्य के जमुई जिला के गिद्धौर प्रखंड से रंजीत पांडेय ने मोबाईल वाणी के माध्यम से बताया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर किसान आंदोलन कर रहे हैं।किसान मेहनत कर के सिंचाई की सुविधा के आभाव में भगवान भरोसे फसल उपजाते हैं। ऐसे में फसल बर्बाद हो जाने से किसानों को बहुत हानि होती है।इसके अलावा बीज और खाद महंगे खरीदने पड़ते हैं। फसल बेचने के समय किसानों को लागत के मुकाबले कीमत बहुत कम मिलती है। विस्तार पूर्वक जानकारी के लिए क्लिक करें ऑडियो पर और सुनें पूरी खबर।

देश के किसान एक बार फिर नाराज़ दिखाई दे रहे हैं। इससे पहले साल नवंबर 2020 में किसानों ने केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों के रद्द करने के लिए दिल्ली में प्रदर्शन किया था और इसके बाद अगले साल 19 नवंबर 2021 को केंद्र सरकार ने तीनों कानून वापस ले लिए थे, हालांकि इस दौरान करीब सात सौ किसानों की मौत हो चुकी थी। उस समय सरकार ने किसानों की कुछ मांगों पर विचार करने और उन्हें जल्दी पूरा करने का आश्वासन दिया था लेकिन ऐसा अब तक नहीं हआ है। और यही वजह है कि किसान एक बार फिर नाराज़ हैं।

Transcript Unavailable.

Transcript Unavailable.

Transcript Unavailable.

Transcript Unavailable.

सरकार को भारत रत्न देने के अलावा किसानों को उनके अधिकार भी देने चाहिए , आखिर उनकी मांग भी तो बहुत छोटी सी है कि उन्हें उनकी फसलों का बेहतर मूल्य मिले। हालांकि किसानों की इस मांग का आधार भी एम एस स्वामीनाथन समिति की सिफारिशें हैं जो उन्होंने आज से करीब चार दशक पहले दी थीं। इन चार दशकों में न जाने स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों को लागू करने का वादा करके न जाने कितनी सरकारें आईं और गईं, इनमें वर्तमान सरकार भी है जिसने 2014 के चुनाव में इन सिफारिशों को लागू करने का वादा प्रमुखता से किया था। -------दोस्तों आप इस मसले पर क्या सोचते हैं, क्या आपको भी लगता है कि किसानों की मांगो को पूरा करने की बजाए भारत रत्न देकर किसानों को उनके अधिकार दिलाए जा सकते हैं? --------या फिर यह भी किसानों को उनके अधिकारों को वंचित कर उनके वोट हासिल करने का प्रयास है.

"गांव आजीविका और हम" कार्यक्रम के तहत हमारे कृषि विशेषज्ञ कपिलदेव शर्मा गेंहू की फसल में सिंचाई प्रबंधन के बारे में बता रहे है । विस्तृत जानकारी के लिए ऑडियो पर क्लिक करें...