‘नागरिकों को राजनीतिक दलों के चंदे का स्रोत जानने का अधिकार नहीं है’ सरकार की तरफ से पेश हुए उसके वकील यानी सॉलीसिटर जनरल आर. रमन्नी ने यह बात सुप्रीम कोर्ट में कही है’। सवाल उठता है कि जब सबकुछ ठीक है तो फिर चंदे से जुड़ी जानकारी जनता से साझा करने में दिकक्त क्या है? राजनीतिक शुचिता और भ्रष्टाचार पर वार करने वाले राजनीतिक दल की सरकार अगर कहे कि वह जनता को नहीं बता सकती की उसकी पार्टी को चंदा देने वाले लोग कौन हैं, तो फिर इसको क्या समझा जाए।

दरौदा प्रखंड के मतदान केदो पर संक्षिप्त पुनरीक्षण कार्यक्रम का शिविर का आयोजन किया गया इस दौरान 76 में मतदाताओं का नाम जोड़ने तथा साथ मतदाताओं का नाम हटाने का कार्य किया गया इस संबंध में प्रखंड विकास पदाधिकारी सूर्य प्रताप से सिंघम ने बताया कि 18 एवं 19 आयु के 76 में मतदाताओं का नाम जोड़ने का आदेश प्राप्त किया गया है जिसमें 50 पुरुष मतदाता एवं 26 महिला मतदाता शामिल है

चुनाव लड़ने के लिए नेता जिस तरह से दल बदल का खेल करते हैं उसमें जनता, लोकतंत्र, विचारधारा, राजनीतिक वफादारी जैसे शब्द अपनी महत्ता खो देते हैं। नेताओं द्वारा ऐसा करने से केवल शब्द ही नहीं लोकतंत्र की वह भावना भी अपने वास्तविक अर्थों में खत्म हो जाती है, जो जनता के लिए, जनता द्वारा, जनता का शासन से संचालित होती है।

कोई भी जागरूक नागरिक यह जानता है कि लोकतंत्र में वोट की क्‍या कीमत है. वोट का अधिकार ही वह बुनियादी अधिकार है, जो लोकतंत्र में हमारी हिस्‍सेदारी और हमारे नागरिक अधिकारों को सुनिश्चित करता है। दुनिया भर की महिलाओं को यह अधिकार लंबी लड़ाई के बाद हासिल हुआ है।

सिवान जिला के रघुनाथपुर प्रखंड मुख्यालय कार्यालय पर प्रखंड विकास पदाधिकारी अशोक कुमार सिंह ने अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर 80 वर्ष से अधिक आयु के मतदाताओं को अंग बस्ती का सम्मानित किया साथियों में स्वस्थ रहने की कामना की सम्मानित होने वाले में कौशल निवासी जंग बहादुर सिंह लालपति देवी फूलवती दिव्य कौशल मटिया निवासी सुदामा देवी रघुनाथपुर निवासी जय श्री चौरसिया परीक्षण यादव आदि शामिल है

एक राष्ट्र एक चुनाव के फैसले पर आगे बढ़ने के लिए संविधान में संशोधन जरूरी है, इसके लिए दो तिहाई राज्यों की सहमति, संसद के दोनों सदनों में दो तिहाई बहुमत से पास कराने जैसी प्रक्रिया भी हैं, जिससे गुजरकर ही यह विचार मुकम्मल होगा। यह मसला व्यापक चर्चा का विषय है लेकिन सरकार के पास क्या इतना वक्त है जिसमें इस तरह की चर्चा कराई जा सके, जबकि आम चुनावों में कुछ महीनों का ही वक्त बचा हुआ है। दोस्तों क्या आपको भी लगता है कि सरकार की तरफ से बुलाया गया संसद का विशेष सत्र नियम प्रक्रियाओं और परंपराओं के अनुरूप है, सरकार जिस विधेयक को पेश कर रही है वह इतना महत्वपूर्ण है कि इस पर विचार विमर्श भी न किया जा सके। पूर्व राष्ट्रपति को एक राजनीतिक समिति का अध्यक्ष बनाया जाना कितना सही है? क्या यह सरकार की मनमर्जी है? इस मसले पर अपनी बात को रिकॉर्ड करें और बताएं कि आप इस मसले पर क्या सोचते हैं, आपकी बात भले मसले के पक्ष में हो या फिर विपक्ष में। अपनी बात पक्ष _विपक्ष में रिकॉर्ड जरूर करें अपने फोन से 3 नंबर का बटन दबाकर या फिर एप के जरिए एड का बटन दबाकर, क्योंकि आप बोलना जरूरी है। बोलेंगे तो बदलेगा?

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